Karva Chauth 2024: सिर्फ 1 घंटे 16 मिनट का है करवा चौथ का शुभ मुहूर्त, जानें पुजा विधि से लेकर सब कुछ
Karva Chauth 2024: करवा चौथ एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसे भारतीय महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, खासकर उत्तर भारत में। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक बिना पानी पिए उपवास करती हैं। आइए जानते हैं इसकी पूरी विधि:
Karva Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल, करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा, जिसका शुभ मुहूर्त शाम 5:46 से 7:02 बजे तक रहेगा।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन की पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है।
महिलाएं इस दिन विशेष रूप से लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं, क्योंकि यह सुहाग का प्रतीक माना जाता है। पूजा के दौरान उन्हें 16 श्रृंगार करके पूजा करने का भी महत्व है। इसके बाद, चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण किया जाता है, जिसमें पति के हाथ से जल ग्रहण करने का विशेष महत्व होता है।
करवा चौथ 2024 का विवरण
तिथि: 20 अक्टूबर 2024 (रविवार)
चतुर्थी तिथि की शुरुआत: सुबह 6:46 बजे
चतुर्थी तिथि का समापन: 21 अक्टूबर 2024, सुबह 4:16 बजे
शुभ पूजा मुहूर्त: शाम 5:46 से 7:02 बजे तक
चंद्रोदय का समय: शाम 7:54 बजे
करवा चौथ का व्रत की विधि
सबसे पहले महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर साफ कपड़े पहनती हैं। इसके बाद पूजा के लिए तैयारी की जाती है। सास अपने बहू को 'सरगी' (सुबह सूर्योदय से पहले खाया जाने वाला भोजन) देती हैं, जिसमें फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट्स, और पकवान शामिल होते हैं। सरगी सूर्योदय से पहले खाई जाती है। इसे खाने के बाद महिलाएँ पूरे दिन उपवास करती हैं और पानी भी नहीं पीतीं। इसके बाद, वे भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश से व्रत सफल होने की प्रार्थना करती हैं। दिन में करवा चौथ की कथा सुनने की परंपरा है। इस कथा का सुनना इस व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। कथा के दौरान महिलाएँ पूजा की थाली लेकर बैठती हैं और करवा (मिट्टी का पात्र) में पानी भरकर इसे पूजा स्थल पर रखा जाता है। शाम को महिलाएँ सुहाग का सामान (जैसे कुमकुम, चूड़ियाँ, सिंदूर, आदि) सजाकर पूजा स्थल पर बैठती हैं। थालियों में दीप जलाकर महिलाएँ गोल घूमते हुए करवा चौथ की व्रत कथा सुनती हैं। पूजा के समय करवा चौथ के गीत भी गाए जाते हैं। इसके बाद, वे करवा में जल भरकर उसे माता पार्वती और भगवान शिव को अर्पित करती हैं। रात में जब चंद्रमा निकलता है, तब महिलाएँ छलनी के जरिए चंद्रमा को देखती हैं और जल अर्पित करती हैं। इसके बाद, वे अपने पति के हाथ से पानी और कुछ मिठाई खाकर अपना व्रत तोड़ती हैं।
विशेष बातें
व्रत के दौरान अन्न-जल का सेवन नहीं करना चाहिए: महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए व्रत करती हैं। इस दौरान किसी भी प्रकार का अपशब्द नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि यह व्रत की पवित्रता को बनाए रखने में मदद करता है।
सामाजिक और पारिवारिक समरसता: करवा चौथ का पर्व महिलाओं के बीच एकता और भाईचारे का संदेश देता है। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे से मिलती हैं, अपने अनुभव साझा करती हैं और एक-दूसरे की मदद करती हैं।
करवा चौथ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने का अवसर भी है। इस दिन की विशेष पूजा और परंपराएं न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि परिवार और समाज में सामंजस्य और प्रेम को बढ़ावा देती हैं।