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Tanot Mata Mandir: Border पर आखरी हिन्दू मंदिर, जहां Indian Army करती है पूजा

जैसलमेर के रण में रहने वाली इन अद्भुत देवी की अनुकंपा को नज़दीक से समझने के लिए Being Ghumakkad की टीम जैसलमेर के लक्ज़री टेंट में एक रात बिताकर सुबह-सुबह भारत-पाकिस्तान सीमा की ओर बढ़ चली, जहां तनोट माता निवास करती हैं। जैसलमेर शहर से तनोट मंदिर करीब 120 किलोमीटर दूर है।
Tanot Mata Mandir: Border पर आखरी हिन्दू मंदिर, जहां Indian Army करती है पूजा

ऐसा अद्भुत नज़ारा दुनिया के किसी कोने में देखने को नहीं मिलेगा! थार रेगिस्तान में धोरों के बीच ऐसा दैवीय चमत्कार जिसे पाकिस्तान भी करता है नमस्कारऐसी करामात जिसके वार से दुश्मन के हज़ारों बम हो गए बेकार, देवी की ऐसी कृपा कि दो-दो युद्ध में यहां एक भी बम नहीं फटा, कोई इन्हें कहता है सरहद की रक्षक। तो कोई कहता है बॉर्डर का कवच, ये कोई और नहीं, इनका नाम है तनोट राय माता


जैसलमेर के रण में रहने वाली इन अद्भुत देवी की अनुकंपा को नज़दीक से समझने के लिए Being Ghumakkad की टीम जैसलमेर के लक्ज़री टेंट में एक रात बिताकर सुबह-सुबह भारत-पाकिस्तान सीमा की ओर बढ़ चली, जहां तनोट माता निवास करती हैं। जैसलमेर शहर से तनोट मंदिर करीब 120 किलोमीटर दूर है। बॉर्डर की इस शानदार सड़क पर ट्रैफिक कम होने की वजह से गाड़ियां सरपट-सरपट दौड़ती हैं। रेगिस्तान में कहीं हरियाली, कहीं बीहड़ तो कहीं लहलहाती सरसों की खेती दिल को खुश कर देती है।


यहां का सफर वाकई खास था। अलविदा कहती जनवरी की सुबह भी हाड़ कंपा देने वाली थी। लेकिन दुश्मन के दांत खट्टे करने वाली देवी की धरा को नमन करने की ख्वाहिश में सबके इरादे मज़बूत होते जा रहे थे। आखिरकार 120 किलोमीटर का सफर घुम्मकड़बाज़ों ने 2 घंटे में पूरा कर लिया। दूर से ही तनोट माता के शक्तिशाली स्थल के दर्शन होने लगे। मंदिर के नज़दीक आकर पता चला, ये दिव्य स्थान बीएसएफ यानी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की देखरेख में है।


पाकिस्तानी ब्रिगेडियर के माता के सामने नतमस्तक होने का सबूत मंदिर के अंदर मौज़ूद है। जो भी दर्शनार्थी या पर्यटक तनोट राय आते हैं, उनके लिए बाहर ही बड़ा पार्किंग स्थल है। मंदिर के ठीक सामने भी गाड़ियां पार्क करने की व्यस्था की गयी है। मंदिर की एक तरफ रेस्टोरेंट्स और पूजा सामग्री की दुकानें हैं। जो कोई पर्यटक भारत-पाकिस्तान सीमा तक जाना चाहता है, वो मंदिर के बाहर बीएसएफ ऑफिस से पास जारी करवा सकता है। यहां से भारत-पाकिस्तान सीमा सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर है। बॉर्डर पास के बिना कोई टूरिस्ट तनोट से आगे गाड़ियां नहीं ले जा सकता। मंदिर के अंदर जाने के लिए किसी तरह का पास या टिकट नहीं लगता। आप भरपूर श्रद्धा भाव के साथ अंदर जा सकते हैं।


तनोट माता के इतिहास का ज़िक्र हुआ तो पूरी कहानी सुनाते चलें। सबसे पहले ये जानिए आखिर कौन हैं तनोट राय माता? 

जैसलमेर के मरुस्थल में रहने वाली माता तनोट माता का एक नाम आवड़ माता है। ऐसा माना जाता है आवड़, हिंगलाज माता का ही एक रूप हैं। कहा जाता है 9वीं सदी में जैसलमेर के रहने वाले मामड़ जी चारण ने हिंगलाज माता की तपस्या की, इसके फलस्वरूप खुद माता ने उन्हें दर्शन दिए। मामड़ जी ने देवी स्वरूप संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। माता ने उन्हें सात पुत्री और एक पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद स्वरूप देवी खुद चारण की धर्मपत्नी मेहड़ू चारणी के गर्भ से आवड़ जी के रूप में जन्मी और उसके बाद छह पुत्रियां और एक पुत्र का भी जन्म हुआ। सातों बहनें आजीवन ब्रह्मचारी रहकर शक्ति अवतार के रूप में पूजीं गयी। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की बात करें तो तनोट के अंतिम भाटी राजा तनुराव जी ने 847 ईसवी में तनोटगढ़ की नींव रखी। और उसके बाद 888 ईसवी में तनोट दुर्ग और तनोट मंदिर की प्रतिष्ठा करवायी। भारत-पाकिस्तान के बीच दो युद्ध में तनोट माता ऐसा चमत्कार दिखाया कि पाकिस्तान भी नमस्कार किए बिना नहीं रह सका।


मुख्य द्वार के ठीक सामने विजय स्तम्भ है, जहां पर ध्वजा रोहण किया जाता है और सेना के वीर योद्धाओं को याद किया जाता है। इसके ठीक सामने एक प्राचीन कुआं हैं। कुएं के आगे ही तनोट माता का गर्भगृह है। देवी के दर्शनों के लिए पंक्ति बनाकर यहां से अंदर प्रवेश किया जाता है। जैसे बीइंग घुम्मकड़ की टीम ने किया। धीरे-धीरे श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं और माता के दर्शन कर पीछे से बाहर निकल जाते हैं। इसी रास्ते में भारत-पाकिस्तान युद्ध में तनोट माता के चमत्कारों के सबूत के तौर पर वो बम शीशे के एक फ्रेम में संभालकर रखे गए हैं। जो इस इलाके में गिरे तो ज़रूर लेकिन फटे नहीं। तनोट परिसर में ऐसे एक नहीं 450 से ज्यादा बम पाकिस्तान ने 1965 के युद्ध में गिराए, लेकिन पाकिस्तान के ये बम मंदिर का बाल भी बांका नहीं कर पाए। कहते हैं एक भी बम इस परिसर में नहीं फटा। 1965 में ही बीएसएफ ने यहां पर एक सीमा चौकी बनायी और मंदिर की पूजा अर्चना और व्यवस्था का काम अपने हाथों में ले लिया। 




तनोट माता के चमत्कारों से अभिभूत होकर पाकिस्तान सेना का एक ब्रिगेडियर शाहनवाज़ खान इस दिव्य स्थान को देखने के लिए लालायित हो उठा, बहुत कोशिशों और लगभग दो साल की मेहनत के बाद उसे तनोट आने आने की अनुमति भारत सरकार ने दी। पाकिस्तान के ब्रिगेडियर शाहनवाज़ के चढ़ाए चांदी के छत्र शीशे के कवच में संभालकर आज भी यहां रखे हुए हैं।


इसी जगह से चंद कदमों की दूरी पर तनोट माता विराजती हैं। इस छवि को देखने के लिए लोग दूर-दूर से जैसलमेर के तनोट राय परिसर में पहुंचते हैं। पंक्तिबद्ध होकर दूर से ही देवी के दर्शन किए जाते हैं। सुबह-शाम बीएसएफ के जवान यहां भव्य आरती करते हैं। आरती का समय सुबह 6 बजे और शाम 7 बजे है। बीएसएफ के जवान ही यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण करते हैं।  


देवी के दर्शनों के बाद भक्त जब बाहर निकलते हैं तो रास्ते में एक साथ ये अद्भुत नज़ारा सामने जाता है। एक साथ सैकड़ों रुमाल और चुनर लटके मिलते हैं। ऐसा विश्वास है कि तनोट माता यहां आने वाले सभी भक्तों की मुरादें पूरी करती हैं। इसलिए भक्त एक रुमाल या चुनर में कुछ रुपए बांधकर यहां टांग जाते हैं। 


तनोट राय मंदिर परिसर में नवरात्र के दिनों में साल में दो बार बड़े मेले का आयोजन होता है। तब यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन भी यहां काफी संख्या में भक्त औऱ पर्यटक पहुंचते हैं। अगर आप भी तनोट आना चाहते हैं तो अक्टूबर से मार्च तक का सीज़न श्रेष्ठ है। जैसलमेर देश के बड़े शहरों से प्लेन, रोड और ट्रेन नेटवर्क द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। जैसलमेर से यहां टैक्सी या बसों से पहुंचा जा सकता है।

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