‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ कैसे बन गया मठ- मंदिरो के लिए ख़तरा, SC के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने बताया इसे कौन करेगा ख़त्म ?
मंदिरों का देश कहा जाने वाला भारत, आज भी अपनी सनातन संस्कृति, परंपरा और विरासत को साथ लेकर चलता है…विश्व पटल पर विश्व गुरु की भूमिका में नज़र आता है। विदेशी धरती को आध्यात्म की दुनिया से जोड़ता है और इन सबके पीछे की सबसे बड़ी वजह है, भारत की पावनधरा पर मौजूद प्राचीन मठ-मंदिर लेकिन मुग़ल काल में इन्हीं मठ-मंदिरों का अस्तित्व मिटाने की कोशिश की गई। मंदिरों की नींव पर मस्जिदें चुनवा दी गई और आज जब इन्हीं प्राचीन मंदिरों को पुनः जीवित किया जा रहा है, तो उसमें रोढ़ा अटकाने का कार्य प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल क़ानून समय-समय पर करता आया है। 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की नींव देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार ने रखी।
इस क़ानून के तहत ये बताया गया कि 15 अगस्त 1947 से बने किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में नहीं बदला जा सकता है और अगर कोई धार्मिक स्थल के साथ छेड़छाड़ करता है, तो उसे जेल भी होगी और जुर्माना भी भरना पड़ेगा हालाँकि अयोध्या को इस एक्ट से बाहर रखा गया, वजह बताई गई कि ये मामला देश की आजादी से पहले से अदालत में चल रहा था। लिहाजा, इसे वर्शिप एक्ट से अलगा रखा जाए।उस दिन से लेकर आज तक, मसला काशी का हो या फिर मथुरा का देश के किसी भी धार्मिक स्थल का हो, जहां मंदिरों की ईंट से विवादित मस्जिदें खड़ी कर रखी हैं। वहाँ प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट विवादित मस्जिदों की ढाल बना हुआ है, ऐसे में सवाल उठता है कि ये क़ानून ख़त्म कब होगा ? संसद से लेकर अदालत तक, प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के ख़त्म करने की माँग तो उठ चुकी है, लेकिन इसकी एक्सपायरी डेट कब आएगी बता रहे हैं पेशे से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय।