नेपाल में राजशाही के समर्थन में आंदोलन के केंद्र में कैसे आए योगी आदित्यनाथ?
Yogi Adityanath: लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद से नेपाल में लगभग 13 सरकारें बदल चुकी हैं। अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं है, और सरकारें व नेता व्हीलचेयर की तरह घूम रहे हैं—कभी केपी शर्मा ओली, तो कभी प्रचंड।

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Yogi Adityanath: नेपाल में राजशाही की वापसी को लेकर एक बार फिर आंदोलन तेज हो गया है। इस आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा किंग ज्ञानेंद्र बनकर उभरे हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनकी दोबारा ताजपोशी की संभावना बन रही है। नेपाल में राजतंत्र के खात्मे के बाद यह पहली बार है जब जनता फिर से राजशाही शासन के समर्थन में सड़कों पर उतरी है।लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद से नेपाल में लगभग 13 सरकारें बदल चुकी हैं। अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं है, और सरकारें व नेता व्हीलचेयर की तरह घूम रहे हैं—कभी केपी शर्मा ओली, तो कभी प्रचंड। भले ही सरकार किसी की भी हो, लेकिन चेहरे वही हैं। जाहिर है, जनता का धैर्य अब जवाब दे रहा है, और इसी असंतोष के चलते सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गया।हैरानी की बात तब हुई जब आंदोलनकारियों ने किंग ज्ञानेंद्र के साथ योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लहराईं। कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ इस आंदोलन के केंद्र में आ रहे हैं।
नेपाल में गोरखनाथ पीठ और राजपरिवार का ऐतिहासिक संबंध
नेपाल के राजपरिवार पर गोरखनाथ पीठ और बाबा गोरखनाथ का लंबे समय से प्रभाव रहा है। अब इसी ऐतिहासिक संबंध के चलते नेपाल के शाही समर्थक योगी आदित्यनाथ को एक नए प्रतीक के रूप में देख रहे हैं।नेपाल में नाथ संप्रदाय का प्रभाव बहुत गहरा है। पिछले 10 पीढ़ियों से गोरखनाथ पीठ का नेपाल के शासकों पर सीधा असर रहा है। नेपाल में बड़ी संख्या में नाथ संप्रदाय के अनुयायी हैं, जो योगी आदित्यनाथ को एक मजबूत नेता और हिंदू शक्ति के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं।
किंग ज्ञानेंद्र की वापसी और योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें
हाल ही में जब नेपाल के पूर्व राजा किंग ज्ञानेंद्र त्रिभुवन एयरपोर्ट पर पहुंचे, तो उनके स्वागत के लिए जुटे समर्थकों और आंदोलनकारियों ने योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लहराईं। यह इस बात का संकेत है कि नेपाल में राजशाही समर्थकों के बीच योगी आदित्यनाथ की छवि कितनी मजबूत हो चुकी है।
नेहरू और कांग्रेस ने नेपाल के राजपरिवार और भारत के बीच खाई पैदा की!
अगर इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि नेपाल और भारत के संबंध हमेशा सहज नहीं रहे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, वी.के. मेनन और लेफ्ट इकोसिस्टम ने जानबूझकर नेपाल के राजपरिवार को भारत के करीब नहीं आने दिया।नेहरू को न सिर्फ राजशाही से, बल्कि नेपाल के हिंदू राष्ट्र होने से भी आपत्ति थी। कहा जाता है कि उन्होंने ऐसी कूटनीतिक नीतियां अपनाईं, जिनसे नेपाल भारत से दूरी बनाए रखे और नेहरू खुद को लोकतंत्र समर्थक दिखा सकें।
नेपाल में विशेष रूप से ऐसे राजनयिक (डिप्लोमेट) नियुक्त किए गए, जिन्होंने ऐसी नीतियां बनाईं जो नेपाल के राजपरिवार को भारत से अलग करने का काम करें। इस नीति का असर यह हुआ कि नेपाल में धीरे-धीरे राजशाही विरोधी विचारधारा को बढ़ावा मिला और अंततः राजशाही समाप्त कर दी गई।
राजीव गांधी सरकार और नेपाल पर आर्थिक नाकाबंदी
नेपाल और भारत के संबंधों में एक बड़ा मोड़ तब आया जब राजीव गांधी की सरकार ने नेपाल पर आर्थिक नाकाबंदी लगा दी। कहा जाता है कि इसकी एक प्रमुख वजह पशुपतिनाथ मंदिर में गैर-हिंदू सोनिया गांधी को प्रवेश न दिए जाने से कांग्रेस की नाराजगी थी।इस नाकाबंदी के चलते नेपाल में दवाइयों और आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई। यहां तक कि नमक जैसी बुनियादी चीजें भी लोगों को नहीं मिल पा रही थीं। इस संकट के कारण नेपाल की जनता में भारत के प्रति गहरा गुस्सा पैदा हुआ, जो आज भी महसूस किया जा सकता है।इस नाकाबंदी ने नेपाल के राजशाही समर्थकों और आम जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि भारत उनके लिए कितना मित्रवत है।
नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग क्यों हो रही है?
नेपाल में एक बार फिर राजशाही की बहाली की मांग जोर पकड़ रही है। लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं और संसदीय लोकतंत्र की जगह राजशाही शासन की वापसी की मांग कर रहे हैं। इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं—
1. राजनीतिक अस्थिरता: नेपाल में 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। बार-बार सरकारें बदलने से जनता में असंतोष बढ़ा है।
2. हिंदू राष्ट्र की भावना: नेपाल को 2006 में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था, लेकिन एक बड़ा वर्ग इसे फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहा है।
3. आर्थिक संकट: नेपाल की अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है, और लोगों को लगता है कि राजशाही के दौर में स्थिति बेहतर थी।
योगी आदित्यनाथ: नेपाल आंदोलन के पोस्टर बॉय
नेपाल में राजशाही समर्थकों के बीच योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण उनका गोरखनाथ पीठ से जुड़ा होना है। गोरखनाथ पीठ का नेपाल के राजपरिवार से पुराना संबंध रहा है, और योगी आदित्यनाथ इस परंपरा के सबसे प्रभावशाली महंत हैं। लोगों को लगता है कि योगी आदित्यनाथ का शासन मॉडल दिखाता है कि एक धार्मिक गुरु भी एक मजबूत और सक्षम प्रशासक हो सकता है। यही वजह है कि नेपाल के आंदोलनकारी योगी को पोस्टर बॉय के रूप में अपना समर्थन दे रहे हैं।
क्या नेपाल में राजशाही लौट सकती है?
यह सवाल अब चर्चा का विषय बन चुका है। हालांकि नेपाल में लोकतंत्र स्थापित हो चुका है, लेकिन जनता का बढ़ता असंतोष और राजशाही के समर्थन में हो रहे प्रदर्शन संकेत देते हैं कि यह बहस जल्द ही और तेज हो सकती है।नेपाल की जनता अब देख रही है कि भारत में योगी आदित्यनाथ जैसे नेता कैसे धार्मिक और प्रशासनिक नेतृत्व को संतुलित कर रहे हैं। इससे नेपाल में भी यह धारणा मजबूत हो रही है कि एक राजा फिर से देश की बागडोर संभाल सकता है।
अब आगे क्या?
नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत से जुड़ा सवाल भी है।योगी आदित्यनाथ की छवि इस आंदोलन के साथ तेजी से जुड़ रही है, और नेपाल में उन्हें एक सशक्त हिंदू नेता के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि, यह देखना बाकी है कि नेपाल की जनता और वहां की राजनीतिक व्यवस्था इस आंदोलन को किस दिशा में ले जाती है। लेकिन एक बात स्पष्ट है—नेपाल में राजशाही का समर्थन खत्म नहीं हुआ है, बल्कि समय के साथ यह और मजबूत हो रहा है।