Advertisement

तहव्वुर राणा का तो हो गया हिसाब, 'भगवा आतंक' का झूठ गढ़ने और देश के साथ छल करने वालों पर प्रहार कब होगा?

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण और 26/11 मुंबई हमले से जुड़ा यह पूरा प्रकरण न केवल भारत की कानूनी और कूटनीतिक जीत को दर्शाता है, बल्कि खूनी हमले के पीछे की कई अनकही कहानियों और उन नैरेटिव्स को भी सामने लाता है, जो उस समय की राजनीति और बदले की साजिशों का हिस्सा थे। मसलन 'भगवा आतंकवाद’, 26/11 हमला: RSS किताब का विमोचन, मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के खिलाफ नीति, बयान और तत्कालीन कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की नीति को भी उजागर करता है।
तहव्वुर राणा का तो हो गया हिसाब, 'भगवा आतंक' का झूठ गढ़ने और देश के साथ छल करने वालों पर प्रहार कब होगा?

26/11 मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाया जा चुका है. जिस अमेरिकी अदालत ने 2011 में ‘सबूतों के अभाव’ में उसे बरी किया था, उसी ने 2025 में उन्हीं सबूतों को पर्याप्त मानते हुए उसका प्रत्यर्पण भारत को सौंप दिया. 2011 में ही इस मामले की जांच कर रही NIA ने चार्जशीट पेश की और 2019 में मोदी सरकार ने पहली बार अमेरिका से राणा के प्रत्यर्पण को लेकर अनुरोध किया. मुंबई हमला, दिल्ली ब्लास्ट— दो ऐसे हमले हैं जो पिछले 15 साल में हुए हैं, जिनका साइज बड़ा था, परिणाम और साज़िश दूरगामी थे. राणा के भारत में आने के बाद कहा जा सकता है कि समय का कालचक्र घूमा है, जो राणा कभी रेकी के लिए भारत आया था, वो अब अंजाम भुगतने आया है. लेकिन कुछ सवाल हैं जिनके जवाब पूरा देश चाहता है. कुछ लोगों ने जो इस देश के साथ छल किया, उन्हें माफी माँगने की ज़रूरत है.

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण और 26/11 मुंबई हमले से जुड़ा यह पूरा प्रकरण न केवल भारत की कानूनी और कूटनीतिक जीत को दर्शाता है, बल्कि खूनी हमले के पीछे की कई अनकही कहानियों और उन नैरेटिव्स को भी सामने लाता है, जो उस समय की राजनीति और बदले की साजिशों का हिस्सा थे. मसलन 'भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ना, 26/11 हमला: RSS किताब का विमोचन, मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के खिलाफ पॉलिसी, बयान और तत्कालीन कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की नीति को भी उजागर करता है.

'भगवा आतंकवाद' नैरेटिव और उसकी सच्चाई


2008 के मुंबई हमलों के बाद, कुछ नेताओं, कथित बुद्धिजीवियों और कांग्रेस से जुड़े पत्रकारों-इकोसिस्टम ने आतंकवाद को हिंदुत्व से जोड़ने की कोशिश की. पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब के हाथ में बंधे 'कलावे' को आधार बनाकर 'भगवा आतंकवाद' का झूठा नैरेटिव गढ़ा गया. कांग्रेस नेता दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने अप्रत्यक्ष रूप से RSS पर सवाल उठाए, तो कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे ने 'संघ और बीजेपी के 'प्रशिक्षण कैंप' का जिक्र इस झूठे नैरेटिव को और हवा दी. इन बयानों ने न केवल देश की आंतरिक राजनीति को प्रभावित किया, बल्कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहने का मौका दिया कि भारत में हुए हमले उसका आंतरिक मामला है और उसका इस आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण इस नैरेटिव की कमजोर नींव को धराशायी करता है.

राणा, जो दाऊद गिलानी उर्फ डेविड कोलमैन हेडली का मास्टरमाइंड, हैंडलर और पाक आर्मी का मुख्य साज़िशकर्ता था. राणा पूर्व में पाक आर्मी का डॉक्टर रहा है और बाद में उसने कनाडा की नागरिकता ले ली. और बाद में अमेरिका में गिरफ्तार हुआ. उसका भारत आना इस बात का सबूत है कि 26/11 हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों की स्पष्ट भूमिका थी. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रत्यर्पण की मंजूरी और राणा का भारत लाया जाना यह साबित करता है कि 'सबूतों की कमी' का दावा अब टिक नहीं सकता.यह स्पष्ट रूप से पाकिस्तान प्रायोजित हमला ही था, भले ही कांग्रेसी लाख इसे डिनाई करें और तुष्टिकरण करते रहें. यह घटनाक्रम 'भगवा आतंकवाद' की कहानी और मनगढ़ंत नैरेटिव को सीधी चुनौती देता है.

मुंबई हमले की अनकही कहानी: जलवायु विहार (JVV)


26/11 मुंबई हमला सिर्फ ताज होटल, नरीमन प्वाइंट या ट्राइडेंट तक सीमित नहीं था. इस हमले की साजिश में एक और जगह थी, जिसे सबसे पहले निशाना बनाने की योजना थी—मुंबई का जलवायु विहार (JVV), एक ऐसी कॉलोनी जहां वायुसेना और नौसेना के रिटायर्ड अधिकारी रहते हैं. पत्रकार संदीप उन्नीथन ने इस अनकही कहानी से पर्दा उठाया. इसके बाद जो सच सामने आया वो रोंगटे खड़े कर देता है.

2010 में, मुंबई हमले के दो साल बाद, JVV कॉलोनी में अचानक SWAT टीम और बख्तरबंद गाड़ियां तैनात की गईं, जो लगभग दो साल तक वहां रहीं. कारण? डेविड हेडली ने NIA को बताया कि तहव्वुर राणा ने पवई के एक होटल में ठहरकर इस कॉलोनी की रेकी की थी. JVV को निशाना बनाने की वजह थी 1971 के भारत-पाक युद्ध की हार का बदला. राणा, जो खुद पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर था, ने कहा था, “1971 की हार का बदला लेना है.” JVV में कई 1971 युद्ध के वेटरन्स रहते थे, जिनमें से एक तस्वीर ढाका में पाक आर्मी के सरेंडर की ऐतिहासिक फोटो में मौजूद वेटरन की भी थी.

पाकिस्तान नेवी की SSG कमांडो यूनिट, जो पहले 1971 में मुंबई पर हमला करना चाहती थी, लेकिन फेल हो गई. मतलब जो कोशिश 1971 में नाकाम रही उसे पाक आर्मी-ISI ने लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकियों के जरिए 26/11 को अंजाम दिया. वहीं JVV पर हमले को सिर्फ इसलिए टाल दिया गया, क्योंकि ये कॉलोनी आतंकियों की लैंडिंग साइट JVV से 30 किमी दूर थी. इस साजिश का खुलासा उस बदले की आग को दिखाता है, जो 1971 की हार के बाद से पाकिस्तानी सेना के मन में सुलग रही थी. और भारत में लोग इसे महज हमला, आतंकी साज़िश मान रहे थे, ये हमले के साथ-साथ भारत के विरूद्ध अघोषित युद्ध था.

Once A Veteran, Always A Veteran!

कहते हैं कि Once A Veteran, Always A Veteran! भारत की ताकत हैं भारत के लोग, उसके जवान, इन सर्विस-आउट सर्विस भी. इस कहानी में सबसे खूबसूरत मोड़ तब आता है, जब संदीप उन्नीथन के पिता, एक 1971 युद्ध के वेटरन, ने अपना 80वां जन्मदिन उसी पवई के होटल में मनाया, जहां राणा ने ठहरकर JVV की रेकी की थी. उनके साथ थे विंग कमांडर कृष्णमूर्ति, जिनकी तस्वीर ढाका सरेंडर की ऐतिहासिक तस्वीर में है. आज उसी इलाके के पास NSG हब भी मौजूद है.

मनमोहन सिंह और तत्कालीन नीतियां

2008 हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से कहा था कि पाकिस्तान पर कार्रवाई से ‘बीजेपी को ध्रुवीकरण का फायदा’ हो सकता था, इसलिए उन्होंने कोई काउंट अटैक नहीं किया. ज्ञात हो कि ओबामा ने ही मनमोहन सिंह से पूछा था कि भारत ने पाकिस्तान पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की थी? यदि यह सच है, तो यह गंभीर सवाल उठाता है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू में तौला गया. यह दुखद है कि उस समय हमारी सरकार महज मिन्नतें कर रही थी, डोजियर दे रही थी और MFN को हटाने में सालों लगा दिए गए. नबाज शरीफ ने बाद में डॉ. सिंह को देहाती औरत कहा था, जिस पर बवाल मचा, बीजेपी ने भी इसे 2014 में भुनाया.

2008 से 2025: बदल गई तस्वीर?

2008 में मुंबई हमले ने भारत को गुस्सा और बेबसी का अहसास कराया था. एक तरफ थी हमारी सुस्त सरकारी व्यवस्था, मुस्लिम वोट बैंक में डूब चुकी कांग्रेस तो दूसरी ओर पाकिस्तान का डीप स्टेट. लेकिन 2025 का भारत उस भारत से बहुत अलग है. तहव्वुर राणा को अब घसीटकर भारत लाया गया है. पहले उसने भारत को सजा देने की साजिश रची थी, अब भारत उससे हिसाब लेगा. यह बदलाव न केवल कूटनीतिक और कानूनी ताकत को दर्शाता है, बल्कि उन मासूमों के लिए न्याय की उम्मीद भी जगाता है, जिन्होंने उस हमले में अपनी जान गंवाई. कुल मिलाकर राणा के ISI आकाओं में डर का माहौल है, और यह भारत की ताकत का प्रतीक है.

क्या इन सवालों के जवाब मिलेंगे?

क्या 'भगवा आतंकवाद' का नैरेटिव अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है? यह नैरेटिव उस समय की राजनीति का हिस्सा था, और राणा का प्रत्यर्पण इसे कमजोर करता है. वो जो कुछ भी NIA की कस्टडी में उगलेगा, समझिए कि एक तबके का भंडाफोड़ अवश्य होगा, आरोप-प्रत्यारोप बढ़ेंगे. अब सवाल ये उठता है कि क्या उन नेताओं को माफी नहीं मांगनी चाहिए, जिन्होंने बिना सबूतों के 'हिंदू आतंकवाद' को हवा दी और असली आतंकवादी को क्लीनचिट दी? क्या उस समय की नीतियों की समीक्षा नहीं होनी चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि किन लोगों ने देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया और जानबूझकर ऐसे बयान दिए जिससे दुश्मन को बच निकलने और बहाने बनाने का मौका मिला. मसलन कहा जाता है कि जब मुंबई हमला हुआ तो उस समय सुरक्षा ऐजेंसियों के लोग पाकिस्तान के ‘मरी’ में मौजूद थे वार्ता के लिए, जहां फोन काम नहीं करता, उनसे संपर्क भी नहीं साधा जा सका था. हां, जाते-जाते इन सवालों के जवाब भी मिल जाएं तो अच्छा रहेगा कि बाटला हाउस एनकाउंटर में किसने, किस लिए, किसकी शह पर इसे फर्जी कहा और क्या सोनिया गांधी सच में एनकाउंटर से दुखी होकर रोई थीं, जैसा कि सलमान खुर्शीद ने दावा किया था! इसी उम्मीद के साथ कि राणा से सच उगलवाया जाएगा, उसका हिसाब सूद समेत, चक्रवृद्धि ब्याज के साथ किया जाएगा, हमें भारत की सुरक्षा एजेंसियों, सरकार और तंत्र के बदले रवैयै की तारीफ करनी चाहिए जिन्होंने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक न सिर्फ आतंकवादी घटनाओं को कम किया, न्यूट्रलाइज किया बल्कि अमेरिका से राणा को घसीटकर भारत लाने में कामयाबी हासिल की.

Advertisement
Advertisement