Advertisement

अद्भुत करिश्मा, Rajasthan में मिला दूसरा अमरनाथ, गुफा में रोज़ आते हैं महादेव। Parashuram Mahadev

आज ऐसे ही शिव के अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय स्थान की खोज में Being Ghumakkad की टीम बढ़ रही है, पहाड़ की कंदराओं में बसे परशुराम महादेव की ओर। यहां के नज़ारे, पहाड़, जंगल, हरियाली और झील देखकर हैरान मत हो जाना। ये हिमालय रेंज नहीं है, ये प्रकृति की गोद में बसे राजस्थान का सबसे दुर्लभ हिस्सा है, जिसकी चर्चा नहीं होती। ये राजस्थान का अप्रतिम सुंदरता से भरपूर स्थान है।
अद्भुत करिश्मा, Rajasthan में मिला दूसरा अमरनाथ, गुफा में रोज़ आते हैं महादेव। Parashuram Mahadev

कर्ता करे ना कर सके, शिव करे सो होय | 3 लोक 9 खण्ड में, शिव से बड़ा कोय !

अर्थात् 

कर्ता के चाहने मात्र से किसी कार्य को कर पाना संभव नहीं है, जब तक शिव चाहें। वो तीनों लोक और नव ग्रहों पर अपना आधिपत्य रखते हैं। उनसे बड़ा कोई नहीं है।


आज ऐसे ही शिव के अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय स्थान की खोज में Being Ghumakkad की टीम बढ़ रही है, पहाड़ की कंदराओं में बसे परशुराम महादेव की ओर।

यहां के नज़ारे, पहाड़, जंगल, हरियाली और झील देखकर हैरान मत हो जाना। ये हिमालय रेंज नहीं है, ये प्रकृति की गोद में बसे राजस्थान का सबसे दुर्लभ हिस्सा है, जिसकी चर्चा नहीं होती। ये राजस्थान का अप्रतिम सुंदरता से भरपूर स्थान है। आपके ज़ेहन में इससे पहले राजस्थान की छवि दूर-दूर तक नज़र आने वाले रेगिस्तान की रही होगी। आज आपके अंदर बसी उस छवि का खात्मा होने जा रहा है।


Being Ghumakkad की कभी भूल पाने वाली ये यात्रा दो चरणों में पूरी हो सकी। पहला चरण दिल्ली से जोधपुर तक। दूसरा जोधपुर से पाली ज़िले की ओर।परशुराम की जन्म स्थली को लेकर एक मत नहीं। कुछ जानकार कहते हैं वो मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे तो कुछ कहते हैं, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ। तो वहीं कुछ जानकारों का दावा है छत्तसीगढ़ के सरगुजा में परशुराम का जन्म हुआ। जो भी है, ये मान्यता है विष्णु अवतार चिरंजीवी परशुराम अरावली की इन पहाड़ियों पर कई वर्षों तक रहे, यहां उन्होंने घोर साधना की। आज उसी साधना स्थल की खोज में Being Ghumakkad की टीम आगे बढ़ रही है। इसी कड़ी में हम पाली ज़िले के रानी की तंग गलियों से होते हुए आगे बढ़े। रानी से परशुराम महादेव की दूरी करीब 25 किलोमीटर है। इस दौरान हमारा कारवां पाली के शहर सादड़ी से होता हुआ निकला। कुछ ही देर में वो स्थान गया, जहां परशुराम महादेव जाने वाले श्रद्धालु ज़रूर रुकते हैं। हमने भी यहां एक ब्रेक लेने का मन बना ही लिया।


 


असल में अरावली की तलहटी में मौज़ूद ये स्थान एक झील नहीं, बांध है। परशुराम महादेव से आने वाला पानी ही नहीं, आस-पास की कुछ और छोटी नदियों का जल यहां इकट्ठा होता है। ज्यादातर लोग खूबसूरती के चलते इसे झील मान बैठते हैं। यहां से परशुराम महादेव अभी करीब 10 किलोमीटर दूर है। इस 10 किलोमीटर की सड़क के दोनों तरफ घना जंगल है। असंख्य जंगली जानवर यहां रहते हैं। सूरज ढलते ही इस रास्ते से गुजरना मुश्किल हो जाता है। लेकिन दिन के उजाले में यहां का सफर किसी रोमांच से कम नहीं। इसी रास्ते के बीच-बीच में सिचाईं के कुछ पुराने तरीके आज भी दिखाई दे जाते हैं। इन्हें देखकर कुछ देर हम यहां रुकने पर मज़बूर हो गए।


ज़मीन से पानी निकालने की रहट या डाबरा तकनीक अब ना के बराबर इस्तेमाल होती है। बैलों की उपयोगिता भी कम हो चुकी है, तो यहां से गुजरने वाले लोग खुद इन्हें घुमाकर पानी निकालते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं। इस पानी को पीकर हम भी गंतव्य की ओर बढ़ चले। यहां से आगे का रास्ता घुमावदार और पहाड़ीनुमा है, जो कुछ देर बाद परशुराम महादेव की पार्किंग तक पहुंचा देता है।


ये हाथी पोल द्वार है। यहां से पैदल ही परशुराम महादेव मंदिर के दर्शनों को जाना पड़ता है। इस मार्ग में करीब 100 मीटर की दूरी तक पूजा सामग्री और खान-पान की दुकाने हैं। यहां से गुजरने पर लोगों को लगता है, अब तो परशुराम महादेव का पावन स्थल गया। लेकिन वो तब चौंक जाते हैं जब उन्हें पता चलता है, मुख्य मंदिर तो यहां से लगभग 3 किलोमीटर ऊपर खड़ी चढ़ाई में पैदल चलने पर मिलेगा। हालांकि लोगों को यहां पहुंचने पर थोड़ा सुकून ज़रूर मिलता है, क्योंकि यहाँ मौजूद तीन कुंड श्रद्धालुओं को अपनी और खींचने के लिए काफी रहते हैं।


इस स्थान पर अमरनाथ महादेव का मंदिर है, जिन पर जल चढ़ाने की परंपरा है। लोग परशुराम महादेव के दर्शनों से पहले यहां सिर झुकाकर आगे बढ़ते हैं। यहीं पर कुछ और मंदिर हैं। इसी जगह से शुरू होता है श्रद्धालुओं का असल इम्तिहान। यहां से आगे वही जा सकता है, जो एकदम फिट हो। इस रास्ते पर खड़ी सीढ़ियां हैं। अच्छे-खासे स्वस्थ आदमी इन सीढ़ियों से गुजरते वक्त हांफने लग जाते हैं। फिर भी लोग रुकते-रुकाते आगे बढ़ते हैं।


परशुराम महादेव की कठिन यात्रा में थकान से ही नहीं जूझना होता। आपको उन लंगूरों से भी ख़बरदार रहना पड़ता है, जो राहगीरों के इंतज़ार में टोली जमाए बैठे रहते हैं। असल में तो ये पर्वत श्रृंखला इन्हीं बेजुबानों की है, जिन्हें इंसान ने अपना बना लिया है। खाने की तलाश में ये लंगूर अक्सर श्रद्धालुओं के बेहद करीब जाते हैं। ये रास्ता कहीं सीमेंटेड तो कहीं कच्चा है। करीब एक घंटे पैदल चलने के बाद परशुराम महादेव की गुफा वाला वो पहाड़ नज़र आने लगता है, जहां शिव भक्त ने महादेव की उपासना की। समुद्र तल से करीब 3600 फीट की ऊंचाई पर बसे इस स्थान को देखकर हमारी जान में जान आती है।


जैसे-जैसे टीम Being Ghumakkad परशुराम महादेव की गुफा के करीब पहुंचने लगी पहाड़ियों पर मौज़ूद लंगूरों की हलचल भी तेज़ हो गयी। यहां अरावली की पहाड़ियों पर अद्भुत घना जंगल है। जिसमें फलों के साथ-साथ मजबूत लकड़ियों के वृक्ष भी हैं। हालांकि, अभी यात्रा पूरी नहीं हुई। इस हिस्से में भी सैकड़ों खड़ी सीढ़ियां हैं, जहां से होते हुए महादेव की गुफा तक पहुंचा जाता है। ये सीढियां खड़ी और खड़ी होती जाती हैं। इसी बीच वो दोराहा आता है, जहां से पहाड़ी की दूसरी तरफ से लोग परशुराम महादेव के दर्शनों को आते हैं। जी हां आप ठीक समझे, पहाड़ी के दूसरी ओर से भी सावन में रोज़ हज़ारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।


ये पहाड़ दो हिस्सों में बटा हुआ है | यहां नीचे पानी के तीन छोटे-छोटे कुंड है। ये पानी महादेव की गुफा से धीरे-धीरे निकलता रहता है। बरसात के दिनों में इसकी तीव्रता ज्यादा हो जाती है। जिसे ऊपर बढ़ते हुए सीढ़ियों पर महसूस किया जा सकता है।


आखिरी चंद कदम गुफा के अंदर बढ़ रहे हैं। कुछ ही क्षणों में हमारे सामने गए परशुराम महादेव और वहां का विहंगम दृश्य। महादेव के स्वयंभू शिवलिंग पर बूंद-बूंद गिरता पानी और अजब-गज़ब आकृतियां। ये कैसे बने, कब बने इसकी लंबी कहानी है। धार्मिक विश्वास से जुड़ी कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम को मातृहत्या का दोष लगा था, जो उन्होंने अपने पिता जमदग्नि ऋषि के आदेश पर किया था। ऋषि-मुनियों ने उस दोष के निवारण के लिए उन्हें अरावली पर्वत पर जाकर शिव साधना करने सुझाव दिया था। माना जाता है द्वापरयुग में परशुराम अऱावली पहुंचे। उन्होंने यहां से बहने वाली मातृकुंडिया नदी में स्नान कर पहाड़ पर शिव की घनघोर साधना की। 


कहा ये भी जाता है, पहले ये स्थान ऐसा नहीं था, परशुराम ने अपने फरसे के प्रहार से पहाड़ को चीरकर इसे गुफा का रूप दे दिया, ताकि उनकी साधना को किसी भी प्रकार से भंग ना किया जा सके। मंदिर में मौज़ूद शिवलिंग और उसके ऊपर की आकृति को लेकर भी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। यही बातें भक्तों को यहां खींचकर ले आती हैं।


ये सच है पहाड़ ऊपर से लगभग गोलाकार है, वहां कोई तालाब या पानी का स्त्रोत दिखाई नहीं देता है। फिर भी साल के चारों महीने यहां गिरते पानी में कोई कमी नहीं आती। ना ही भक्तों की भक्ति कम होती है। ये दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अगर आप भी Being Ghumakkad की तरह परशुराम महादेव की यात्रा करना चाहते हैं। आप चाहते हैं एक ही ट्रिप में trekking के साथ-साथ महादेव के रहस्यमयी स्थान के भी दर्शन हो जाएं तो ये अद्भुत स्थान है। परशुराम मंदिर कुंभलगढ़ के किले से करीब 9 किलोमीटर दूर है। यहां से नज़दीक का हवाई अड्डा उदयपुर और जोधपुर में हैं। यहां आने के लिए रानी और फालना नज़दीक के रेलवे स्टेशन हैं। जोधपुर और उदयपुर से यहां का रोड नेटवर्क भी बढ़िया है। दोनों ही शहरों से कैब के जरिए भी यहां पहुंच सकते हैं।

Advertisement
Advertisement