भादरिया माता: Pakistan की हिंगलाज माता से कनेक्शन, राष्ट्रपति भी नहीं रोक सके यहां आने से कदम
यहां जो आता, खाली हाथ नहीं जाता
इन्हें कहते हैं मरुस्थल की भादरिया माता
एक संत ने संवारा इस धरा को
आमजन ही नहीं राजा भी यहां सिर झुकाता
ये यात्रा है जैसलमेर की ज़मीं पर जनमानस की रक्षा करने वाली श्री भादरिया माता के निवास स्थान और संत श्री हरवंश राय निर्मल की तपोभूमि की |जैसलमेर की घुमक्कड़ी के दौरान Being Ghumakkad को इस स्थान के साक्षात्कार होने का मौका मिला।
राजस्थान में हरियाली कम देखने को मिलती है, लेकिन Being Ghumakkad की टीम हरे-भरे खेतों के बीच से होकर गुजरी। जैसलमेर पहुंचने से करीब 80 किलोमीटर पहले मिला विशाल द्वार। यहीं से शुरू हो जाता है भादरिया राय मंदिर। यहां भी कई किलोमीटर तक जंगल ही नज़र आएगा। जगह-जगह गायों के बाड़े दिखाई देंगे। गायें एक नहीं हज़ारों की संख्या में मिल जाएंगी। भादरिया माता के इस दिव्य स्थान में करीब 50 हज़ार गौवंश हैं। जिसमें से से 90 फीसदी सिर्फ नंदी हैं। इन गौवंश के लिए यहां पर्याप्त ज़मीन है। बीमार, घायल, एक्सीडेंटल हर तरह के गौवंश की यहां सेवा की जाती है।
करीब 5 किलोमीटर के बाद आता है भादरिया राय माता का दिव्य स्थान, जहां सुबह हो या शाम, भक्त शीश झुकाने चले आते हैं। शाम करीब 6 बजे भादरिया में आरती होती है, वो भी ढोल नगाड़ों के साथ। गर्भगृह के अंदर कैमरा ले जाना मना है। इसलिए हमने भी वो कोशिश नहीं की। लेकिन आप दूर से ही भादरिया मां के दर्शन कर सकते हैं।
आपके मन में ये सवाल ज़रूर आ रहा होगा आखिर भादरिया माता का इतिहास क्या है? कौन हैं ये देवी? तो जानिए। ये भाटी वंश की कुलदेवी कही जाती हैं। मंदिर का इतिहास करीब 1100 साल पुराना माना गया है। मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है।
भादरिया माता, हिंगलाज माता का अवतार मानी जाती हैं। हिंगलाज माता का विश्व प्रसिद्ध मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मौज़ूद है। भक्तों का विश्वास है कि माता की सात बहनें हैं। सबसे बड़ी बहन तनोट राय माता हैं। जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसी हैं। इसके अलावा माता की बहनें घंटियाली, कोलेडंगूर, देगराय, तेभडेराय और नगणेची मानी जाती हैं।
भादरिया माता को लेकर एक कहावत और सुनी जाती है। माना जाता है इसी स्थान पर भादरिया बहादरिया नाम का एक राजपूत अपने परिवार के साथ रहता था। ये परिवार तनोट माता का भक्त था। राजपूत परिवार में बुली नाम की एक बेटी थी। वो भी तनोट माता की अनन्य भक्त थीं। एक बार माड़ के राजा अपनी रानियों समेत इस जगह पर आए और उन्होंने माता के साक्षात दर्शन करने का अनुरोध बुली से किया। बुली के ध्यान लगाने पर तनोट माता ने अपनी बहनों समेत सबको दर्शन दिए। इस घटना के बाद इस जगह का नाम भादरिये बहादरिया के नाम पर भादरिया हो गया। बाद में माड़ के राजा ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया।
पहले भादरिया माता का मंदिर छोटा था। लेकिन जैसलमेर के नरेश महारावल गज सिंह भाटी ने विक्रम संवत 1888 में इस मंदिर का विशाल स्वरूप में निर्माण करवाया। महारावल गज सिंह भाटी को एक युद्ध में अप्रत्याशित रूप से विजय प्राप्त हुई थी। इसलिए राजा अपनी रानी के साथ पैदल जैसलमेर से श्रीभादरिया पहुंचे। महाराज ने इस मंदिर के 8 किलोमीटर की परिधि को दूध की धार दिलवाकर लगभग सवा लाख बीघा भूमि ओरण स्वरूप मां को भेंट कर दी। बाद में महारावल ज्वार सिंह ने भादरिया माता के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर में काले पत्थर पर आवड़ माता की सभी बहनों एवं भाई सहित आकृतियां दिखायी देती हैं। आवड़ माता बीच में कमलासन पर पद्मासन लगाए हुए विराजमान हैं। मूर्ति चार भुजाओं वाली, हाथों में चूड़ धारण किए हुए है। पहले दाहिने हाथ में त्रिशूल, दूसरे दाहिने हाथ में माला, बाएं हाथ में खड्ग,दूसरे बाएं हाथ में कमल का फूल है। गले में मुक्ताहार है।
भादरिया माता के मुख्य मंदिर के पीछे जाल का बहुत पुरना वृक्ष है, जो भादरिया माता का मूल स्थान माना जाता है। मंदिर के सामने से गुजरकर जाल के इस पेड़ की परिक्रमा की जाती है। मान्यता है कि यहां रेत के टीले पर एक भक्त ने सूखी टहनी गाड़कर भादरिया माता से प्रार्थना की थी, मां के चमत्कारों से दूसरे ही दिन उस टहनी में कोपलें फूट आयीं थीं। लोग यहां पर रुककर और धागा बांधकर मनौती मांगते हैं। मां अपने यहां आए भक्तों को कभी भी खाली हाथ नहीं लौटाती।
साल 1959 में पंजाब से संत श्री हरवंशसिंह निर्मल महाराज भादरिया पहुंचे। यहां उन्होंने जगदम्बा सेवा समिति ट्रस्ट का गठन किया। ट्रस्ट के माध्यम से मंदिर में विकास कार्यों सहित धर्मशाला का निर्माण, गौशालाओं की स्थापना, गोसंरक्षण के कार्य, ओरण का बचाव, लोगों को नशे से मुक्त करना, पुस्तकालय की स्थापना के कार्य करवाए। संत श्री हरवंशसिंह निर्मल जी की दूरदर्शी सोच के चलते विशालकाय लाइब्रेरी मंदिर परिसर में ही अंडरग्राउड बनायी गयी। यानी ज़मीन के नीचे इसका निर्माण हुआ है। इस लाइब्रेरी की खूबी ये है कि यहां ठंड के मौसम में गर्म और गर्मी के मौसम में ठंड का अहसास होता है। 15 मई 1998 को इस लाइब्रेरी में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम भी आ चुके हैं। डॉक्टर कलाम ने खुद अपनी किताब “टारगेट 3 बिलियन’’ के पेज नंबर 17 में इस स्थान का ज़िक्र किया। और भादरिया को एक चमत्कारी स्थान के रूप में बताया है।
बीइंग घुम्मकड़ की टीम ने भी इस पुस्तकालय को विहंगम पाया। यहां अनेकों-अनेक विषयों की पुस्तकों समेत हज़ार साल से भी ज्यादा पुरानी पांडुलिपियां सहेज कर रखी गयी हैं।
पूरे भादरिया को एक दिव्य स्थल बनाने के कारण संत श्री हरवंश सिंह जी निर्मल भी जन-जन में भादरिया महाराज के रूप में विख्यात हुए। भादरिया मंदिर परिसर में ही उनका समाधि स्थल है, फरवरी 2010 में भादरिया महाराज ने यहां समाधि ली थी। यहीं पर वो गुफा भी है, जहां महाराज कई-कई दिनों तक साधना में लीन रहते थे। जो कोई भी भक्त यहां आता है, यहां की चमत्कारी ऊर्जा में बंधकर रह जाता है। चैत्र नवरात्रि की सप्तमी के दिन भादरिया में विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। आप भी कभी अगर जैसलमेर की घुमक्कड़ी को आएं तो भादरिया जाना ना भूलें |