Dhoni की क़िस्मत बदलने वाली देवड़ी माँ का रहस्य, 700 साल से कर रही मनोकामना पूरी
रूप काला, आंखें भी काली, 16 भुजाओं वाली, अद्भुत हैं ये काली, जो यहां आया, जिसने यहां सिर झुकाया, उसने मन का पाया, रांची की रक्षक, आदिवासियों की संरक्षक, झारखंड की इन देवी का नाम है देउड़ी माता!
भक्ति और भगवान में विश्वास करने वाले पहचान गए होंगे, जान गए होंगे ये झारखंड में देउड़ी या कहें दिउरी माता का मंदिर है। वो मंदिर जो हाल के वर्षों में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के चलते आस्था का नया केंद्र बनकर प्रसिद्ध हो गया है।
देउड़ी माता के इस चमत्कारी स्थान की प्रसिद्धि की कहानी इतनी भर नहीं है। बहुत कुछ है इस धाम से जुड़ा हुआ। इसी आश्चर्यचकित करने वाले इतिहास ने Being Ghumakkad को झारखंड की ज़मीं पर कदम रखने को मजबूर कर दिया। हमेशा की तरह घुमक्कड़ों की टीम दिल्ली से 1200 किलोमीटर दूर रांची के लिए रवाना हुई। यात्रा लंबी और थकान भर देने वाली थी, लेकिन देउड़ी माता के दर्शन करने ही थे, इसलिए गाड़ियां निरंतर चलती रही। जब घुम्मकड़ रांची पहुंचे तो पता चला देवी का ये धाम शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे-33 पर स्थित है।
रांची शहर से देउड़ी माता के मंदिर का रास्ता हर-भरा और लुभावना है। आस-पास पहाड़ी इलाका भी नज़र आता है। रांची से निकलने के करीब एक घंटे के भीतर Being Ghumakkad की टीम हाईवे पर ही बसे तमाड़ गांव पहुंच गयी। यहीं पर देउड़ी माता का मंदिर स्थित है। मंदिर के आस-पास भी भरपूर हरियाली नज़र आती है। मंदिर के बाहरी निर्माण में विविध रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इस निर्माण में अलग-अलग देवी-देवताओं को बनाया गया है। मंदिर की स्थापत्य कला उत्तर भारत के मंदिरों से काफी अलग प्रतीत होती है। झारखंड के पड़ोसी राज्य उड़ीसा में मौज़ूद मंदिरों में ऐसी वास्तुकला दिखायी देती है।
देउड़ी माता के मंदिर के बाहर ही पूजा सामग्री की दुकाने हैं। जैसे ही श्रद्धालु मंदिर के अंदर पहुंचते हैं, चौंक पड़ते हैं। अंदर का हिस्सा बाहरी मंदिर से अलग संरचना के रूप में बनाया गया है। इसका निर्माण बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। इसके निर्माण में इंटर-लॉकिंग सिस्टम का इस्तेमाल दिखता है। यानी एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोड़ने के लिए किसी चूने और गारे का इस्तेमाल नहीं बल्कि पत्थरों को काट-छांट कर एक दूसरे से फंसाया गया है। इसी हिस्से में देउड़ी माता का गर्भगृह है।
श्रद्धालुओं की ये भीड़ बेशक हाल के वर्षों में ज्यादा बढ़ी है। लेकिन माना ये भी जाता है कि 700 से 800 साल पहले से ये स्थान एक चमत्कारी स्थल के रूप में विख्यात रहा है। कहा जाता है मंदिर के अंदरूनी हिस्से का निर्माण 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच भूमिज मुंडा राजा ने किया। किंवदंतियों और जनश्रुतियों के मुताबिक एक बार राजा युद्ध में हारकर इस स्थान से गुजर रहे थे। उसी दौरान भूमिज मुंडा ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है तभी देवी के आशीर्वाद से राजा को अपना हारा हुआ राज्य वापस मिल गया। एक मान्यता ये भी कहती है कि ये मंदिर सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया। सम्राट अशोक तब के कलिंग और अब के उड़ीसा पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहे थे। हालांकि ऐसी किसी मान्यता को मंदिर के पुजारी नहीं मानते।
पुजारी जी कहते हैं मंदिर के अंदर मौजूद देउड़ी यानि काली यानि रुद्र प्रताप चंडी मां की मूर्ति को खुद देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा ने बनाया। देउड़ी माता के इस मंदिर पर आदिवासी समाज की बहुत आस्था है। ऐस भी कहा जाता है। ब्राह्मण पुजारियों के अलावा यहां आदिवासी पाहान यानी उनके पुजारी भी माता के दरबार में पूजा में शामिल होते हैं। देवी की महिमा ने इस स्थान को बहुत कुछ दिया है। साथ ही यहां के लोगों का अगाध विश्वास भी इस स्थान को सबसे अनोखा बना देता है।
देवी के इस पवित्र स्थल पर विश्वास ने कई लोगों की किस्मत अब तक बदली है। उसमें सबसे ऊपर हैं, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी। देउड़ी माता के दर पर धोनी के संघर्ष से भारतीय क्रिकेट टीम का सुपरस्टार बनने तक की तस्वीरें हैं। झारखंड के लोग ही नहीं खुद धोनी भी मानते हैं कि उनकी सफलता के पीछे देउड़ी मां का आशीर्वाद है। सोचिए उन दिनों से धोनी यहां पर मत्था टेकने आ रहे हैं, जब वो 1 रुपए भेंट चढ़ाते थे।
देवी के इस चमत्कारी और मनोकामना पूर्ण करने वाले स्थल की अगर आप यात्रा करना चाहें तो यहां पहुंचना बेहद आसान है। रांची तक के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से हवाई यात्रा की सुविधा है। ट्रेन के जरिए भी आप रांची जंक्शन पहुंच सकते हैं। रांची से लोकल टैक्सी या बस के जरिए आसानी से देउड़ी माता के मंदिर पहुंचा जा सकता है। देवी के इस अनुपम स्थान के बारे में आखिरी में कहेंगे
जो तन पर राख लगाए वो शिव हैं
जो दुष्ट को राख कर दे वो काली हैं