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कैसे RSS Silent Killer के तौर पर काम करता है ? Special Report देखिये

4 लोगों से शुरू हुआ RSS का संगठन आज 10 करोड़ से भी ज़्यादा सदस्य लेकर आगे बढ़ रहा है और वो भी 60 हज़ार शाखाओं के साथ। RSS एक नहीं दो नहीं बल्कि 35 से ज़्यादा दलों के साथ जुड़ा हुआ है। इनमें BJP है, भारतीय मज़दूर संघ है, भारतीय किसान संघ और भी कही संघ हैं। RSS इतना ताकतवर है कि किसी भी हारी हुई बाज़ी को जिता दे ? देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट।
कैसे RSS Silent Killer के तौर पर काम करता है ? Special Report देखिये
आज Adhura Sach Expose के इस ख़ास Episode में मैं आपको RSS की ताक़त तो बताऊंगी ही साथ ही साथ आपको RSS कैसे Silent Killer है ये भी समझाऊंगी। जिसको चाहे बना दे जिसको चाहे ख़त्म कर दे। ऐसी ताकत है RSS की। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो सबने लोकसभा चुनावों में ही देख लिया। माननीय नड्डा जी ऐसे Overconfident हुए कि कह बैठे हम तो सक्षम हैं हमें तो किसी की ज़रूरत ही नहीं है। हम तो RSS से भी ऊपर हैं। लीजिए RSS से ऊपर थे ना आप तो फिर क्यों यूपी में 70+ का Target आपका 33 सीटों में सिमट गया, और गठबंधन के साथ 40 सीटों में निपट गया।


RSS से ऊपर होते ना तो अब तक BJP का नया अध्यक्ष चुन लिया गया होता। पेंच फंसा है ना ? RSS ने कहा है ना कि हमारी पसंद का आदमी अध्यक्ष की कुर्सी पर होना चाहिये। तो RSS कितना पावरफुल है ये किसी को बताने की ज़रूरत कम से कम आज के वक़्त में तो नहीं है, लेकिन इतना पावरफुल बनने का RSS का सफ़र आपको ज़रूर जानना चाहिये। और जैसे ही मैं RSS के पावरफुल होने की कहानी बताना शुरू करूंगी कुछ लोग कहेंगे कि अरे जाइये मैडम 52 साल तक RSS ने देश का तिरंगा तो फहराया नहीं ये बात करते हैं देशभक्ति की। इसका जवाब कुछ वक़्त पहले सुधांशु त्रिवेदी ने दिया था। उन्होंने कहा था scroll in- 2006 से पहले ग़ैर सरकारी संस्थाओं को अपने कार्यालय में झंडा फहराने की अनुमति थी ही नहीं। ये आरोप बिलकुल ही निराधार हो जाता है कि 52 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया गया ? वो कांग्रेस के ही सांसद हैं जिनके केस लड़े जाने के बाद सबको अधिकार मिला। 

खैर, चलिए अब RSS को समझने के लिए कुछ साल पीछे चलिए। RSS की नींव K.B Hedgevar यानि केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी। केशव बचपन से ही ग़ुलामी को लेकर बड़े परेशान रहते थे, सोचते थे कि आख़िर कमी कहां है जो हम गुलाम हैं। ध्यान लगाया और पाया कि हिंदू बंटे हुए हैं। इनको एक करना होगा। उन्होंने 27 सितंबर 1925 को संगठन की स्थापना कर दी। शुरू में तो ये संघ ही था लेकिन बाद में इसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि RSS कहा जाने लगा। संघ और इसके कार्यकर्ता की विचारधारा साफ़ है कि ये सभी लोग अखंड भारत एक भारत की बात भी करते हैं और मांग भी। संघ के लिए सबसे ऊपर उनका ही ध्वज है। 4 लोगों से शुरू हुआ ये संगठन आज 10 करोड़ से भी ज़्यादा सदस्य लेकर आगे बढ़ रहा है और वो भी 60 हज़ार शाखाओं के साथ। RSS एक नहीं दो नहीं बल्कि 35 से ज़्यादा दलों के साथ जुड़ा हुआ है। इनमें BJP है, भारतीय मज़दूर संघ है, भारतीय किसान संघ और भी कही संघ हैं।

संघ चूंकि हिंदुत्व की आइडियोलॉजी पर चलता आया है इसीलिए तिरंगा और सेक्लुलर वाला राग उसे कभी पसंद नहीं आया। शुरूआत में तो संघ ने संविधान तक मानने से मना कर दिया जिसको लेकर उसकी खूब आलोचना भी हुई थी। कहा जाता है कि गांधी जी की हत्या का आरोपी नाथू राम गोड़से भी संघ से जुड़ा था, हालांकि RSS ने इससे साफ़ इंकार किया था। RSS का कहना था कि वो आता ज़रूर था लेकिन बाद में उसने आना बंद कर दिया। ये बात इतनी बढ़ी की संघ को बैन तक कर दिया गया था। हालाँकि बाद में संघ बेदाग पाया गया तो सरदार पटेल ने इस शर्त पर कि RSS को तिरंगा और संविधान मानना होगा। बैन हटाया। 

तो संघ और संघी कितने अड़िग है अपने फ़ैसलों को लेकर ये आप इसी से समझ सकते हैं तो ऐसे में अगर कोई कह दे कि भैया हम तो सक्षम हैं हमें किसी की ज़रूरत नहीं है। उनको पूरी हॉरर पिक्चर दिखा डाली RSS ने। संघ में एक बात आज भी हमेशा कही जाती है कि जो आज स्वयंसेवक नहीं बना वो कल बनेगा लेकिन बनेगा ज़रूर। आप सोचिये वामपंथियों का इलाज संघ बेहतरीन तरीक़े से कर रहा है। JNU में संघ का पथ संचलन हो रहा है। सिर्फ़ यहीं नहीं RSS की ताकत को आप दो राज्यों के चुनावों से समझिये।

लोकसभा चुनावों में नड्डा के बयान से नाराज़ RSS कार्यकर्ता घर से बाहर ही नहीं निकला, पोलिंग बूथ का हाल-चाल तक नहीं जाना, घर पर बैठकर आराम फ़रमाया। वो कार्यकर्ता जो हर चुनाव में दिन रात काम करता था, मेहनत करता था और उसका सकारत्मक परिणाम लाकर ही दम लेता था। जो लोग घर से निकलने में असमर्थ हुआ करते थे उनको भी RSS कार्यकर्ता पोलिंग बूथ तक लेकर जाते थे और वोट डलवाते थे, यूपी में इसका ख़ामियाज़ा भुगताना पड़ा क्यों बीजेपी जीती हुई बाज़ी हार गई। ठीक है गठबंधन की सरकार बनी है लेकिन अगर यूपी से अच्छी सीटें आ जाती तो शायद तीसरी बार भी ये सरकार बहुमत की हो सकती थी।

दूसरा, हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में जीती हुई बाज़ी कांग्रेस को RSS ने हरा दी। बीजेपी उस हरियाणा में सरकार बनाने में कामयाब हुई जिसे लेकर कहा जा रहा था कि जी यहां तो पहलवान नाराज़ है किसान नाराज़ हैं जाट नाराज़ है मुस्लिम तो हैं हीं दलित नाराज़ हैं और वग़ैरह वग़ैरह। बताया जा रहा है कि RSS के कार्यकर्ताओं ने ज़मीनी स्तर पर बहुत काम किया। महत्वपूर्ण फ़ैसलों में उम्मीदवारों का चयन, ग्रामीण मतदाताओं के साथ संबंध को सुधारा, लाभार्थियों तक योजना पहुंचाना, मतदान केंद्रों का प्रबंध करना। ये सब काम RSS ने इतनी बखूबी से किये कि कांग्रेस को समझिये खा ही गया, साथ ही संदेश भी दे दिया कि बीजेपी में अकेले दो ही आदमियों की तो मैं नहीं चलने दूंगा।

सबसे दिलचस्प बात देखिये। चुपचाप RSS ने जो खेल खेला उसकी कानों कान किसी को ख़बर तक नहीं हुई और जीत के बाद ख़ुद सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि सारा क्रेडिट RSS को जाता है। Devesh Poddar का ये ट्वीट देखिये। The Real credit for this Haryana win goes to RSS। 16000 सभा with door to door campaign in the last few months made all the difference। Thankyou Mohan Bhagwat Ji and the whole RSS for keeping the hindus together। 

सोचिए हरियाणा में 16 हज़ार सभाए, जन जन तक जाना क्या ये आसान रहा होगा ? बिलकुल भी नहीं और इसीलिए तो हारी हुई बाज़ी भी जीत गई बीजेपी ? जीत के बाद अब एक बार फिर दशहरा के मौक़े पर मोहन भागवत ने पहले बांग्लादेश का ज़िक्र किया और फिर सभी को एक रहने की सलाह दी ठीक उसी तरह से जैसे कुछ दिन पहले योगी देते हुए नज़र आये थे।

RSS का मक़सद साफ़ है एक रहो नेक रहो। और ग़लत मत सहो। इसी विचारधारा के साथ BJP आगे बढ़ती है तो हरियाणा जैसी स्थिति बनेगी नहीं तो यूपी वाला हाल सबने देखा है। तो जिन लोगों को लगता है कि RSS क्या करता है कैसे करता है ? मुझे लगता है बहुत हद तक क्लियक हो गया होगा कि RSS क्या करता है और क्या कर सकने की ताक़त रखता है ? 
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