काल भैरव मंदिर का तंत्र मंत्र से क्या है नाता?
उज्जैन शहर रहस्यमयी है। यहां के कण-कण में एक नहीं अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। इन्हीं में से एक है काल भैरव मंदिर। भैरव की मूर्ति के मदिरा पान करने की वजह से ये मंदिर हमेशा चर्चाओं में बना रहता है। क्या है मूर्ति के मदिरा पान का सच? क्या वाकई ये मंदिर तांत्रिकों और तंत्र-मंत्र का गढ़ हुआ करता था?
काल भैरव के अनोखे मंदिर की यात्रा पर है Being Ghumakkad की टीम। मन में सवाल था काल भैरव मंदिर में शराब क्यों चढ़ाई जाती है? काल भैरव के मंदिर से आखिर तंत्र-मंत्र का क्या नाता है? क्या आज भी काल भैरव मंदिर में होती हैं तांत्रिक क्रियाएं? इन्हीं सवालों की तलाश में हम उज्जैन शहर से 5 किलोमीटर दूर भैरव गढ़ की ओर बढ़े। काल भैरव का ये अद्भुत स्थान शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए शिप्रा पर बने पुल को पार करना पड़ता है। किसी वक्त में शिप्रा नदी के किनारे इस पहाड़ी पर घना जंगल हुआ करता था। तब इसे भैरव पर्वत कहा जाता था। धीरे-धीरे इस स्थान का नाम भैरव गढ़ हो गया।
उज्जैन शहर रहस्यमयी है। यहां के कण-कण में एक नहीं अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। इन्हीं में से एक है काल भैरव मंदिर। भैरव की मूर्ति के मदिरा पान करने की वजह से ये मंदिर हमेशा चर्चाओं में बना रहता है। क्या है मूर्ति के मदिरा पान का सच? क्या वाकई ये मंदिर तांत्रिकों और तंत्र-मंत्र का गढ़ हुआ करता था? क्या यहां आज भी तांत्रिक क्रियाएं होती हैं? ऐसे हर एक सवाल का जवाब आपको मिलेगा।
Being Ghumakkad की टीम जैसे ही मंदिर के पास पहुंची तो सैकड़ों दुकानें नज़र आई। और हर दुकान में किस्म-किस्म की, अलग-अलग ब्रांड की मदिरा मौज़ूद थी। किसी ज़माने में काल भैरव की मूर्ति पर देसी शराब चढ़ाने की परंपरा थी। कब ये परंपरा अंग्रेज़ी में तब्दील हो गई, कोई नहीं जानता। हां, एक बात हर कोई जानता है कि यहां मिलने वाली मदिरा की बॉटल बाज़ार मूल्य से महंगी होती है। यहां आपको बिना लाइसेंस के व्हिस्की, रम, वोदका सब मिल जाएंगी। दुकानों के सामने जगह-जगह मन्नत के धागे भी बंधे दिखाई देंगे। यहां से आगे बढ़कर जैसे ही मंदिर का प्रवेश द्वार आता है, साथ ही दाहिनी ओर शिप्रा नदी भी बहती दिखती है। शिप्रा नदी काल भैरव मंदिर को छूकर निकलती है। इस जगह को काल भैरव घाट कहते हैं।
शिप्रा से साक्षात्कार कर Being Ghumakkad की टीम मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ चली। कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार को देखकर प्रतीत होता है कि ये सदियों पुराना है। काल भैरव मंदिर करीब 6 हज़ार साल पुराना माना जाता है। ये एक वाम मार्गी मंदिर है। वाम मार्गी मंदिर में मांस, मदिरा, बलि इत्यादि चढ़ाने की परंपरा आज से नहीं हज़ारों साल पुरानी है। हालांकि अब बलि नहीं दी जाती हैं। सैकड़ों साल पहले तक काल भैरव मंदिर में सिर्फ तांत्रिक ही जाया करते थे, दूर-दूर से आए तांत्रिक यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे। तब आम लोगों को यहां आने की अनुमति नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे परंपराओं में भी परिवर्तन हुआ। अब यहां आम-जनमानस भी जाते हैं।
अपनी सतत धर्म यात्रा में हम भी आगे बढ़ चुके थे। मंदिर पहुंचते-पहुंचे शाम हो चुकी थी। सूरज ढल चुका था। श्रद्धालुओं से पटी इन पंक्तियों से मंदिर परिसर का कोना-कोना दिखाई दिया। दाहिनीं ओर मौज़ूद दीपस्तंभ भी, जिसे मराठा शासकों ने अपने चरमोत्कर्ष काल में बनाया था। इसी दीपस्तंभ के पीछे नज़र आया दत्तात्रेय मंदिर। इनके अलावा मंदिर परिसर में पाताल भैरव का मंदिर भी विराजमान है। वो मंदिर भी प्राचीन है और बहुत सुंदर तरीके से बना हुआ है। कुछ ही देर में दीपस्तंभ में लगे दीए जगमगाने लगे, साथ ही जयकारे लगाते भक्त काल भैरव के सामने एक-एक कर पहुंचते रहे। मंदिर के पुजारी उनकी लाई शराब का भोग लगाकर उन्हें लौटा देते। ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही। Being Ghumakkad की बारी भी आई, और उस मदिरा की बोतल के साथ भी वही हुआ।दूर-दूर से काल भैरव के दर्शनों के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। हर श्रद्धालु बाबा को भोग ज़रूर लगाता है। मंदिर के पुजारी कुछ खास मंत्रों के जरिए अभिमंत्रित करके बाबा को मदिरा का पान करवाते हैं। माना जाता है कि बाबा खुशी-खुशी मदिरारूपी भोग को स्वीकार करते हैं और भक्तों के मन की मुराद पूरी कर देते हैं।
मन की मुरादों के बीच शराब का रहस्य हर किसी को हैरान करता है। विज्ञान के पैरामीटर से देखने पर यकीन नहीं होता सैकड़ों लीटर शराब मूर्ति रोज़ पी जाती है। सवाल उठता है आखिर ये शराब जाती तो जाती कहां है। अभी Being Ghumakkad इन सवालों के बीच उलझा हुआ था कि तभी मंदिर के पुजारी ने NASA का नाम लेकर हमें हैरत में डाल दिया।
अगर मंदिर के पुजारी की बातों पर भरोसा करें, तो ये हैरान करने वाली बात है कि NASA को सारे काम-धाम छोड़कर इस मूर्ति के रहस्य से पर्दा हटाने के बारे में सोचना पड़ा। मंदिर के पुजारियों के मुताबिक काल भैरव को मदिरा चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ये परंपरा कब, क्यों, कैसे, किन परिस्थितियों में शुरू हुई इसकी कोई लिखित जानकारी नहीं है। ये सच है पीढ़ी दर पीढ़ी ये जानकारी आगे बढ़ती रही कि काल भैरव को देसी मदिरा का भोग लगाया जाता है।
शराब का भोग कब शुरू हुआ ये तो कोई नहीं जानता। लेकिन ये सब जानते हैं काल भैरव मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर है। यहां परमार और मराठा वास्तुकला देखने को लिए मिल जाती है। माना जाता है कि काल भैरव मंदिर का निर्माण 2500 ईसा पूर्व राजा भद्रसेन के द्वारा करवाया गया। भद्रसेन एक बार युद्ध के लिए यहां से निकले थे, उन्होंने काल भैरव से प्रार्थना करते हुए कहा। अगर वो युद्ध जीते, तो यहां पर मंदिर का निर्माण करेंगे। इस युद्ध में राजा भद्रसेन को विजय मिली। जिसके बाद उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया। बाद में परमार वंश के राजा भोज ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
मंदिर के ऐतिहासिक साक्ष्य से हटकर इसकी पौराणिकता की बात करें तो वो कहानी शुरू होती है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच। ब्रह्मा जी एक महाकाव्य लिखने की ज़िद पकड़ लेते हैं और शिव बटुक भैरव को उनके इस कदम को रोकने का आदेश देते हैं।
महाकाल की नगरी में काल भैरव के दर्शन अगर आप भी करने जाना चाहें तो किसी भी मौसम में यहां पहुंचा जा सकता है। जब भी आप उज्जैन महाकाल का टूर बनाएं काल-भैरव को भी इसमें ज़रूर जोड़ें। महाकाल से काल भैरव की दूरी सिर्फ 5.5 किलोमीटर है। उज्जैन शहर भी रेल-रोड नेटवर्क से भली भांति जुड़ा हुआ है। उज्जैन में अच्छे होटल और धर्मशालाएं ठहरने के लिए मिल जाती हैं।