आखिर छठ पूजा में पानी में खड़े होकर ही क्यों दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य?
छठ पूजा के दौरान सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देना एक पवित्र और महत्वपूर्ण परंपरा है। इस अनुष्ठान में भक्त कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास में भगवान विष्णु जल में वास करते हैं और सूर्य देवता को अर्घ्य देने से दोनों की पूजा एक साथ हो जाती है।
बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के साथ-साथ देशभर में धूमधाम से मनाया जाने वाला छठ महापर्व अब केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि श्रद्धा, आस्था, और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। इस पर्व में सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देने का विशेष महत्व है, लेकिन इसके पीछे कई धार्मिक, पारंपरिक, और वैज्ञानिक कारण भी जुड़े हैं। इस साल दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना नदी के प्रदूषण स्तर को देखते हुए यमुना घाट पर छठ पूजा की अनुमति देने से इंकार कर दिया है, जिससे छठ पर्व मानने वालों के बीच निराशा जरूर है। ऐसे में यह जानना रोचक है कि आखिर छठ महापर्व में जल का इतना विशेष महत्व क्यों है और क्यों यह पर्व नदी-तालाब के किनारे ही मनाया जाता है।
पानी में खड़े होकर क्यों दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य?
छठ पूजा में नदी या तालाबों के किनारे कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने का रिवाज है। यदि नदी या तालाब का पानी उपलब्ध न हो तो कृत्रिम जलाशय बनाकर भी श्रद्धालु इसी परंपरा को निभाते हैं। यह परंपरा केवल किसी रिवाज का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसमें गहरे धार्मिक कारण छिपे हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, कार्तिक मास में भगवान विष्णु जल में वास करते हैं, और सूर्य ग्रहों के देवता माने गए हैं। छठ पूजा में जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से भक्त भगवान विष्णु और सूर्य दोनों की ही पूजा एक साथ करते हैं। छठ महापर्व का यह नियम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी प्रासंगिक है। सूर्य को अर्घ्य देते समय जल के संपर्क में रहने से शरीर पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है। माना जाता है कि सुबह और शाम के समय सूर्य की किरणें शरीर के लिए फायदेमंद होती हैं, और जल में खड़े होकर सूर्य की रोशनी का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है, जो सेहत के लिए लाभकारी होता है। इस प्रक्रिया से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और कई लोग इसे मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी मानते हैं।
सूर्य अर्घ्य के दौरान क्यों नहीं पड़ने चाहिए छींटे?
छठ पूजा में सूर्य अर्घ्य देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि पानी के छींटे पैरों पर न पड़ें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह पूजा पूरी पवित्रता और ध्यान के साथ की जानी चाहिए, जिसमें जल का शुद्धता बनाए रखना आवश्यक है। जब भक्त पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो जल से पैरों पर छींटे न पड़ने देने की मान्यता है कि इससे पूजा का पवित्र भाव भंग नहीं होता और व्यक्ति की ध्यान और एकाग्रता बनी रहती है।
महाभारत के समय से चली आ रही परंपरा
छठ महापर्व के बारे में मान्यता है कि इसकी शुरुआत महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण, जो अपने कवच-कुंडल के लिए प्रसिद्ध थे, ने प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देने का संकल्प लिया था और नदी में कमर तक पानी में खड़े होकर ही सूर्य की उपासना करते थे। कर्ण का यह कर्मकांड सूर्य की कृपा प्राप्त करने और अपने जीवन को पवित्र रखने के लिए किया जाता था। इसी परंपरा को आज भी छठ पूजा के दौरान निभाया जाता है, जिससे यह त्योहार सूर्य पूजा और उसकी शक्ति का प्रतीक बन गया है।
छठ महापर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह आस्था, पवित्रता, और पर्यावरण के संरक्षण का प्रतीक भी है। इस पर्व में नदियों और जलाशयों का महत्व हमारे प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।