क्या आपने सोचा है? ट्रेन में एसी और पंखे कितना बिजली खाते हैं
भारत का रेलवे नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है, जो हर दिन लाखों लोगों को सस्ती और आरामदायक यात्रा प्रदान करता है। लेकिन ट्रेन में सफर के दौरान जो एसी, लाइट्स और पंखे चलते हैं, वे कितनी बिजली खर्च करते हैं? यह एक रोचक सवाल है।
भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। जो न केवल देश के एक छोर को दूसरे से जोड़ता है, बल्कि हर दिन लाखों यात्रियों को सस्ती और आरामदायक यात्रा का विकल्प भी देता है। लेकिन ट्रेन में सफर करते हुए क्या आपने कभी सोचा है कि इन कोचों में चलने वाले एसी, लाइट्स और पंखे कितनी बिजली खर्च करते हैं? यह जानना न केवल दिलचस्प है, बल्कि रेलवे के ऑपरेशन और इसकी लागत को भी समझने का एक तरीका है।
सबसे ज्यादा बिजली की खपत
भारतीय रेलवे की एसी बोगियां यात्रियों को ठंडक और आराम प्रदान करती हैं, लेकिन इसके पीछे बिजली की भारी खपत होती है। एक एसी कोच हर घंटे लगभग 210 यूनिट बिजली की खपत करता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई ट्रेन 13 घंटे का सफर तय करती है, तो एक एसी कोच लगभग 2730 यूनिट बिजली का उपयोग करता है।
रेलवे इस बिजली को खरीदने के लिए औसतन 7 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करता है। इसका मतलब है कि 13 घंटे की यात्रा में एक एसी कोच पर रेलवे को करीब 19,110 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
कम खपत, लेकिन ज्यादा संख्या
स्लीपर और जनरल कोच यात्रियों की बड़ी संख्या को संभालते हैं। इन कोचों में पंखे और लाइट्स हमेशा ऑन रहते हैं। एक नॉन-एसी कोच हर घंटे लगभग 120 यूनिट बिजली खर्च करता है। 12 घंटे की यात्रा के दौरान एक नॉन-एसी कोच 1440 यूनिट बिजली का उपयोग करता है। यह खपत रेलवे के लिए लगभग 10,800 रुपये की लागत पर आती है। हालांकि, चूंकि नॉन-एसी कोच की संख्या ज्यादा होती है, इसलिए कुल खपत एसी कोचों के मुकाबले काफी अधिक हो जाती है।
ट्रेन में बिजली की सप्लाई कैसे होती है?
ट्रेन के कोचों तक बिजली पहुंचाने के लिए रेलवे दो प्रमुख तरीकों का उपयोग करता है:
हाई-टेंशन वायर सिस्टम: इस प्रणाली में बिजली को सीधे हाई-टेंशन तारों से बोगियों तक पहुंचाया जाता है। यह तरीका लंबी दूरी की यात्रा के लिए उपयुक्त है।
पावर जनरेटर कार: यह एक डीजल जनरेटर कार होती है, जो ट्रेन के साथ लगाई जाती है। यह बिजली बनाकर कोचों तक पहुंचाती है। एसी बोगियों के लिए इस पावर जनरेटर को चलाने का खर्च हर घंटे 5600 रुपये और नॉन-एसी बोगियों के लिए हर घंटे 3200 रुपये आता है।
रेलवे के बिजली खर्च का यह गणित न केवल संचालन की लागत को बढ़ाता है, बल्कि इसे पर्यावरणीय दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण बनाता है। यही कारण है कि भारतीय रेलवे अब डीजल से चलने वाली ट्रेनों को धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक ट्रेनों में बदलने की ओर बढ़ रहा है। साथ ही, सोलर पैनल और अन्य ऊर्जा-संरक्षण तकनीकों को अपनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रेलवे का लक्ष्य 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को शून्य करना है। इसके तहत, सोलर और विंड एनर्जी का उपयोग बढ़ाने, नई तकनीकों को अपनाने और ट्रेन संचालन में ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए व्यापक योजनाएं बनाई जा रही हैं।
ट्रेन के कोचों में बिजली की खपत और इससे जुड़ी लागत को समझना रेलवे के संचालन और यात्रियों की सुविधा के बीच संतुलन को दर्शाता है। जहां एसी कोच यात्रियों को लग्जरी अनुभव देते हैं, वहीं नॉन-एसी कोच बड़ी संख्या में यात्रियों को किफायती यात्रा का विकल्प प्रदान करते हैं। भारतीय रेलवे इन दोनों आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए अपने भविष्य को पर्यावरण-अनुकूल बनाने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है।