Dhari Devi के प्रकोप से Kedarnath में आया था विनाश | Uttarakhand
ऊं जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते
अर्थात्
जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदंबे, आपको नमस्कार है |
दिन में तीन बार रूप बदलने वाली, चारों धाम की रक्षक, सदियों से देवभूमि की धरा को थामे हुए, मां काली के रूप धारी देवी के धाम Being Ghumakkad की टीम गई। वही धारी देवी जिनके बारे में ना जाने कितनी बार लिखा, सुना और पढ़ा गया है। लेकिन देवी के चमत्कारों के आगे सब कम पड़ जाता है। इन्हीं धारी देवी पर Being Ghumakkad कहता है -
जल की धार में तुम, समय की चाल में तुम
चारों धाम की तुम रक्षक, सांसों की पतवार भी तुम
धारी देवी के धाम की धरा को छूने के लिए Being Ghumakkad की टीम पहले दिल्ली से करीब 230 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के ऋषिकेश पहुंची। यहां से करीब 120 किलोमीटर दूर पौड़ी जिले के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर कल्यासोड़ में विराजमान हैं धारी देवी। जिनके मंदिर की सुंदरता दूर से ही मन को मोह लेती है। यहां पहुंचने का सफर बेशक़ लंबा और थका देने वाला है। लेकिन देवी धारी के दर्शन करने से कब थकान दूर हो जाती है इसका अहसास ही नहीं होता।
धारी देवी से जुड़ी लोककथाएं तो इतनी हैं कि सुनते-सुनते थक जाएं। माना जाता है मंदिर में देवी की मूर्ति का सिर वाला हिस्सा है। यहां जाकर कोई भी भक्त पारंपरिक तरीकों से देवी की आराधना कर सकता है। देवी के उस चमत्कारी रूप की तस्वीर को कैमरे पर रिकॉर्ड करने की मनाही है। इसलिए आस्था का सम्मान करते हुए Being Ghumakkad ने उस छवी को रिकॉर्ड नहीं किया, सिर्फ बारी-बारी से टीम के हर सदस्य ने देवी के दर्शन किए।
रुप बदलने का रहस्य और देवी के वरदान की गाथा सदियों पुरानी बतायी जाती है। किंवदंतियों और जनश्रुतियों के मुताबिक धारी देवी ने मानव रूप में जन्म लिया। वो अपने 7 भाइयों में सबसे छोटी थीं। धारी अपने भाइयों से काफी प्रेम करती थी, लेकिन सभी भाई धारी से बेहद नफरत करते थे। वो इसलिए कि भाई मानते थे कि धारी के ग्रह-नक्षत्र उनके लिए ठीक नहीं हैं। समय गुजरने के साथ धारी देवी के पांच भाइयों की मौत हो गयी, ऐसे में 2 भाइयों को लगा कि ये सब धारी की वजह से हुआ है, इसलिए उन्होंने एक रात 13 वर्षीय धारी का सिर काटकर नदी में बहा दिया। ये सिर बहते बहते कल्यासौड़ के धारी गाँव तक आ पहुँचा।
कहा जाता है देवी ने सुबह - सुबह नदी किनारे कपड़े धो रहे एक युवक को आवाज़ देकर खुद को वहां से निकलवाया। उस व्यक्ति ने सिर को वहीं पर एक पत्थर पर स्थापित किया और खुद देवी ने भी पत्थर रूप ले लिया। कालांतर में यहां पर सुंदर मंदिर की स्थापना हुई, धीरे-धीरे लोग धारी गांव के नाम पर देवी को धारी देवी कहने लगे।13 वर्षीय बच्ची के धड़ वाला हिस्सा रुद्रप्रयाग के कालीमठ में माँ मैठाणी के नाम से प्रसिद्ध है, यहाँ भी माँ का भव्य मंदिर है। देवी के इस स्थान पर विराजने की एक नहीं अनेकों कथाएं यहां के लोग सुनाते रहते हैं।
धारी देवी अभी अपने भव्य स्वरूप में नज़र ज़रूर आती है। लेकिन कुछ साल पहले ऐसा नहीं था, 9 साल तक धारी देवी टिन के एक शेड में रहीं। दरअसल श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के तहत बने डैम के चलते धारी देवी का मंदिर डूब क्षेत्र में आ गया। जिसके बाद उनकी मूर्ति को अपलिफ्ट करना पड़ा। लोगों का विश्वास है इसी छेड़छाड़ के बाद 16 जून 2013 की रात केदारनाथ में भीषण जल प्रलय आया।
उस रात केदारघाटी में जल प्रलय आने से कुछ घंटे पहले तक सब कुछ सामान्य था, प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक रात दो घंटे पहले तक सब ठीक था। अचानक मौसम ने उथल-पुथल मचानी शुरू कर दी, और कुछ ही मिनटों में सैलाब ने सब लील लिया। टिन के शेड से मंदिर अब अपने स्थान पर वापस आ गयी है। अब इसकी झटा अलग ही नज़र आती है। दूर से ही मंदिर नज़र आता है। मंदिर के पुजारी धारी गांव के पांडे ब्राह्मण हैं। जो करीब 500 साल से यहां पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
1986 से पहले देवी के इस स्थान पर बलि देने की परंपरा थी, तब यहां पर भैंसे और सैकड़ों बकरे एक साथ कटते थे। लेकिन 1986 में बलि प्रथा बंद कर दी गयी। धारी देवी के मंदिर में हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि में हजारों भक्त अपने मन की मुराद को पूरा करने के लिए देश-दुनिया से पँहुचते हैं। ज्यादातर नवविवाहित जोड़े अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए माँ के मंदिर में प्रार्थना करते हैं। चार धाम की यात्रा तो एक नियत समय में की जाती है, वहां आप हर मौसम में नहीं जा सकते। लेकिन धारी देवी के चमत्कारी धाम के द्वार साल भर खुले रहते हैं। यहां आप किसी भी दिन, किसी भी महीने पहुंच सकते हैं।