Jagannath Puri में प्रभु जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा के बगल में करोड़ों का आलीशान महल !

जगन्नाथ पुरी धाम, जहां से होते हैं नाथों के नाथ प्रभु जगन्नाथ के पावन दर्शन। यही वो पावन स्थान है, जहां आकर प्रत्येक जगन्नाथ भक्त ख़ुद को धन्य समझता है। यही वो मंदिर है, जहां प्रत्येक दिन भक्तों का मेला लगता है। प्रभु जगन्नाथ की यही वो अलौकिक दुनिया है, जिसे धरती का बैकुंठ लोक कहा जाता है। और आज प्रभु की इसी नगरी में 200 करोड़ की इन्वेस्टमेंट हो रही है। प्रभु जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा के बग़ल में आलीशान रिजॉर्ट बनाने की प्लानिंग हो रही है। लेकिन इसके पीछे का कारण क्या है?
जगन्नाथ भक्तों की बल्ले-बल्ले
ओडिशा में समुद्र किनारे बसी जगन्नाथ पुरी धाम की मिस्ट्री और हिस्ट्री, आज भी उनके भक्तों के लिए, दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए, बुद्धिजीवियों के लिए और नास्तिकों के लिए एक मिस्ट्री बनी हुई है। मंदिर की चौखट से लेकर शिखर ध्वज तक, चार दिशाओं में स्थापित मंदिर के चार द्वार, मंदिर के भीतर प्रभु जगन्नाथ का धड़कता दिल यानी ब्रह्म पदार्थ, और हवा के विपरीत दिशा में लहराता पतित पावन बाना। एक-एक कदम पर प्रभु जगन्नाथ की ये दुनिया चमत्कारों से भरी पड़ी है। सबसे बड़ा चमत्कार तो अधूरी प्रतिमा का भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करना है।
जगन्नाथ पुरी धाम में प्रभु जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भाई बलराम संग वास करते हैं। भगवान विष्णु को सम्प्रति ये धाम इस कलियुग का इकलौता बैकुंठ लोक है। आज भी अधूरी प्रतिमा का सच और प्रतिमा में धड़कता गिरधर धारी श्री कृष्ण का दिल, दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य बना हुआ है। अधूरी मूर्तियों के पीछे की कहानी जितनी दिलचस्प है, प्रतिमा उतनी चमत्कारी भी हैं। पौराणिक मान्यताएँ यहीं कहती हैं:
प्रतिमा को बनाने से पूर्व राजा इंद्रदयुम्न के समक्ष विश्वकर्मा जी ने एक शर्त रखी थी कि, जहां वे मूर्तियों का निर्माण कार्य करेंगे, वहां कोई भी नहीं आएगा, यदि कोई अंदर आता है, तो वे मूर्तियों को बनाने का कार्य बंद कर देंगे। भगवान विश्वकर्मा की बात राजा ने तुंरत मान ली, क्योंकि वे उसे बनवाने के लिए बहुत उत्साहित और भावुक थे। इसके पश्चात विश्वकर्मा जी उन मूर्तियों को बनाने के कार्य में लग गए। वहीं, उनके इस दिव्य कार्य की आवाज दरवाजे के बाहर तक आती, जिसे राजा रोजाना सुनकर संतुष्ट हो जाते थे, लेकिन एक दिन अचानक से आवाजें आना बंद हो गई, जिस कारण राजा इंद्रदयुम्न सोच में पड़ गए और उन्हें ये लगा कि मूर्तियों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इस गलतफहमी में उन्होंने दरवाजा खोल दिया, शर्त अनुसार दरवाजा खुलते ही विश्वकर्मा भगवान वहां से ओझल हो गए, जबकि प्रतिमाएं तैयार नहीं हुई थीं। लोगों का ऐसा मानना है कि तभी से ये मूर्तियां अधूरी हैं और इन तीनों मूर्तियों के हाथ-पैर-पंजे नहीं होते हैं।
आज इन्हीं अधूरी प्रतिमा के बग़ल में आलीशान रिजॉर्ट बनाने की तैयारी हो रही है। 200 करोड़ की लागत से एक ऐसा आलीशान रिजॉर्ट बनाने का ऐलान हुआ है, जिसमें 300 कमरे होंगे, ताकि जगन्नाथ पुरी धाम आने वाले श्रद्धालुओं को आधुनिक सुख-सुविधाओं के साथ आध्यात्मिक सुकून की प्राप्ति हो सके। गौर करने वाली बात ये है कि मंदिर से 8 किलोमीटर की दूरी पर बनने वाले इस रिजॉर्ट में ना ही शराब मिलेगी और ना ही मांसाहार भोजन। हालाँकि डीलक्स कॉटेज, स्पा, एम्फीथिएटर, जॉगिंग ट्रैक, टेनिस कोर्ट और वेलनेस सेंटर जैसी A1 सुविधाएँ मिलेंगी। और 2026 तक पूरा का पूरा रिजॉर्ट बनकर रेडी हो जाएगा।
जगन्नाथ धाम के बग़ल में करोड़ों रुपये का रिजॉर्ट ये दर्शाता है कि अयोध्या, काशी और देश के अन्य तीर्थों के तर्ज़ पर अब जगन्नाथ पुरी को भी टूरिज़्म के नक़्शे से चमकाना शुरू हो चुका है। हालाँकि मंदिर से 8 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र किनारे रिजॉर्ट का निर्माण क्या उचित है?