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ककनमठ मंदिर में रात में जाना क्यों है मना? क्या है इस मंदिर का रहस्य?

मुरैना से करीब 35 किलोमीटर दूर बना है ककनमठ मंदिर। 1000 साल पुराने इस मंदिर को देखकर कोई भी हैरत में पड़ सकता है। स्थानीय मान्यताएं हैं कि इसे भूतों ने एक रात में बनाया। मंदिर की बनावट अजीबोगरीब है, ज्यादातर हिस्से में पत्थरों को एक दूसरे से फंसाकर 100 फीट से भी ऊंचा मंदिर बनाया गया है। सबसे बड़ी बात ये कि, मंदिर एक हिंदू राजा की अपनी रानी के प्रति प्रेम की निशानी है। लेकिन इतिहासकारों ने सिर्फ ताजमहल को प्रेम की अनोखी निशानी माना।
ककनमठ मंदिर में रात में जाना क्यों है मना? क्या है इस मंदिर का रहस्य?

Being Ghumakkad की टीम बेहद रहस्यमयी ककनमठ मंदिर गई जिसे दुनिया भूतों के मंदिर के नाम से भी जानती है। इस मंदिर के ऐतिहासिक साक्ष्य और मान्यताएं बड़ी अजीबोगरीब और हैरान करने वाली हैं। दिल्ली से 335 किलोमीटर दूर Being Ghumakkad की टीम मुरैना होते हुए सिहोनियां पहुंची। लहलहाते बाजरे के खेतों के ऊपर से उमड़-घुमड़ करते बादल रुबरू हुए। करीब 2 किलोमीटर दूर से ही ऊंचाई पर बना ककनमठ मंदिर साफ-साफ नज़र आने लगा।ककनमठ मंदिर का सम्बन्ध कच्छवाह राजवंश से रहा है | ककनमठ नाम से ही प्रतीत हो जाता है कि ये शिव से जुड़ा मंदिर है | शिव के इस मंदिर को लेकर अनेकों किस्से-कहानियाँ प्रचलित हैं | कोई कहता है इसे भूतों ने एक रात में बनाया, कोई कहता है सूरज ढलने के बाद यहां रुकना मना है |

ककनमठ मंदिर से जुड़े रहस्यमयी किस्से    


भूतों से जुड़े किस्से-कहानियों के बारे में विचार करते हुए हम आगे बढ़ ही रहे थे कि तभी एक बाजरे के खेत में काम कर रहे किसान की बातों ने हमारे क़दम कुछ देर के लिए थाम लिए। इस किसान ने कहा अगर ककनमठ मंदिर जा रहे हो तो कैमरे बंद कर दो और मेरी बात गौर से सुनो। किसान कुछ ऐसा बताने जा रहा था, जो शायद आज तक कोई नहीं जानता था।

किसान की बात सुनकर एक बार को डर लगा और सोचा वापस कदम खींच लेते हैं। लेकिन भूतों के दावे का सच जानना था, इसलिए कार के चक्के खुद ब खुद आगे बढ़ते चले गए। कुछ ही मिनटों में अजीबोगरीब आकृति वाला अद्भुत मंदिर सामने था। मंदिर के द्वार से ही ककनमठ मंदिर की एक-एक शिला स्पष्ट नज़र आने लगी। मंदिर के सबसे ऊंचे शिखर को देखकर लग रहा था जैसे वो हवा में लटका है। ऐसा लगा मानो हवा का तेज़ झोंका आएगा और बड़े-बड़े पत्थर कभी भी नीचे गिर जाएंगे। मंदिर को देखकर साफ नज़र आता है कि ये पूरा नहीं अधूरा है | ककनमठ मंदिर को लेकर एक अजीबोगरीब किंवदंति सुनी जाती है | कहा जाता है सूरज ढलने के बाद यहां कोई नहीं रूकता। अगर गलती से भी रात में कोई रुक गया तो उसे वो नजारा दिखता है, जिसे देखकर किसी भी इंसान की रूह कांप जाए।

इन्हीं रहस्यमयी बातों को जानकर हम ककनमठ मंदिर खिंचे चले आए थे। मंदिर के कुछ और करीब पहुंचे तो पता चला इसे 11वीं शताब्दी में कच्छपघात या कहें कच्छवाह राजवंश के राजा कीर्तिराज ने बनवाया था। कहा जाता है राजा कार्तिराज अपनी पत्नी ककनावती से बेहद प्रेम करते थे। रानी परम शिवभक्त थी। उन्हें और राज्य की बाक़ी स्त्रियों को महादेव के दर्शनों के लिए दूर जाना पड़ता था। इसलिए राजा ने उनके लिए यहीं पर इस अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। लोग प्रेम के प्रतीक के रूप में ताजमहल को जानते हैं। आज़ादी के बाद हमारे इतिहासकारों ने भी मुगल बादशाहों से जुड़ी ज्यादातर निशानियों का बखान किया। वो आगरा से महज 115 किलोमीटर दूर इस अद्भुत नक्काशीदार शिव मंदिर को भूल गए।

क्या सच में ककनमठ मंदिर को भूतों ने बनाया?


भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉक्टर अशोक शर्मा ने जो बात Being Ghumakkad को बताई वो ऐतिहासिक दृष्टि से सही हो सकती है। ये भी सत्य है ककनमठ मंदिर को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं। स्थानीय लोगों का दावा है इस मंदिर को भूतों ने एक रात में बनाया। मंदिर का कुछ और हिस्सा भी बनना था लेकिन ब्रह्ममुहूर्त में कुछ ऐसी इंसानी गतिविधियां हुई जिसके चलते भूतों की टोली मंदिर बनाने का काम बीच में छोड़कर गायब हो गई। ऐसा भी कहा जाता है एक दिन ये मंदिर भरभराकर गिर जाएगा। लोग ऐसा इसलिए भी मानते होंगे क्योंकि मंदिर के निर्माण में कहीं भी किसी भी तरह के लेप जैसे चूना, मिट्टी, गारा इत्यादि का इस्तेमाल नहीं दिखता |

भूतों ने इस मंदिर को बनाया है इस बात का एक तर्क इसके निर्माण में इस्तेमाल पत्थरों को लेकर दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ककनमठ मंदिर में जिन लाल-भूरे पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है, वो सिहोनियां इलाके में नहीं मिलते। ऐसे में मंदिर में इस्तेमाल पत्थर एक हज़ार साल पहले आखिर कहां से आए होंगे, ये बात हर किसी को अचरज में डालती है, इसलिए लोग भूतों की थ्योरी पर भरोसा करने लग जाते हैं। वहीं सूरज ढलते ही मंदिर परिसर में न जाना इसलिए भी मना है क्योंकि पुरातत्व विभाग ने यहां जाने का समय दिन के उजाले में तय किया है। वैसे ASI इन बातों को सिरे से इनकार कर देता है कि मंदिर को भूतों ने बनाया होगा।

कहते हैं जितने कंकर उतने शंकर। कण-कण में महादेव का वास है। लेकिन एक बात ने शिव के इस धाम में Being Ghumakkad की पूरी टीम को परेशान कर दिया। वो थी मंदिर की वास्तुकला के रूप में विद्यमान मूर्तियां, इनमें से ज्यादातर को खंडित किया जा चुका था। मुख्य गर्भगृह के चारों ओर बनी मूर्तियां स्पष्ट रूप से क्रूरता की गवाही दे रही थीं।ककनठ मंदिर में मूर्तियां खंडित करके ये महापाप किसने किया, ये सवाल हमने पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉक्टर अशोक शर्मा से भी पूछा। उन्होंने दो बातों की ओर इशारा किया। पहला मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब, दूसरा प्राकृतिक आपदा।

तूफान, आदि की बातें देखने पर उतनी सच प्रतीत नहीं होती। जो बात सच प्रतीत होती है वो है खजुराहो और गुर्जर प्रतिहार शैली में बनी मंदिर की स्थापत्य कला, गर्भगृह के ठीक सामने बने नक्काशीदार ऊंचे-ऊंचे पिलर। साथ ही बिना चूना-मिट्टी या गारे के एक दूसरे के साथ जोड़े गए पत्थर। यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर इतने बड़े-बड़े पत्थर आखिर इतनी ऊंचाई तक एक साथ फंसे तो फंसे कैसे हुए हैं।

जिन बातों को मनुष्य सोच नहीं सकता वही महादेव की महिमा है। उनकी ये महिमा भारत भूमि के कण-कण में वास करती है। भूत-प्रेत की बातें तो विश्वास और अंधविश्वास से जुड़ी हैं। मानों तो सच, न मानों तो वहम। अगर आप इन बातों से इतर एक बेहतरीन नक्काशीदार शिव मंदिर के दर्शनों को जाना चाहते हैं तो कभी भी ककनमठ मंदिर पहुंच सकते हैं। हवाई यात्रा करने वाले टूरिस्ट या श्रद्धालु प्लेन से ग्वालियर पहुंचकर यहां जा सकते हैं। मुरैना, रेल नेटवर्क से भलीभांति जुड़ा है। रोड नेटवर्क से भी मुरैना पहुंचना आसान है। दिल्ली से ताज एक्सप्रेसवे से होते हुए मुरैना 325 किलोमीटर दूर मुरैना पहुंचा जा सकता है।
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