India-China Border पर बने Chagzam Bridge का क्या है इतिहास?
Chagzam Bridge : घुमावदार ऊंचे-नीचे रास्ते, वादियों की बेपनाह खूबसूरती | नदी का कल-कल बहता पानी और उस पर सदियों पुराना एक पुल। इस पुल पर चहलक़दमी करते हुए शायराना अहसास होता है। कभी लगता है कोई जादुई दुनिया हो, कभी लगता है मानो स्वर्ग का रास्ता हो, तो कभी लगता है सावन के मौसम में मौज करने प्रकृति ने खुद कोई झूला लगाया हो।
मानव कारीगरी का अद्भुत नमूना है ये पुल। जो 500 से भी ज्यादा साल से इंसानी क़दमों को इस छोर से उस छोर तक बिना कोई तक़लीफ दिए ले जाता रहा है। इस पुल पर ना कुदरत के क़हर का असर हुआ, ना बम, ना ही बारूद का। आखिर ऐसा क्या है आश्चर्यचकित कर देने वाले इस पुल की कारीगरी में? कहां है ये पुल?
क्या है चकज़म पुल का इतिहास?
इस पुल का नाम है चकज़म। जो तवांग से करीब 24 किलोमीटर दूर बसा है। तवांग से कुछ स्थानीय लोग इस यात्रा में हमारे साथ हमराही बन गए। रास्ता खूबसूरत पहाड़ियों के बीच काफी घुमावदार है। जैसे-जैसे हम चकज़म के करीब आते गए तवांग चू नदी का शोर कानों में गूंजने लगा। ब्रिज से करीब 500 मीटर पहले फोर व्हीलर से उतरना पड़ता है, और पैदल यात्रा करनी पड़ती है। पूरे हिमालय रेंज में चकज़म, चकसम या जगसम शब्दों का इस्तेमाल होता रहा है। जिसका अर्थ होता है लोहे का पुल। ब्रिज को दूर से देखने पर लगता है, इस पर चलना काफी मुश्किल होगा। लेकिन जैसे ही इस पर कदम पड़ते हैं मन प्रफुल्लित हो उठता है।
अगर इस क्षेत्र के इतिहास पर नज़र डालें तो, माना जाता है हिमालय के चारों ओर चकज़म पुलों को बनाने का श्रेय टैंग्टन ग्याल्पो या यूं कहें तांगटोन ग्यालपो या यूं कहें लामा चाग-ज़ाम वांगपो को जाता है। अब आप सोच रहे होंगे आखिर ये टैंग्टन ग्याल्पो कौन थे? तो सुनिए उनकी भी कहानी। ग्यालपो एक कवि, दार्शनिक, इंजीनियर और तिब्बत में पहले दलाई लामा गेदुन ड्रुपा के शिष्य थे। उनका जन्म 14वीं शताब्दी में ल्हासा से करीब 100 किलोमीटर दूर रिनचेन डिंग नामक गांव में हुआ। कहा जाता है टैंग्टन ग्यालपो का पूरा जीवन बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रचार में बीता। ऐसा माना जाता है कि टैंग्टन ग्याल्पो ने तिब्बत, भूटान और अरुणाचल रीज़न में 108 लोहे के पुल बनवाए, जिनमें से 58 तवांग के आस-पास ही बने। ये सभी ब्रिज वास्तुशिल्प का चमत्कार माने जाते हैं। उस ज़माने में टैंग्टन ग्याल्पो ने इन पुलों का निर्माण कैसे किया, इसके बारे में कई रहस्य और किंवदंतियां सुनी-सुनायी जाती हैं।
आमतौर पर ये माना जाता है कि ग्याल्पो ने दलाई लामा के संदेशों को फैलाने के लिए लोहे के पुलों का निर्माण किया। लेकिन जब इस विषय पर हमने तवांग मॉनेस्ट्री के मॉन्क Thupten Shartse से बात की, तो ब्रिज़ बनाने की इस वजह को उन्होंने नकार दिया। ऐसा माना जाता है ग्याल्पो ने 1420 से 1430 के बीच तवांग जिले में चकज़म पुल का निर्माण करवाया। तवांग में इतने पुराने चकज़म अब सिर्फ दो ही बचे हैं। किटपी और मुक्तो क्षेत्र के बीच आवागमन के लिए तवांग चू नदी पर बना ये पुल 100 मीटर लंबा है।
गुजरते वक्त के साथ चकज़म ब्रिज को मजबूत बनाने के लिए इसमें कई आधुनिक सुधार हुए हैं। इसके नीचे सुरक्षा जाल लगाना भी इस सुधार का हिस्सा है। अब इस ब्रिज के नज़दीक ही एक आधुनिक सस्पेंशन ब्रिज भी है। आपको तवांग चू नदी को पार करने वाले पुल के दोनों छोर पर एक स्तूप भी दिखाई देगा। सिर्फ दो जंजीरों की मदद से पुल हवा में टिका हुआ है। दो जंजीरों के ऊपर लकड़ी के जालनुमा पैनल लगे हैं जो राहगीरों को ब्रिज को पार करने में मदद करते हैं। दोनों ओर रंगीन प्रार्थना झंडे भी लगे हैं जो इस क्षेत्र की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं।
ये समस्या तो इतिहास से जुड़ी हर पुरानी चीज़ को लेकर देखी जाती है। जिसकी देख-रेख ना हो, उसे लूटने वालों की लंबी क़तार लग जाती है। सोचिए जो ब्रिज़ शताब्दियों पुराना हो, जो चीन युद्ध की भयानकता को झेल चुका हो। जी हां, 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो चीनी सैनिकों ने चकज़म ब्रिज़ पर काफी बमवर्षा की, लेकिन कमाल देखिए एक भी बम इसका बाल भी बाक़ा नहीं कर सका।
अगर आप कभी चकज़म ब्रिज़ देखने जाएं तो इस ऐतिहासिक धरोहर का सम्मान करें। मटरगश्ती के नाम पर ब्रिज़ को नुकसान ना पहुंचाएं, किसी भी प्रकार की गंदगी ना फैलाएं, क्योंकि अरुणाचल के तवांग को कुदरत ने अप्रतिम सुंदरता का उपहार दिया है।