9 काले क़ानून लाकर कांग्रेसियों ने देश को बर्बाद किया !
आज इस रिपोर्ट में हम आपको कांग्रेस सरकार की तरफ से लाये गये उन काले कानूनों के बारे में विस्तार से बताएंगे जिन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे। पहला- हिंदुओं को कमजोर करना और दूसरा मुसलमानों को ताकत देना।
सड़क से लेकर संसद तक कांग्रेसियों ने इसी बात की रट लगाई हुई है, अपना इतिहास पढ़े बिना। अपने पूर्वजों द्वारा लाये गये काले कानूनों को जाने बिना ही राहुल गांधी चिल्ला चिल्लाकर संविधान की कॉपी हाथ में ले लेकर माहौल बनाने का काम कर रहे हैं। आज इस रिपोर्ट में हम आपको कांग्रेस सरकार की तरफ से लाये गये उन काले कानूनों के बारे में विस्तार से बताएंगे जिन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे। पहला- हिंदुओं को कमजोर करना और दूसरा मुसलमानों को ताकत देना।
क्या कहता है आर्टिकल 25 ?
1950 में कांग्रेस सबसे पहले लेकर आई आर्टिकल 25 जिसके ज़रिये धर्म परिवर्तन को मान्यता दे दी गई। बाकि इस देश में सबसे ज़्यादा धर्मपरिवर्तन किसका हुआ है ये तो किसी से छिपा नहीं है। आर्टिकल 25 ये भी कहता है कि किसी भी धर्म के ऊपर कोई भी व्यक्ति किसी को भी हिंसावादी नहीं कह सकता। इसी आर्टिकल का हवाला देकर निशिकांत दुबे ने उस वक़्त राहुल गांधी को घेरा था जब उन्होंने हिंदुओं को भरे सदन में हिंसक कह दिया था। आर्टिकल 25 धर्म को मानने, उसका पालने करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।
वैसे ये अभी कम था, जी हां, कांग्रेस को लगा इससे तो काम नहीं चलेगा तो वो 1950 में ही आर्टिकल 28 ले आये।
क्या कहता है आर्टिकल 28 ?
अनुच्छेद 28 शैक्षणिक संस्थानों में धर्म की स्वतंत्रता से जुड़ा है। आर्टिकल 28 कहता है कि किसी भी Educational Institution में कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। यानि हिंदुओं से उनका धार्मिक शिक्षा का अधिकार भी छीन लिया
आप कहेंगे कि हिंदुओं से ही क्यों ? वो इसलिए क्योंकि फिर तुरंत आर्टिकल 30 लाया गया।
क्या कहता है आर्टिकल 30 ?
इसमें धार्मिक शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक वर्गों के अधिकारों का वर्णन हैं। इस आर्टिकल ने अल्पसंख्यकों को अपने ख़ुद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित और प्रशासित करने की अनुमति दी है। मतलब आर्टिकल 30 के तहत मुसलमान और अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा ले सकते हैं।
इससे भी कांग्रेस का पेट नहीं भरा। तो फिर 1951 में HRCE एक्ट के ज़रिए सीधा हिंदुओं के मंदिरों को टार्गेट कर लिया गया।
HRCE एक्ट-
1951 में कांग्रेस Hindu Religious And Charitable Endowment Act लेकर आई। इसके पीछे का कारण तो ये बताया गया कि मंदिरों का रखरखाव ठीक से हो सकेगा लेकिन इसकी आड़ में मंदिरों पर लगातार कब्जे होते चले गये। दरअसल इसी एक्ट की वजह से बहुत सी राज्य सरकारों ने हजारों मंदिरों को अपने अधिकार में ले रखा है। आप सोचिए कर्नाटक के तो 1,80,000 मंदिरों में से लगभग 34,500 राज्य द्वारा शासित हैं। सरकार इन मंदिरों से आये सारे पैसे को अपने पास रखती है और मनमाने ढंग से उनका उपयोग करती है, ना कोई पूछने वाला है नो कोई जांच करने वाला। ये सिर्फ हिंदुओं के मंदिरों पर आधारित था किसी और के धार्मिक स्थल पर नहीं।
हिंदू कोड बिल-
1956 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार हिंदू कोड बिल लेकर आई लेकिन विडंबना देखिये Indian Muslim Personal law Board को आंख उठाकर भी नहीं देखा।ये तो वही वाली बात हो गई कि बाकि सब चलेंगे संविधान से कानून से और समुदाय विशेष चलेगा अपने मजहब के हिसाब से। ये वही हिंदू कोड बिल था जिसका डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बहुत विरोध किया था। उनका कहना था कि इस तरह के नियम सबके लिए होने चाहिये किसी मजहब को इससे अलग क्यों रखा जा रहा है ?
आरक्षण को लेकर बांटा
आज जब बटेंगे तो कटेंगे की बात होती है तो कांग्रेस को बड़ी मिर्ची लगती है लेकिन जब ख़ुद आरक्षण लाकर कांग्रेस ने हिंदुओं दलितों सिख आदिवासी सबको बांटा था वो दौर शायद कांग्रेस भूल गई। आरक्षण की देश की जनता को ज़रूरत तो थी लेकिन कांग्रेस राजनीतिक रोटियां सेकते हुए 10 साल तक इसे टालती रही और इससे Divide And Rule Policy चलाती रही।
सेक्युलर शब्द-
अजीब विडंबना है कि हिंदुओं के बहुसंख्या वाले इस देश को आप हिंदू राष्ट्र नहीं कहते बल्कि सेक्युलर कहते हैं। देश में Emergency के बाद 1976 में इंदिरा गांधी ने चुपचाप इस शब्द को संविधान में जोड़ दिया और किसी से इस पर चर्चा तक नहीं की, संसद में भी नहीं। अब जरा आसपास नज़र घुमाइये। ईरान, सीरिया, क़तर, यमन, अफ़ग़ानिस्तान जैसे 57 मज़हबी देश आपको दिखाई देंगे लेकिन भारत जिसमें कि हिंदू ज़्यादा संख्या में हैं, वो सेक्युलर है। इस secularism ने ही देश का बंटाधारा किया हुआ है इसमें कोई दो राय नहीं है।
पूजा स्थल क़ानून 1991
1991 में Worship Act लागू किया गया था। इसी की हवाला देकर आजकल कुछ कट्टरपंथी मस्जिदों का बचाव भी कर रहे हैं। Place of Worship Act तो हिंदुओं पर, उनकी आस्था पर, उनके मंदिरों पर सबसे बड़ी चोट है। ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जिस धार्मिक स्थल का जो अस्तित्व था उसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता। किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करता है तो जुर्माना और तीन साल तक की सजा हो सकती है। 1991 में कांग्रेसी पीवी नरसिम्हा राव की सरकार इसे लाई थी। ये कानून ऐसे वक्त में आया था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के कई मंदिरों और मस्जिदों पर पड़ा था।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट ( धारा 2)
ये कहता है कि 15 अगस्त 1947 में अगर किसी धार्मिक स्थल में बदलाव की कोई याचिका पेडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाए।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट ( धारा 3)
ये कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से बदलने की अनुमति नहीं है।
अब इसका नुक़सान हिंदुओं को कैसे हुआ ये समझिये। इस एक एक्ट ने उन लाखों मंदिरों को छुड़वाने का रास्ता हिंदुओं के लिए बंद कर दिया जिनपर दूसरे धर्म के लोग क़ब्ज़ा कर चुके थे। उनके पास दलील सुनने का या सुनवाने का कोई क़ानूनी रास्ता ही नहीं बचा।
1992- माइनॉरिटी कमिशनरी एक्ट
ये अधिनियम अल्पसंख्यकों को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एक समुदाय के रूप में परिभाषित करता है। इसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौध और पारसी को रखा गया। इसके बाद सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग भी बना दिया। ऐसा करके कांग्रेस की सरकार ने उस वक्त धर्म विशेष के लोगों को ख़ास दर्जा तो दिया ही साथ ही साथ हिंदुओं में भी बँटवारा कर दिया। फिर क्या हुआ ? फिर ये हुआ कि केंद्र सरकार की सारी योजनाओं का सबसे ज़्यादा लाभ अगर किसी को हुआ तो वो यही अल्पसंख्यक ही थे। वैसे भी मनमोहन सिंह को तो कहते हुए सुना भी गया है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ minorities का है। मतलब हिंदुओं के हाथ ख़ाली और धर्म विशेष के दोनों हाथों में लड्डू।
वक़्फ़ बोर्ड क़ानून 1995-
कांग्रेस की सरकार ने 1995 में वक़्फ़ बोर्ड कानून बनाकर और असीमित शक्तियां देकर हिंदुओं के साथ कितना बड़ा छल किया है ये किसी से छिपा नहीं है। मौजूदा हालात ये हैं कि आज रेलवे, रक्षा के बाद अगर किसी के पास संपत्ति है तो वो वक़्फ़ बोर्ड के पास है।साल 2013 में जाते जाते मनमोहन सिंह इस वक़्फ़ बोर्ड को सबसे ज़्यादा मज़बूत बनाकर चले गये। अब तो जहां मन आये जो मन आये उसी ज़मीन पर क़ब्ज़ा वक़्फ़ बोर्ड कर लेता है और इसकी सुनवाई किसी कोर्ट में नहीं बल्कि वक़्फ़ ट्रिब्युनल में होती है। यानि चोर के सामने ही जाकर अपना चोरी किया हुआ सामान आपको छुड़वाना है ? गजब है !
रामसेतु एफिडेविट
2004 में हिंदुओं ने फिर से कांग्रेस की सरकार चुनी थी तो इसका इनाम तो उन्हें मिलना ही था। हिंदुओं के परमपूज्नीय भगवान राम को काल्पनिक भी इसी सरकार ने इसी दौर में बताया था। दरअसल साल 2007 में UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करना चाहती थी। इस परियोजना के तहत बड़े जहाज़ों के लिए रास्ता बनाया जाना था जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए समुद्र में कम गहराई वाले हिस्से की खुदाई करनी थी जिसमें रामसेतु वाला क्षेत्र भी शामिल था। बीजेपी इसका लगातार विरोधी कर रही थी। विरोध इस कदर था कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया था। बस फिर क्या 2008 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देकर रामसेतु को ही काल्पनिक करार दिया था। कहा गया था कि वहां कोई पुल नहीं है। ये Structure किसी इंसान ने नहीं बनाया था। किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर ख़ुद ही नष्ट हो गया होगा। बाद में क्योंकि इस हलफ़नामे के साथ साथ कांग्रेस का भी खूब विरोध हुआ था तो कांग्रेस ने इसे वापस लेकर कहा था कि हम तो सभी धर्मों का सम्मान करते हैं।
अब आप ख़ुद सोचिये जिस कांग्रेस ने हिंदुओं को बदनाम के साथ साथ बर्बाद करने के लिए इस संविधान का सहारा लिया।क्या वो ये बात कहते हुए अच्छे लगते हैं कि संविधान ख़तरे में है ?