सनातन के आगे नतमस्तक हुआ अफगानिस्तान, राम-राम जपने लगा तालिबान
इसी तालिबान ने अब के सनातन के आगे हार मान ली है. या यूं कहा जा सकता है कि तालिबान भी सनातन की ताकत समझ चुका है और मान गया है कि अगर उसे लंबे वक्त तक सत्ता में बने रहना है तो सनातन का रास्ता तो अपनाना ही पड़ेगा.
तालिबान राज आने के बाद भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान अक्सर चर्चाओं में बना रहता है. तालिबान द्वारा वहां के लोगों की आजादी छीनने की खबरें लगातार सुर्खियां बनाती रहती हैं. दरअसल तालिबान दुनिया का सबसे कट्टर इस्लामिक संगठनों में से एक है और यह शरियत के अलावा कोई दूसरा कानून और इस्लाम के अलावा किसी और धर्म को नहीं मानता. लेकिन इसी तालिबान ने अब के सनातन के आगे हार मान ली है. या यूं कहा जा सकता है कि तालिबान भी सनातन की ताकत समझ चुका है और मान गया है कि अगर उसे लंबे वक्त तक सत्ता में बने रहना है तो सनातन का रास्ता तो अपनाना ही पड़ेगा.
अब आप सोच रहे होंगे कि अचानक से ताबिलान का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया तो इसका पूरा श्रेय जाता है भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को. दरअसल साल 2021 में ताबिलान एक बार फिर से अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ था. तालिबान राज के वापस आने के बाद न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया सकते में आ गई. पूरी दुनिया तालिबान के उस क्रूर शासन को याद करने लगी जब अफगानिस्तान इस्लाम को छोड़कर दूसरे धर्म वालों के लिए नर्क के समान हो गया था. तालिबान की वापसी के साथ ही अफगानिस्तान में वही सब हो भी रहा था जिसके डर से दुनिया आशंकित थी.
सत्ता में वापसी करते ही तालिबान ने सबसे पहले वहां रहने वाले हिंदुओं और सिखों की जमीन को जबरन छीन लिया. हिंदुओं और सिखों पर हमले बढ़ गए, उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बढ़ गया जिस कारण उन्हें हर समय अपनी जान की चिंता सताने लगी. देश में हालात इतने खराब हो गए थे कि जिस जगह वे पैदा हुए, पले बढ़े अब एक भी दिन वहां नहीं रहना चाहते थे इसलिए उन्होंने भारत से शरण मांगी. तब इन लोगों को पीएम मोदी का साथ मिला था. तब केंद्र सरकार ने शरण मांगने वाले हिंदुओं और सिखों को हवाई जहाज के जरिए बाहर निकाला था.
दूसरी बार सत्ता में वापसी के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया का शासन लागू करने का ऐलान कर दिया, वहां जो भी बचे खुसे हिंदू थे उन्हें भी इस्लामिक कानून मानने के लिए मजबूर कर दिया गया, लेकिन नई दिल्ली में बैठी मोदी सरकार वहां होने वाली हर घटना पर नजर बनाए हुए थे. शायद मोदी तालिबान के आने के साथ ही इस बात का खाका बना चुके थे कि इन्हें किस तरह वश में करना है.
सत्ता में आने के बाद तालिबान के सामने सबसे बड़ी चुनौती भी अफगानिस्तान की जनता को भूख से आजादी दिलाने की, मोदी सरकार ने इसे ही सबसे बड़ा हथियार बनाया और भारी मात्रा में देश के लिए गेहूं और दवाइयां भिजवाई. यहीं नहीं अफगानिस्तान के किसानों के खेतों में अच्छी पैदावर हो इसके लिए भारी मात्रा में कीटनाशक दवाइयां भी दीं. मोदी सरकार का यह दांव काम कर गया और तालिबान भारत की बात न सिर्फ सुनने लगा बल्कि अब मानने भी लगा है और इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है ताबिलान द्वारा हिंदुओं और सिखों को उनकी जमीन वापस लौटाने का फैसला करना. जी हां तालिबान ने हिंदुओं और सिखों की जिस जमीन को हड़प लिया था अब वह उन्हें लौटा रहा है.
यहीं नहीं तालिबान इन दिनों भारत के कट्टर दुश्मन पाकिस्तान की भी हकीकत समझ चुका है जिस कारण दोनों के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण चल रहे हैं. यह स्थिति भी भारत के लिए अच्छी ही है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान राज के बाद मध्यएशिया में भारत की चुनौतियां बढ़ती दिख रही थी लेकिन तालिबान पर जिस तरह से मोदी सरकार का प्रभाव बढ़ रहा है उससे ऐसा कहा जा सकता है आने वाले दिनों में यहां भी जय श्री राम के नारे सुनने को मिलेंगे.