नवरात्र स्पेशल: इस्लाम से पहले प्राचीन अरब में भी होती थी तीन देवियों की पूजा
पूरा सनातन समाज अभी नवरात्रि में माता की भक्ति में लीन है ।पूरी दुनिया में देवी की पूजा किसी न किसी रूप में होती आई है, चाहे आप प्राचीन यूनान की बात करें या मिश्र की।

इस्लाम के आगमन से पहले प्राचीन अरब में भी तीन देवियों अल लात, अल मनात और अल उज्ज़ा की पूजा की जाती थी और इनकी मूर्तियां पवित्र काबा मंदिर में अल्लाह और हुबल के साथ स्थापित थीं। वहां अल-इलाह यानि अल्लाह, पुरुष देवता सर्वशक्तिमान और सबसे बड़ा था । ठीक उसी प्रकार देवियों में अल लात सबसे शक्तिशाली और पूज्य समझी जाती थीं। अल लात को अल्लातु, अलयेलात, अल्लत, और अल्लात नाम से भी संबोधित किया जाता था. इनका मंदिर मक्का शहर से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर "तायफ़" में स्थित था अरब इसकी पूजा करते थे और इस मंदिर को भी काबा के जैसा ही पवित्र माना जाता था. ये देवियों में सबसे बड़ी देवी थीं। इनका वाहन सिंह था।
मक्का और मदीना के बीच कुद्यद नाम की जगह थी जहां देवी मनात का मंदिर स्थित था । वहां जाकर ये लोग अपना मुंडन करवाते थे. ये अपना हज तब तक पूरा नहीं मानते थे जब तक देवी मनात के मंदिर में जाकर मुंडन की परंपरा को पूरा नहीं करते थे।
उसी तरह क़ुरैश क़बीले की देवी थीं देवी उज्ज़ा । क़ुरैश वही कबीला है जिसमें पैगम्बर मुहम्मद पैदा हुए । अरबों ने देवी उज्ज़ा के लिए एक मंदिर बना रखा था जिसे वो "बुस" कहते थे। यहां वो पुजारी के द्वारा देवी उज्ज़ा से अपने भविष्य की भविष्यवाणी प्राप्त करते थे । कुरैश के लोग जब काबा का चक्कर (तवाफ़)लगाते थे तो वो ये तल्बियाह (स्तुति) गाते थे ।
अरबी स्तुति का हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है।।
(अल-लात, अल-उज्ज़ा और मनात, तीनों देवियां वास्तव में सबसे ऊंचे दर्जे की देवियां हैं. इनकी हिमायत के हम अभिलाषी हैं)
जब पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम लाया तो बुतपरस्ती यानि मूर्तिपूजा को हराम करार दिया और कहा कि सिर्फ अल्लाह ही माबूद यानी पूजनीय है । फतह मक्का यानी मक्का पर विजय प्राप्त करने के तुरंत बाद काबा की सभी 360 मूर्तियों को तोड़ दिया गया और तीनों देवियों के मंदिरों को भी नष्ट कर दिया गया।