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100 साल पुरानी रहस्यमयी सुरंग की खोज, Uttarakhand में अंग्रेजो के दिमाग का हैरतअंगेज नमूना देखिए

Uttarakhand के टनकपुर पहुंचकर स्थानीय और सामाजिक कार्यकर्ता पवन पांडे से पता चला कि यहां है एक बहुत पुरानी टनल, जो अब तक दुनिया की नज़र से दूर है। जिसका संबंध अंग्रेज़ों से जोड़ा जाता रहा है। पहली रात टनकपुर में बिताने के बाद दूसरे दिन सुबह-सुबह Being Ghumakkad की टीम शहर से करीब छह-सात किलोमीटर दूर उच्योलीगोठ गांव पहुंच गई। पूर्णागिरी रोड पर बना ये गांव बेहद खूबसूरत है।
100 साल पुरानी रहस्यमयी सुरंग की खोज, Uttarakhand में अंग्रेजो के दिमाग का हैरतअंगेज नमूना देखिए

पहाड़ की तलहटी में बसा खूबसूरत हरा-भरा गांव, जिसके किनारे से बहती एक नदी और गांव के बीचों-बीच एक रहस्यमयी सुरंग! आखिर किसने बनाई ये सुरंग? क्या अंग्रेज़ों ने किया इस सुरंग का निर्माण? अगर हां, तो इस टनल को बनाने का मक़सद क्या था?  ऐसे हर सवाल का जवाब तलाशने Being Ghumakkad की टीम दिल्ली से उत्तराखंड की ओर बढ़ी।

क्या है इस रहस्यमयी सुरंग की कहानी?


उत्तराखंड के टनकपुर पहुंचकर स्थानीय और सामाजिक कार्यकर्ता पवन पांडे से पता चला कि यहां है एक बहुत पुरानी टनल, जो अब तक दुनिया की नज़र से दूर है। जिसका संबंध अंग्रेज़ों से जोड़ा जाता रहा है। पहली रात टनकपुर में बिताने के बाद दूसरे दिन सुबह-सुबह Being Ghumakkad की टीम शहर से करीब छह-सात किलोमीटर दूर उच्योलीगोठ गांव पहुंच गई। पूर्णागिरी रोड पर बना ये गांव बेहद खूबसूरत है। गांव के ही एक निवासी गोपाल हमें उस जगह पर ले गए जहां उस सुरंग के होने का दावा किया जाता है। पहली नज़र में देखने पर ये खंडहर की शक्ल में नज़र आता है। आस-पास झाड़ियां ही झाड़ियां नज़र आती हैं। शुरूआत में Being Ghumakkad को लगा यहां झाड़ियों के बीच किसी वर्षों पुरानी दीवार के अवशेष भर हैं, टनल नाम की कोई चिड़िया यहां नहीं है। लेकिन जब गोपाल ने ज़ोर देकर कहा यहां से अंदर देखो आपको रौशनी दिखेगी, तो हमने वही किया। सचमुच में वहां से रौशनी नज़र आ रही थी, जो कुछ-कुछ टनल सी प्रतीत हो रही थी।

इस चर्चा में 3 बातें क्लियर हुई। पहली ये कि स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां मौज़ूद सुरंग को अंग्रेज़ों ने बनाया। दूसरा ये कि सुरंग का इस्तेमाल अंग्रेज़ समय-समय पर नहर के रूप में किया करते थे। तीसरा ये कि टनल से लकड़ियों की सप्लाई की जाती थी, वो सप्लाई होती थी यहां से 30-35 किलोमीटर दूर कलढुंगा इलाके से। और ऐसा नहीं कि यहीं पर अवशेष हैं, यहां से 100 मीटर दूर टनल के कुछ और अवशेष मिलते हैं।

ये तो सिर्फ अवशेष भर है। इस बातचीत में हमें पता चला कि यहां से करीब एक किलोमीटर दूर करीब एक से डेढ़ किलोमीटर लंबी टनल आज भी मौज़ूद है। और वो टनल गांव में खेतों के बीचों-बीच छिपी है | आपको टनकपुर का इतिहास बता दें ताकि आपको इस शहर को समझने में आसानी हो। दरअसल, ब्रिटिश काल में टनकपुर कुमाऊं क्षेत्र का मुख्य व्यापारिक कस्बा हुआ करता था। यहां से करीब साढ़े 4 किलोमीटर दूर ब्रह्मदेव मंडी थी। जिसे चंद राजाओं से पहले कत्यूरियों ने बसाया था। माना जाता है भूस्खलन की वजह से ब्रह्मदेव मंडी का अस्तित्व खत्म हो गया और धीरे-धीरे टनकपुर मंडी का उदय हुआ। कहा जाता है टनकपुर में सबसे पहले 1810 में एक अंग्रेज़ लार्ड टलक अपने दोस्त के साथ आए। जिसने टनकपुर के सैलानी गोठ में छोटे-छोटे बंगले बनाए। टलक के नाम पर इस शहर का नाम टलकपुर होने की बात कही जाती है। उन्नीसवीं शताब्दी में अवध-तिरहुत रेल कंपनी द्वारा पीलभीत को जोड़ती रेल लाइन यहां तक बिछाई गई।

ये भी माना जाता है उच्यौलीगोठ के इस गांव तक भी अंग्रेज़ों ने रेल की पटरियां पहुंचा दी। जिसके अवशेष इस टनल के आस-पास कुछ साल पहले तक मिलते रहे हैं। ये बात इसलिए भी सही जान पड़ती है क्योंकि 1911-12 में अंग्रेज़ों ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का पहली बार सर्वे कराया था। सोचिए ब्रिटिशर्स ने 100 साल पहले पहाड़ पर रेल ले जाने का सपना देखा। और हम आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी सर्वे पर सर्वे किए जा रहे हैं।

अवशेष भी खत्म होने को हैं। लेकिन कुछ देर पहले हमने आपको बताया था गांव के बीचों-बीच एक जगह पर पूरी की पूरी टनल दिखाई देती है। कुछ ही देर बाद Being Ghumakkad की टीम उस खेत पर भी पहुंच गई जहां सुरंग संपूर्ण आकार में है। यहां से अंदर जाने के लिए बकायदा सीढ़ियां बनाई गई हैं। नीचे जाने पर थोड़ा डर लगता है। अंदर पहुंचकर घुटन का अहसास भी होता है। लेकिन Being Ghumakkad की टीम कुछ नया जानने के लिए यहां पहुंच ही गई। सुरंग के अंदर काफी हम्यूमिडी थी और लगातार टप-टप कर पानी गिर रहा था।

टनल के इस हिस्से से भी रोशनी की एक झलक दिखाई दे रही थी। जहां दौड़कर पहुंचने का जी कर रहा था। हमने यहां से आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन हमारे साथ क्या हुआ?

कुछ वक्त पहले उत्तराखंड में बादल फटने से शारदा नदी ने रौद्र रूप ले लिया था। तब इस सुरंग से भी पानी उफान मारता हुआ निकला। इसलिए यहां दिसंबर के वक्त भी ज़बरदस्त ह्यूमिडिटी थी। अभी हम टनल के इस हिस्से से बाहर निकले ही थे कि गांववालों ने बताया कि टनल का एक अवशेष शारदा नदी की लहरों से लगा हुआ करीब एक किलोमीटर आगे भी है। ये जानते हुए हम फिर आगे बढ़ चले। जंगल के बीचों बीच होते हुए Being Ghumakkad की टीम शारदा नदी के एक बीच पर पहुंची। जहां काफी देर खोजबीन के बाद नदी किनारे हमें वो हिस्सा भी दिखाई दे गया, जिसे अंग्रेज़ों के ज़माने की सुरंग का अवशेष बताया जाता है। हालांकि उसके बेहद करीब जाना खतरे से खाली नहीं था, क्योंकि ज़रा सी चूक होने पर शारदा अपने साथ बहा ले जाती।

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