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मोदी राज में हिंदू मंदिरों को मिलने वाला रोज़ का करोड़ों का चढ़ावा किसकी जेब में जाता है?

अयोध्या के राम मंदिर से लेकर ओड़िसा के जगन्नाथपुरी धाम चले जाइए, या फिर देवभूमि में मौजूद केदारनाथ से लेकर तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर चले जाइए, हर जगह आपको भक्तों का जनसैलाब और करोड़ों रुपये के चढ़ावे से भरी मंदिर की दानपेटी आपको ज़रूर मिलेगी | आपको याद होगा, तीन सालों के भीतर ही राम जन्मभूमि पर विराट राम मंदिर के दर्शनों की इच्छा से देश-दुनिया से राम भक्तों ने दिल खोलकर मंदिर निर्माण के नाम पर करोड़ों का दान किया |
मोदी राज में हिंदू मंदिरों को मिलने वाला रोज़ का करोड़ों का चढ़ावा किसकी जेब में जाता है?

मंदिरों का देश भारत, दुनिया के नक़्शे पर मौजूद एक ऐसा देश है, जिसके कण-कण में आध्यात्म की अविरल धारा बहती है | यहाँ कदम-कदम पर सनातन धर्म के शाश्वत प्रमाण मिलते हैं | ऋषि-मुनियों की इसी तपोभूमि पर ईश्वरीय शक्ति के दर्शन होते हैं | कुदरत की बहार सी आम जनमानस का जीवन ख़ुशियों से गुलज़ार रहता है | जो कि तीर्थों के पावन दर्शन करके जन-जन का जीवन धन्य हो जाता है, इसलिए मंदिरों की दुनिया में भक्तों का मेला हर जगह नजर आता है | अयोध्या के राम मंदिर से लेकर ओड़िसा के जगन्नाथपुरी धाम चले जाइए, या फिर देवभूमि में मौजूद केदारनाथ से लेकर तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर चले जाइए, हर जगह आपको भक्तों का जनसैलाब और करोड़ों रुपये के चढ़ावे से भरी मंदिर की दानपेटी आपको ज़रूर मिलेगी | आपको याद होगा, तीन सालों के भीतर ही राम जन्मभूमि पर विराट राम मंदिर के दर्शनों की इच्छा से देश-दुनिया से राम भक्तों ने दिल खोलकर मंदिर निर्माण के नाम पर करोड़ों का दान किया | आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि राम मंदिर ट्रस्ट ने देश के 11 करोड़ लोगों से 900 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था | लेकिन प्रभु राम के नाम पर भक्तों ने अपनी जिंदगीभर की पूँजी दान क़र दी | जय सिया राम बोलकर प्रत्येक राम भक्त ने मंदिर के समर्पण निधि वाले अकाउंट में दान किया और जब यही दान पेटी खोली गई, तो 900 करोड़ की बजाए 3200 करोड़ रुपये निकले | 


मतलब ये कि सोची गई धन राशि से 4 चुना ज़्यादा | करोड़ों के इसी चढ़ावे ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं | इसी कड़ी में शिरडी के साईं बाबा के मंदिर में हर साल करीब 350 करोड़ का दान आता है।जम्मू की पहाड़ियों पर बसा माँ वैष्णों देवी का धाम भी अमीर मंदिरों की लिस्ट में शुमार है, शक्ति पीठों में से एक माँ वैष्णों देवी के इस मंदिर की हर साल 500 करोड़ रुपये की आय होती है | मदुरै का मीनाक्षी मंदिर भी उन चंद मंदिरों में शामिल है, जहां की सालाना कमाई करीब 6 करोड़ रुपये की है।इसके अलावा नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ का धाम भी अमीर मंदिरों की लिस्ट में आता है, इस मंदिर की सही संपत्ति के बारे में कोई नहीं जानता, लेकिन अनुमान है कि मंदिर में 100 किलो से अधिक सोने और चांदी के सामान हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर को यूरोप के एक भक्त से 1.72 करोड़ रुपये दान में मिले थे। वहीं केरल का सबरीमाला अयप्पा मंदिर भी करोड़ों की माया से भरा पड़ा है, हर साल करीब 10 करोड़ श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं। यात्रा सीजन में इस मंदिर को करीब 230 करोड़ रुपये की कमाई होती है। सौ बात की एक बात ये कि अमीरी के मामले में देश के प्राचीन मंदिरों ने अंबानी-अडानी को भी पछाड़ रखा है | लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिरों में रोज का करोड़ों का चढ़ावा आख़िरकार किसकी जेब में जाता है ? ख़ज़ाने से भरी मंदिरों की दानपेटी जब खोली जाती हैं, तो कहां इसका इस्तेमाल होता है ? मंदिरों की बेशुमार दौलत आख़िर कहां-कहां लुटाई जाती है ? और सबसे बड़ा सवाल ये कि मस्जिद, चर्च से जब एक रुपये की धनराशि सरकार नहीं लेती है, तो फिर मंदिर के चढ़ावे पर नजर क्यों गाढ़े रखती है ? इन्हीं सवालों का जवाब देते हुए, पेशे से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और धर्म से हिंदू, अश्विनी उपाध्याय ने क्या कुछ कहा देखिये 

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