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शबाना आज़मी का मुस्लिम प्रेम ! खौल उठा हिंदुओं का खून !

आज बात करेंगे 1998 में आई फ़िल्म द फ़ायर की। इस फ़िल्म को Hardcore Islamist दीपा महता शबाना आज़मी और नंदिता दास ने बनाया था। दीपा फ़िल्म की डायरेक्टर थीं तो वहीं शबाना और नंदिता ने फ़िल्म में समलैंगिक किरदार निभाये थे। ये फ़िल्म इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ़ पर आधारित थी कहानी में दो लड़कियों के किरदार बेगमजान और रब्बो थे, लेकिन जानते हैं कट्टर इस्लामिक दीपा मेहता शबाना आज़मी और नंदिता दास ने नाम बदलकर राधा और सीता कर दिये थे।
शबाना आज़मी का मुस्लिम प्रेम ! खौल उठा हिंदुओं का खून !
कभी कहा जाता था कि सिनेमा समाज का आईना होता है, फ़िल्में आपको वास्तविकता से रूबरू कराती हैं, इस बात को कह कहकर सिने प्रेमियों के मन में जितनी कड़वाहट घोलने का काम इस सिने जगत ने किया है ना इसका अंदाज़ा लगा पाना भी आपके लिए आसान नहीं, लेकिन Thanks To social media की अब ऐसी ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिस पर कभी आपने और हमने ध्यान ही नहीं दिया। ध्यान छोड़िये। फिल्म में वो सीन देखते हुए कभी सोचा ही नहीं कि ये ऐसा ही है या वास्तविकता के नाम पर झूठ परोसा जा रहा है।

बॉलीवुड की फ़िल्मों ने तो जितना अपमान हिंदुओं का किया है शायद ही किसी ने किया हो। एक बार को तो लगने लगा था कि शायद कुछ ज़्यादा ही दिमाग लगाकर देख रहे हैं इसलिए कमियां नज़र आ रही हैं लेकिन शायद आप और हम पहले भी ठीक थे और आज भी ठीक हैं। दिमाग़ लगा रहे हैं तो समझ आ रहा है कि क्या सच्चाई थी और क्या हमें दिखाया गया। बॉलीवुड का इतिहास किसी से छिपा नहीं है, हिंदुओं के देवी देवताओं का अपमान तो इनके लिए आम बात थी, इसी कड़ी में आज मैं आपको उस फ़िल्म के बारे में बताने जा रही हूँ जिंसें दो समलैंगिक लड़कियों की कहानी को दिखाया गया था।


मैं बात कर रही हूँ 1998 में आई फ़िल्म द फ़ायर की। इस फ़िल्म को Hardcore Islamist दीपा महता शबाना आज़मी और नंदिता दास ने बनाया था। दीपा फ़िल्म की डायरेक्टर थीं तो वहीं शबाना और नंदिता ने फ़िल्म में समलैंगिक किरदार निभाये थे। ये फ़िल्म इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ़ पर आधारित थी। अब आप कहेंगे कि ऐसे बोल्ड सब्जेक्ट पर फ़िल्म बनी तो इसमें बुराई क्या थी ? आज मैं इसका कौन सा सच आपको बताने वाली हूं। दरअसल कहानी में दो लड़कियों के किरदार बेगमजान और रब्बो थे, लेकिन जानते हैं कट्टर इस्लामिक दीपा मेहता शबाना आज़मी और नंदिता दास ने क्या किया ? किरदारों के नाम बदल कर राधा और सीता कर दिये।

आप सोचिये कुछ और नाम भी रखे जा सकते थे लेकिन एक ऐसी फ़िल्म जिसमें दो लड़कियां समलैंगिक हैं उनके नाम जानबूझकर राधा और सीता दिखाये गये। राधा और सीता —दोनों का महत्व हिंदुओं के लिए कितना है ये आप भी जानते हैं। मानकर चलिये नाम बदलना कैरेक्टर की मांग की थी तो क्यों ना कुछ और नाम रख दिये जाते। राधा और सीता ही क्यों ? वो तो भला हो सोशल मीडिया जहां पर यूज़र्स ने इस ब्लंडर को पकड़ा और आज जन जन तक ये बात पहुँच गई, वरना हमारे आपके लिए तो ये गुजरे ज़माने की बात हो गई थी।

हैरानी की बात तो ये है कि आज का मीडिया भी प्रमुखता से आपको ऐसी ख़बरें दिखा देता है नहीं तो उस वक़्त किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि शबाना से सवाल पूछ ले कि आख़िर नाम क्यों बदले गये ? हां घुमा फिराकर ऐसा सवाल ज़रूर पूछा गया जिसके जवाब में शबाना अपनी सफ़ाई पेश करती हुई नज़र आई। पत्रकार ने पूछा था कि अगर कैरेक्टर के नाम बदलकर शबाना और सायरा कर दिये जाये तो क्या वो लोग इस फ़िल्म को चलने देंगे ? जिस पर शबाना ने कहा था- "देखिये शिवसेना बहुत अच्छे से जानती हैं कि Freedom Of Expression को लेकर वो ये लड़ाई नहीं लड़ पा रही है। इसलिए वो Deliberately communalise करने की कोशिश कर रही है " मतलब सवाल सुनिये और जवाब देखिये। इसका क्या मतलब है कि अगर मुस्लिमों के ओरिजनल नाम से फिल्म दिखाई जाती तो communalism हो जाता। इसलिए राधा और सीता कर दिया गया ? वाह शबाना जी वाह ।


वैसे अभी कुछ वक़्त पहले ही शबाना से इस फ़िल्म को लेकर सवाल हुआ था तो उन्होंने जो कहा वो आपको जानना चाहिये। शबाना ने बताया -"जब मैंने script पढ़ी तो मुझे पसंद आई थी क्योंकि मुझे अच्छे से पता था कि भारत में लोग इस बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं। वो इस मुद्दे पर बात करने से बचते हैं। इससे ज़्यादा मैं ये सोच रही थी कि क्या मैं ये कर सकती हूं ? क्या मुझे ये करना चाहिये। मैं बस ये सोच रही थी कि क्या होगा जब ये फ़िल्म भारत में रिलीज़ होगी ? फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं हर भारतीय का सामान्यीकरण नहीं कर सकती। हर कोई एक जैसा नहीं होता है। कुछ लोगों को ये फ़िल्म पसंद आ सकता है। वहीं कुछ लोग फ़िल्म पर सवाल उठा सकते हैं, नाराज़ हो सकते हैं पर ये फ़िल्म सवाल उठाने के प्रोसेस को शुरू कर देगी"

इंटिमेट सीन शूट करने को लेकर शबाना ने कहा था, "मेरे लिए वो बहुत मुश्किल था, मैं नंदिता को नहीं जानती थी। शूट का पहला दिन था, दीपा ने हमें लव मेकिंग सीन रिहर्स करने के लिए कहा। नंदिता औ मैं दोनों ही ऐसे सीन करने के आदि नहीं थे, तो सीन रिहर्स करते हुए नंदिता ने अपनी उंगली मेरे होठों पर रख दी लेकिन वो सीन रोमांटिक नहीं लगा। दीपा चिल्ला पड़ीं कि मैंने आपको उनके दांत ब्रश करने के लिए नहीं कहा है। खैर, सीन शूट हुआ लेकिन दीपा ने इस बात का ख़्याल रखा कि वहां पर हम दोनों दीपा और सिर्फ़ कैमरापर्सन हो"

ये तो बात रही कि शबाना ने फ़िल्म की शूटिंग कैसे की ? लेकिन नाम बदले क्यों गये ? इसका जवाब मैडम ने क्या दिया वो भी आपने सुन ही लिया। वैसे ये कोई पहली बार नहीं हुआ बल्कि ऐसा कई फ़िल्मों में हुआ है कि कैरेक्टर के नाम बदल दिये जाते हैं। कहीं कही पर तो ज़बरदस्ती मुस्लिम नाम रखकर उसे हीरो बना दिया जाता है जबकि असल में वो शख़्स हिंदू था। 
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