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क्या पिथौरागढ़ के कामाख्या मंदिर में होती है तंत्र मंत्र की साधना?

कामाख्या मंदिर एक शक्ति पीठ के रूप में दुनिया भर में पहचान रखता है। वो शक्ति पीठ जिस पर आम जनमानस के साथ-साथ औघड़, तांत्रिक लोग बहुत विश्वास करते हैं। कामाख्या देवी का असल मंदिर असम में है। लेकिन देवी का एक रूप उत्तराखंड के शहर पिथौरागढ़ की खूबसूरत वादियों में भी है। क्या इस मंदिर से भी असम के मंदिर जैसी ही मान्यताएं जुड़ी हैं।
क्या पिथौरागढ़ के कामाख्या मंदिर में होती है तंत्र मंत्र की साधना?

कामाख्या मंदिर : रिमझिम बारिश, आंख मिचौली का खेल खेलता कोहरा, खूबसूरत वादियां और मन में देवी कामाख्या का चेहरा | असम में है जिन मातारानी का चमत्कारी धाम, उत्तराखंड में कहां से आए उनके निशान? देवी कामाख्या के इसी रहस्य से पर्दा हटाने Being Ghumakkad की टीम दिल्ली से 525 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के शहर पिथौरागढ़ की ओर निकल पड़ी। सूरज ढलने के बाद Being Ghumakkad की टीम पिथौरागढ़ शहर पहुंच सकी। चकाचौंध तो हर शहर की कमोबेश एक जैसी होती है, इसलिए हमने 6 किलोमीटर दूर चंडाक की वादियों में डेरा डाल दिया। ये पूरा इलाका देवदार के पेड़ों से घिरा है। हल्की बूंदाबांदी भी इस इलाके को धरती की जन्नत कश्मीर सा खूबसूरत बना देती है।

हमें मां कामाख्या का पिथौरागढ़ शहर से कनेक्शन समझना था, इसलिए मंदिर में पहुंचने की ललक तेज़ थी। लेकिन दूसरे दिन सुबह से हो रही बारिश आगे बढ़ने के बावजूद बार-बार होटल लौटने को मजबूर कर देती। आखिरकार हिम्मत जुटाई और बारिश की बहार के बीच चंडाक से 13 किलोमीटर दूर कसनी गांव की ओर काफिला बढ़ चला। चंडाक की ऊंचाई से पिथौरागढ़ शहर का आकर्षण मन को मोहने वाला है। कुछ ही देर में शहर आ गया और अगले ही पल हम झूलाघाट वाले रास्ते में शहर से बाहर भी निकल आए, जहां कैंट एरिया से ही कासनी और कुसौली गांव की पहाड़ी पर नज़र आने लगा मां कामाख्या का मंदिर।

क्या पिथौरागढ़ के कामाख्या मंदिर में होती है तंत्र साधना?


आखिर के डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई एकदम सीधी थी, जिसे पूरा करने में कार को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन जैसे ही Being Ghumakkad की टीम ऊपर पहुंची, तो दिल बागबाग हो गया | हम तो क्या यहां से पिथौरागढ़ शहर का मनोहरी दृश्य देखकर किसी का भी चेहरा चमक सकता है। जिस जगह से पूरा पिथौरागढ़ क्रिस्टल क्लियर नज़र आता है, वहीं पर कार के पहिए थम जाते हैं, क्योंकि यहां से मातारानी के दर्शनों के लिए सीढ़ियों से पैदल चलकर ऊपर पहुंचना होता है।

सीढ़ियों से आगे बढ़ते रास्ते में मातारानी के दर्शनों के लिए ज़रूरी निर्देश लिखे थे | बोगनविलिया के फूल स्वागत करने को बेक़रार मिले | आर्मी क्षेत्र में दूर पित्र गंगा के दीदार भी हो गए, शहर का एक-एक हिस्सा बारिश की आंख मिचौली से स्पष्ट नज़र आने लगा। कुछ ही पलों में हम सीढ़ियों से होते हुए कामाख्या मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंच गए, मन में एक ही ख्याल था कि क्या पिथौरागढ़ शहर का कामाख्या मंदिर असम के कामाख्या शक्ति पीठ जैसा ही होगा, वो शक्ति पीठ जहां पर विश्वास है कि देवी की योनी गिरी। वो शक्ति पीठ जिस पर औघड़, तांत्रिक समेत देश-दुनिया की जनता अगाध विश्वास करती है। असम का वो कामाख्या मंदिर जो तंत्र साधना की सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक मानी जाती है।

प्रकृति की सुंदरता से दो चार होते हुए देवी कामाख्या के दर्शनों के लिए मन उतावला हुआ जा रहा था, यहां से दूर-दूर तक देखने पर एक बात स्पष्ट नज़र आ रही थी कि ईश्वर ने पिथौरागढ़ शहर को बड़ी फुर्सत और करीने से गढ़ा होगा। कुदरत के इस अनूठे उपहार के बारे में विचार करते हुए हमारे कदम खुद ब खुद मातारानी के दर्शनों की ओर बढ़ चले।

जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया तो सामने पंचमुखी देवी कामाख्या, सिंह पर विराजमान थी। देवी का ये रूप असम के कामाख्या जैसा नहीं था। ये भी सच नहीं था कि इस मंदिर का तंत्र-मंत्र से कोई रिश्ता है। लेकिन ये सच था कि इस मनोहरी इलाके में कामाख्या मंदिर की स्थापना का कनेक्शन असम से ही है। देवी कामाख्या के चमत्कारों पर पिथौरागढ़ वासियों का ही नहीं, दूर-दराज के लोगों का भी बहुत विश्वास है। बिगड़े काम बनाने के लिए, मन की मुराद पूरी करने के लिए लोग पैदल चलकर भी यहां आते हैं। कैंट एरिया में होने के चलते सेना और एयरफोर्स के जवान भी देवी के आगे दंडवत रहते हैं।

कामाख्या मंदिर में आकर लोगों के एक पंथ दो काज होते हैं। भक्ति की भक्ति, घुमक्कड़ी की घुमक्कड़ी। लोग मन की शांति के लिए भी यहां पहुंचते हैं। मंदिर के पिछले हिस्से में इस इलाके की सबसे ऊंची चोटी है। यहां आप शहर की चकाचौंध से दूर शांति की खोज करते-करते विभिन्न योग मुद्राओं के साथ दिन व्यतीत कर सकते हैं। और अगर हमारी तरह इंद्रदेव आपका भी साथ दे दें तो समझो दिन बन गया। पिथौरागढ़ पहुंचना बहुत आसान है। प्लेन के जरिए आप यहां नैनी-सैनी हवाई अड्डे पर उतर सकते हैं। रेल मार्ग के जरिए टनकपुर या काठगोदाम तक आया जा सकता है। उसके बाद का सफर टैक्सी या बस से ही करना पड़ेगा।
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