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नूरानांग | वो जगह जहाँ एक भारतीय जवान ने मारे 300 चीनी सैनिक!

पूरा तवांग प्रकृति का एक उपहार है। शिद्दत से ऊपरवाले ने इस पूरे इलाक़े को सजाया है। वैसे ये भी कहते हैं कि प्रकृति की सुंदरता स्थिर नहीं है। वक़्त बदलता है तो ऋतु बदल जाती है और इसी के साथ बदल जाती है सुंदरता। यही बात नूरानांग वॉटरफॉल पर पूरी तरह से फ़िट है। ये एक ऐसा आकर्षण है जिसकी तरफ़ बग़ैर खिंचे कोई रह नहीं पाता।
नूरानांग | वो जगह जहाँ एक भारतीय जवान ने मारे 300 चीनी सैनिक!

ये उस दिन की कहानी है। जब हमारा मन माँगता रहा मौसम तरंगों का और सुबह के सपनों की आरज़ू थी। जंगलों के झरनों की ख़ूबसूरती और शोर में हम खो जाना चाहते थे। प्रकृति की सुंदरता को देखने की चाहत के लिए सबसे ज़रूरी है घुमक्कड़ होना, और आप तो जानते ही हैं, हम सिर्फ़ ख़ुद के लिए नहीं आप सबके लिए घूमते हैं ताकि आप सबको अपने साथ ही घुमक्कड़ बनाए रखें। अरूणाचल प्रदेश के तवांग के नूरानांग वॉटरफॉल की ओर हमारा क़ाफ़िला बढ़ने लगा। जितनी दफे हमारी गाड़ी का पहिया घूम रहा था, हमारा मन उस waterfall के और भी क़रीब पहुँच जा रहा था। झरने, तालाब और समुद्र को जी भर कर जीने वाले किसी शख़्स ने लिखा है, ‘झरने कहते हैं कि ज़िंदगी को मुस्कुरा कर जी। झरनों का पानी मीठा है, इसे क़रीब से जी।’ लेकिन हम सब ये भी जानते हैं, सुंदर चीजों को आँखों में बसाना आसान नहीं होता। 

पूरा तवांग प्रकृति का एक उपहार है। शिद्दत से ऊपरवाले ने इस पूरे इलाक़े को सजाया है। वैसे ये भी कहते हैं कि प्रकृति की सुंदरता स्थिर नहीं है। वक़्त बदलता है तो ऋतु बदल जाती है और इसी के साथ बदल जाती है सुंदरता। यही बात नूरानांग वॉटरफॉल पर पूरी तरह से फ़िट है। ये एक ऐसा आकर्षण है जिसकी तरफ़ बग़ैर खिंचे कोई रह नहीं पाता। हम भला इससे अछूते कैसे रहते, हम इसे बिना देखे कैसे रहते। जब हमारे कदम नूरानांग वॉटरफॉल के क़रीब पहुँच रहे थे, झरने का शोर और पानी का संगीत एक साथ सुनाई पड़ने ही वाला था, उससे पहले ठंडी हवाओं के झोंके से भी टकराकर उन रास्तों को पार करना पड़ा, जिन रास्तों को पेड़ों की हरियाली ने अपने छाँव में बसाया है।


जब तक हमारी नज़रें नूरानांग वॉटरफॉल से टकराती, उससे पहले उसकी कहानी हमारे ज़हन में घूम रही थी। इस जगह के कई नाम हैं। कुछ लोग नूरानांग वॉटरफॉल कहते हैं, कुछ लोग जंग वॉटरफॉल कहते हैं। कुछ लोग इसे बोंग-बोंग वॉटरफॉल भी कहते हैं। जिसका नाम एक स्थानीय लड़की के नाम पर रखा गया था, जो मोनपा समुदाय की थी। उसे प्यार से लोग नूरा नाम से बुलाते थे। और फिर बाद में इसी नाम से इस जगह को पुकारा जाने लगा।


क्या है मोनपा की कहानी?

मोनपा की कहानी साल 1962 के युद्ध से जुड़ी हुई है। चीनी सैनिक आक्रामक थे। जवाबी कार्रवाई के लिए भारतीय सैनिक मोर्चे पर डटे थे। और उसी दौरान एक जाँबाज़ सैनिक की मदद में नूरा ने अपनी जान की कोई परवाह नहीं की और जाँबाज़ सैनिक जसवंत सिंह रावत की मदद में ख़ुद को झोंक दिया। हालाँकि चीनी सैनिकों को ये बात पता चल गई कि भारतीय सेना की तरफ़ से एक अकेले जसवंत सिंह रावत ने पूरी चीनी सैनिकों को परेशान कर रखा है। इसके बाद जसवंत सिंह रावत को घेर लिया गया। इस दौरान नूरा की खूब तारीफ़ हुई।


हालाँकि नूरा युद्ध के दौरान अकेली नहीं थी। उसके साथ सेला नाम की एक और लड़की थी। आख़िर में एक हमले में सेला की मौत हो गई और फिर नूरा को चीनी सैनिकों ने ज़िंदा पकड़ लिया। शहीद जसवंत सिंह रावत को अभी भी लोग ज़िंदा मानते हैं। चीन की सेना उनकी बहादुरी का लोहा आज तक मानती आ रही है। क्योंकि एक अकेले जसवंत सिंह ने इसी नूरानांग में क़रीब 300 चीनी सैनिकों को मार गिराने में अहम भूमिका निभाई थी।


इस दुनिया में ना तो अब नूरा है, ना ही सेला। और ना वो हैं, जिनकी मदद से ही दोनों को पहचान मिली। लेकिन सौ मीटर ऊपर से गिरने वाला ये वॉटरफॉल आज भी नूरा की याद दिलाता है। नूरा की बहादुरी की याद दिलाता है। 


नूरानांग सेला दर्रे की उत्तरी ढलानों से निकलता है। नूरानांग वॉटरफॉल आख़िर में तवांग नदी में मिल जाता है। यूँ तो इस वॉटरफॉल की पहचान इस पूरे इलाक़े में है। लेकिन शाहरूख खान की फ़िल्म कोयला ने इस जगह को पूरे देश में और दुनिया के कई देशों में इसकी पहचान को और बड़ा किया।


अब तक हम नूरानांग वॉटरफॉल के बिल्कुल क़रीब पहुंच चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे धुंध कुछ देर में छंटने वाली है और वॉटरफॉल के पानी से भीगे पत्ते चमकने को बेताब थे। इस इलाक़े के लोग अभी भी मानते हैं कि बारिश के बाद इस इलाक़े की सुंदरता पहले से ज़्यादा बढ़ जाती है। बिल्कुल दुधिया सफ़ेद ये झरना सामने से देखने पर किसी असामान्य सी घटना जैसा लगता है। 


चारों तरफ़ ज़बरदस्त हरियाली से घिरे इस वॉटरफॉल की पहचान दो तरह से होती है। एक तो लोग इस जगह को देखने के लिए किसी भी हालात का सामना करने को तैयार रहते हैं। और दूसरा, इस वॉटरफॉल से बिजली निकालने का काम भी किया जाता है। 


वैसे तो ये जगह घूमने के लिए हर महीने तैयार रहता है। लेकिन मानसून के दौरान यह पूरे चरम पर होता है। इस वॉटरफॉल की सफ़ेदी और पानी की धार में एक अलग तेज़ है। जो आपके कदमों को पकड़कर अपनी तलहटी तक खींच लाता है। 

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