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राजकीय शोक का महत्व और प्रक्रिया, जानिए क्यों और कैसे घोषित होता है?

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। इस दुखद घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया।
राजकीय शोक का महत्व और प्रक्रिया, जानिए क्यों और कैसे घोषित होता है?
देश में किसी प्रतिष्ठित नेता, कलाकार या शख्सियत की मृत्यु होने पर उनके योगदान के सम्मान में राजकीय शोक की घोषणा की जाती है। यह न केवल दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि होती है, बल्कि समाज और सरकार के लिए उनकी भूमिका को मान्यता देने का एक प्रतीक भी है। हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद देशभर में राजकीय शोक की प्रक्रिया चर्चा में है। आइए जानते हैं, राजकीय शोक के बारे में विस्तार से।

राजकीय शोक का मतलब है कि किसी बड़े राष्ट्रीय या क्षेत्रीय योगदानकर्ता की मृत्यु के बाद उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए देश या राज्य में शोक घोषित किया जाता है। यह शोक कई बार केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर घोषित होता है और कभी-कभी केवल राज्य स्तर पर भी। राजकीय शोक के दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया जाता है। किसी प्रकार का उत्सव, सांस्कृतिक या मनोरंजन कार्यक्रम रद्द कर दिए जाते हैं। राजकीय इमारतों और कार्यालयों में केवल आवश्यक कार्य ही होते हैं। अंत्येष्टि सरकारी सम्मान के साथ की जाती है।

कौन करता है राजकीय शोक की घोषणा?

1997 तक केवल केंद्र सरकार ही राजकीय शोक की घोषणा कर सकती थी। लेकिन नए प्रावधानों के अनुसार केंद्र सरकार यानी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या अन्य राष्ट्रीय नेताओं के लिए राजकीय शोक घोषित करती है। इसके अलावा किसी राज्य के विशिष्ट व्यक्ति के लिए राजकीय शोक घोषित कर सकती हैं। यह निर्णय शख्सियत के योगदान और पद के आधार पर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, मुलायम सिंह यादव के निधन पर उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन दिन का शोक घोषित किया था, जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर राष्ट्रीय स्तर पर सात दिन का शोक रखा गया था।
राजकीय शोक के दौरान क्या होता है?
राजकीय शोक के दौरान कुछ खास प्रोटोकॉल अपनाए जाते हैं

राष्ट्रीय ध्वज का झुकना: सभी सरकारी कार्यालयों, सचिवालय, और विधानसभा में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया जाता है। यह ध्वज संहिता (Flag Code of India) के तहत किया जाता है।

कार्यक्रम रद्द: इस दौरान सभी सांस्कृतिक, मनोरंजन, और उत्सव कार्यक्रमों को रद्द कर दिया जाता है। सिर्फ जरूरी सरकारी कार्यों को ही प्राथमिकता दी जाती है।

मीडिया कवरेज: सार्वजनिक माध्यमों पर मृतक के योगदान और उपलब्धियों की चर्चा की जाती है। यह लोगों को उनके जीवन और कार्यों के बारे में जागरूक करने का एक तरीका होता है।

अंत्येष्टि: राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। इसमें तिरंगे में लिपटा हुआ शव, सैन्य बैंड, और सलामी दी जाती है।

वैेसे आपको बता दें कि राजकीय शोक के लिए समय निर्धारित भी किया जाता है। राजकीय शोक की अवधि व्यक्ति के योगदान और पद के आधार पर तय होती है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय नेताओं के लिए यह 7 दिन तक हो सकता है। किसी राज्य के नेता के लिए राज्य सरकार 1 से 3 दिन का शोक घोषित कर सकती है। हाल ही में मुलायम सिंह यादव के निधन पर उत्तर प्रदेश में 3 दिन का शोक रखा गया था।
क्या राजकीय शोक के दौरान छुट्टी होती है?
1997 के बाद से इस नियम में बदलाव किया गया है। अब राजकीय शोक के दौरान सार्वजनिक छुट्टी अनिवार्य नहीं है। केवल राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद पर रहते हुए मृत्यु होने पर ही सार्वजनिक अवकाश की परंपरा है। हालांकि, किसी राज्य विशेष में छुट्टी का निर्णय राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है।

राजकीय शोक का उद्देश्य समाज को यह दिखाना है कि सरकार और जनता अपने नायकों के प्रति कृतज्ञ है। यह प्रक्रिया न केवल शोक व्यक्त करने का माध्यम है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि भविष्य की पीढ़ियां इन शख्सियतों के योगदान को याद रखें। डॉ. मनमोहन सिंह जैसे नेताओं के निधन पर यह शोक उनकी अद्वितीय सेवाओं को श्रद्धांजलि देने का तरीका है। मनमोहन सिंह ने भारत को आर्थिक संकट से उबारने में जो योगदान दिया, उसे हमेशा याद रखा जाएगा।

राजकीय शोक देश की संस्कृति और आदर्शों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल हमारे नेताओं और आदर्शों के प्रति सम्मान है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। ऐसे समय में हर नागरिक को शोक की गरिमा को बनाए रखना चाहिए और समाज के लिए उनके योगदान को याद करना चाहिए।
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