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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की गद्दी को लेकर एक्शन मोड़ में काली सेना

सौ बात की एक बात ये कि हर कोई यही जानना चाहता है कि शंकराचार्य की चयन क्रिया क्या कहती है और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाए जाने का सच क्या कहता है।यही जानने के लिए जब हम ख़ुद शंकराचार्य जी के पास पहुँचे, तो उन्होंने इस पूरे विवाद की पिक्चर हमारे सामने लाकर रख दी ।दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद  की गद्दी को लेकर एक्शन मोड़ में काली सेना

देश के शंकराचार्यों की गद्दी अभी भी सवालों के घेरे में है, चार मठों के चारों शंकराचार्य से समूचा विश्व परिचित है।आदि शंकराचार्य द्वारा चार मठों की स्थापना उत्तर का ज्योतिर्मठ, दक्षिण का श्रृंगेरी, पूर्व का पुरी और पश्चिम का द्वारका ।यही से विश्व भर में सनातन की धारा का प्रवाह हो रहा है और ये सिलसिला अबका नहीं बल्कि सदियों पुराना है।आज की डेट में देश के चारों शंकराचार्य प्रत्येक सनातनी के लिए पूजनीय है।क्योंकि इन्हीं का नेतृत्व आम जनमानस को शास्त्र आधारित सही-गलत का बोध करा रहा है।लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो इन्हीं को बुरा भला बोल रहे हैं।फिर चाहे वो स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हों या फिर स्वामी सदानंद सरस्वती जी मौक़ा राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का हो या फिर केदारनाथ से सोना ग़ायब होने वाला विवाद ।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शास्त्र अनुसार, कई दफ़ा मोदी सरकार से सवाल किये हैं।जिसे देखते हुए समाज का एक धड़ इन दिनों इनका विरोधी हो गया है।संत समाज से आने वाले स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने तो स्वामी  ढोंगी और अपराधी करार दिया। इसके साथ ही अब उनसे ब्राह्मण होने का सबूत माँगा जा रहा है।जी हाँ, शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष और काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप ने राजधानी दिल्ली में धर्म संसद आयोजित किये जाने का ऐलान किया है।राखी के अगले दिन 20 अगस्त को दिल्ली में साधु संतों का जमावड़ा देखा जाएगा।काली सेना के मुखिये की मानें, तो संन्यासी अखाड़ों को लेकर आचार्य महामंडलेश्वर, संत समाज, काशी विद्वत परिषद, मैथिली विद्वत परिषद और अखिल भारतीय विद्वत परिषद को इस धर्म संसद में बुलाया जाएगा और इस आयोजन का मुख्य कारण है, शंकराचार्य से जुड़े विवादों का समाधान ।

मतलब ये तय किया जाएगा कि कौन शंकराचार्य बन सकता है? स्वामी सदानंद दावेदार का कहना है कि शंकराचार्य के पद पर बैठने वाले व्यक्ति को बहुत त्याग और नियम करने होते हैं और श्रृंगेरी और पुरी छोड़कर नियमों की मान्यता कहीं नहीं हो रही है, इसीलिए शंकराचार्य के पद पर जो व्यक्ति बैठे, वह उतना ही त्यागी, विद्वान और ब्राह्मण होना चाहिए।आलम ये है कि उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के ब्रह्माण्ड होने पर सवाल उठाते हैं।उनसे ये स्पष्ट करने का अनुरोध किया है कि वो ब्राह्मण है या फिर ब्रह्म भट्ट हैं ? सौ बात की एक बात ये कि हर कोई यही जानना चाहता है कि शंकराचार्य की चयन क्रिया क्या कहती है और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाए जाने का सच क्या कहता है।यही जानने के लिए जब हम ख़ुद शंकराचार्य जी के पास पहुँचे, तो उन्होंने इस पूरे विवाद की  पिक्चर हमारे सामने लाकर रख दी ।दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।


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