चैत्र नवरात्रि 2025: अष्टमी और नवमी पर भूलकर भी न करें ये 5 काम, वरना नहीं मिलेगा व्रत का फल
चैत्र नवरात्रि 2025 में अष्टमी और नवमी की तिथियाँ बेहद खास मानी जाती हैं। इस दिन देवी महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है, साथ ही कन्या पूजन और व्रत पारण का भी महत्व होता है। लेकिन अगर इन दिनों कुछ विशेष नियमों का पालन न किया जाए, तो व्रत का फल अधूरा रह सकता है। इस ब्लॉग में हमने विस्तार से बताया है कि अष्टमी और नवमी पर क्या करना चाहिए और किन कामों से बचना चाहिए।

हर साल आने वाली चैत्र नवरात्रि केवल पूजा-पाठ या उपवास का पर्व नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा होती है — आत्मशुद्धि की, मन को संकल्पित करने की और देवी के स्वरूपों से जुड़कर अपने भीतर शक्ति को जाग्रत करने की। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। लेकिन इनमें दो तिथियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं – अष्टमी और नवमी। इन्हीं तिथियों पर होता है कन्या पूजन, हवन, और व्रत का पारण। लेकिन एक छोटी सी गलती भी इस पावन साधना के पूर्ण फल को बाधित कर सकती है।
इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि चैत्र नवरात्रि 2025 में अष्टमी और नवमी पर क्या करें और क्या भूलकर भी न करें, ताकि आपको माता रानी की कृपा और व्रत का संपूर्ण फल अवश्य प्राप्त हो।
अष्टमी और नवमी तिथि क्यों हैं इतनी खास?
नवरात्र के आठवें दिन यानी महाष्टमी को देवी महागौरी की पूजा होती है। ये स्वरूप श्वेत वस्त्रों में, हाथ में त्रिशूल लिए, बैल की सवारी करती हैं। ये शुद्धता, तप और करुणा का प्रतीक मानी जाती हैं। अष्टमी तिथि पर व्रती लोग कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उनका पूजन करते हैं। यही कन्या पूजन इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण कर्म होता है।
नवमी को पूजा जाती हैं मां सिद्धिदात्री, जो भक्तों को सिद्धियों और ज्ञान का वरदान देती हैं। यही तिथि रामनवमी के रूप में भी प्रसिद्ध है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। यानी नवमी के दिन शक्ति और मर्यादा, दोनों की एक साथ पूजा होती है। ऐसे में इस दिन की शुद्धता और नियमों का पालन और भी ज़रूरी हो जाता है।
क्या न करें अष्टमी और नवमी को?
काले या नीले रंग के कपड़े पहनने से बचें
अष्टमी और नवमी को काले और नीले रंग के वस्त्र पहनने से शास्त्रों में मना किया गया है। ये रंग नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और शुभ कार्यों में विघ्न डाल सकते हैं। ऐसे में इन दिनों आप लाल, गुलाबी, पीले, नारंगी या हरे रंग के वस्त्र धारण करें, जो ऊर्जा, भक्ति और मंगल का प्रतीक माने जाते हैं।
बाल और नाखून न काटें
इस दिन शरीर की सफाई का कोई कर्म जैसे बाल या नाखून काटना अशुभ माना जाता है। यह दिन साधना और भक्ति का है, ऐसे में इन कार्यों से बचना ही उचित है। इससे तप का क्षय हो सकता है और ध्यान में विघ्न आता है।
लहसुन-प्याज या तामसिक चीजों से परहेज
अष्टमी और नवमी के दिन, विशेष रूप से व्रत पारण के समय, लहसुन-प्याज युक्त भोजन, अंडा, मांस आदि नहीं खाना चाहिए। यह दिन पूरी तरह सात्विक आहार के लिए आरक्षित है। व्रत पारण में वही भोजन करें जो कन्याओं को भोग के रूप में अर्पित किया गया हो – जैसे पूड़ी, हलवा, चने और खीर।
चमड़े की वस्तुओं से दूरी बनाए रखें
अष्टमी और नवमी पर चमड़े से बनी वस्तुएं, जैसे बेल्ट, पर्स, जूते आदि का प्रयोग या दान वर्जित है। यह दिन पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक है और चमड़ा इन मूल्यों के विपरीत माना जाता है।
क्या करें इन दो दिनों में?
कन्या पूजन अवश्य करें
अष्टमी या नवमी को 2, 5, 7 या 9 कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें पांव धोकर, तिलक लगाकर, पूड़ी-हलवा-चना खिलाकर दक्षिणा और उपहार दें। कन्याएं मां दुर्गा का ही बाल रूप मानी जाती हैं और उन्हें प्रसन्न करना ही देवी की कृपा पाने का सबसे सरल मार्ग है।
हवन करवाएं या करें
यदि संभव हो तो अष्टमी या नवमी को घर में हवन अवश्य करें। इससे वातावरण शुद्ध होता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। गुग्गुल, घी, कपूर, हवन सामग्री आदि से हवन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
संकल्प का पालन करें
अगर आपने नवरात्र व्रत का संकल्प लिया है, तो अष्टमी/नवमी तक व्रत नियमों का पालन करें। किसी से कटु वचन न बोलें, क्रोध से बचें, संयम और शांति बनाए रखें। देवी की कृपा पाने के लिए मन की शुद्धता सबसे बड़ी कुंजी है।
चैत्र नवरात्रि 2025 में अष्टमी और नवमी कब?
अष्टमी तिथि 5 अप्रैल 2025 (शनिवार) को आएगी, और नवमी तिथि 6 अप्रैल 2025 (रविवार) को मनाई जाएगी। इन दो दिनों में ही अधिकांश भक्त कन्या पूजन और व्रत पारण करते हैं। कुछ लोग नवमी को रामनवमी के साथ समापन करते हैं।
चैत्र नवरात्रि सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मानव चेतना को जगाने और आत्मशुद्धि का पर्व है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना, उनकी कहानियों को जानना और जीवन में अपनाना, हमें शक्तिशाली और संयमित बनाता है। लेकिन यदि इन विशेष तिथियों – अष्टमी और नवमी – पर हम छोटी-छोटी बातों की अनदेखी कर दें, तो साधना का प्रभाव कम हो सकता है।