दिल्ली चुनाव में भी आंबेडकर की विरासत पर सियासत, जिसके संग दलित वही जीतेगा जंग?
आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस तक शाह के आंबेडकर वाले बयान दिल्ली में चुनावी मुद्दा बनाकर मैदान में कूद पड़ी है..जमकर बीजेपी को घेर रहे है.. तो वहीं बीजेपी उलटा कांग्रेस को इतिहास का पाठ पढ़ाकर अंबेडकर विरोधी बताकर तुरुप का इक्का चल रही है.. वहीं आप ने दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर बीजेपी को घेरना तेज़ कर दिया है
दिल्ली के चुनावी समर में भी बाबा साहब अंबेडकर की विरासत पर सियासत तेज़ हो गई है। आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस तक शाह के आंबेडकर वाले बयान को लेकर चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। जमकर बीजेपी को घेर रहे है। तो वहीं बीजेपी उलटा कांग्रेस को इतिहास का पाठ पढ़ाकर अंबेडकर विरोधी बताकर तुरुप का इक्का चल रही है।लेकिन दोनों की काट बनने के लिए आम आदमी पार्टी के मुखिया गली-गली कौन-कौने तक जा रहे हैं। बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस को भी आंबेडकर विरोधी बताकर चुनावी माहौल बना हैं। क्या आपको मालूम है कि आम आदमी पार्टी के इस ग़ुस्से के पीछे एक सियासी गणित भी है। दरअसल आंबेडकर का मुद्दा आप के लिए बीजेपी को ढेर करने में किसी हथियार से कम नहीं है। आप की कोशिश दिल्ली चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर फ़ायदा उठाने की है सत्ता वापसी का रास्ता बनाने की है। दरअसल 10 सालों की एंटी इनकंबेंसी का सामना करे रही आप को उम्मीद है कि वो आंबेडकर का मुद्दा भुनाएगी तो दलित वोटर्स को आसानी से अपने पाले में ला पाएगी। तो ऐसे में आम आदमी पार्टी के साथ साथ कांग्रेस की पैनी नज़र दिल्ली में 12 आरक्षित सीटों पर है जहां दलित वोट बैंक ज़्यादा है।
दिल्ली की 12 विधानसभा सीटों पर दलित समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। किसी भी उम्मीदवार की जीत हार में दलित समुदाय की भूमिका काफ़ी अहम है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में AAP ने इन सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया था।
2013 में भी AAP ने अधिकतर आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी। दिल्ली में बवाना, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, पटेल नदर, मादीपुर, देहली, आंबेडकर नगर, कोंडली, सीमापुरी, गोकलपुर, कारोलबाग, त्रिलोकपुरी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं।
बीजेपी इन सीटों पर ख़राब सड़कें, गंदे पानी जैसी समस्याओं को खूब जोरशोर से उठा रही है। झोग्गियों में जाकर आम आदमी पार्टी सरकार की कमियाँ गिनवा रही है। भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुना रही है।लेकिन आप ने इसकी काट के लिए आंबेडकर के मुद्दे को उठा लिया है। यही वजह है कि जहां ज़्यादा दलित, पिछड़े और वंचित समुदाय के लोग रहते हैं ऐसे में आम आदमी पार्टी के नेता वहाँ डेरा डाल रहे हैं। बीजेपी पर ज़ोरों शोरों से आंबेडकर के अपमान का आरोप लगा रहे हैं।आम आदमी पार्टी कांग्रेस से ज़्यादा आक्रोशित होकर आंबेडकर का मुद्दा भुना रही है। अब दलितों को रुझाना का कितना फ़ायदा किस पार्टी को हो सकता है चलिए इसके लिए दिल्ली का चुनावी इतिहास उठाकर देखते हैं।
दिल्ली में 12 आरक्षित सीटों पर जिसने भी अच्छा प्रदर्शन किया उसी पार्टी की सरकार बनी है। 1993 में दिल्ली में 13 आरक्षित सीटें थी इनमें से 8 पर जीत हासिल कर बीजेपी की सरकार बनी है।
इसके बाद बीजेपी को लंबा वनवास झेलना पड़ रहा है। इसके पीछे आरक्षित सीटों पर बीजेपी का लगातार ख़राब प्रदर्शन भी एक वजह रही है।
1998 में कांग्रेस ने सभी 12 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई । 2003 में 10 आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कर सरकार बनाई ।2008 में 9 सीटों पर क़ब्ज़ा करके कांग्रेस ने लगातार तीन बार सरकार बनाई। 2013 में AAP ने जिन 28 सीटों पर जीत दर्ज की उनमें से 9 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी इसलिए AAP को भी सत्ता पाने का मौक़ा मिला।2015 और 2020 में AAP ने आरक्षित सभी सीटों पर एकतरफ़ा जीत हासिल कर सरकार बनाई।
यही वजह है कि आप ने आंबेडकर को चुनावी मुद्दा बनाकर इन 12 सीटों पर तुरूप का इक्का चलने का काम किया है। लेकिन बीजेपी भी काट निकालने के लिए जुगाड़ लगा रही है। अब देखना ये होगा कि दिल्ली की 12 आरक्षित सीटें क्या शाह के बयान की वजह से बीजेपी का वनवास लंबा करवाएँगी।या फिर से आम आदमी पार्टी झाड़ू चलाने में कामयाब हो जाएगी।