Pitra Paksha 2024: पितरों को चावल या आटे का पिंड क्यों अर्पित किया जाता है?
Pitra Paksha 2024: पितृ पक्ष को हमारे पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक पवित्र पर्व माना जाता है, जिसे हमारे ऋषि मुनि सदियों पहले से मनाते आ रहे हैं। इस दौरान, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से पितरों को सम्मान व्यक्त किया जाता है। और इस दौरान पिंडदान में चावल या आटे के पिंड बनाए जाते हैं जिनका विशेष महत्व होता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखता है। आइए जानते हैं, पिंडदान के पीछे छिपे हुए कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों के बारे में।
पितरों को चावल के पिंड अर्पित करने की मान्यता का गहरा संबंध चंद्रमा से है। चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है, और माना जाता है कि चंद्रमा के माध्यम से ही पिंड पितरों तक पहुंचता है। इसीलिए पके हुए चावल का पिंड बनाकर उसमें तिल, शहद, घी और दूध मिलाकर अर्पित किया जाता है। ये सभी सामग्रियां नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो दानकर्ता पर ग्रहों के अशुभ प्रभावों को दूर करने में सहायक होती हैं। आटे का पिंड भी इसी कारण दिया जाता है क्योंकि आटा भी सफेद होने के कारण चंद्रमा का कारक माना जाता है।
वही दूसरी मान्यता यह है कि चावल को अक्षत यानी "अखंड" माना जाता है, जो कभी खंडित नहीं होता। इसी कारण पितरों को चावल का पिंड अर्पित करने से उन्हें अक्षत पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चावल की तासीर ठंडी होती है, जो शांति और संतोष का प्रतीक है। माना जाता है कि चावल के पिंड से पितरों को शांति मिलती है और वे लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं।
पिंडदान के माध्यम से पितरों को संतुष्टि और शांति प्रदान की जाती है, जिससे वे अपने परिवार पर कृपा बनाए रखते हैं। यह प्रक्रिया हमें न केवल पितरों का आशीर्वाद दिलाती है, बल्कि हमारे जीवन में आने वाले संकटों को भी दूर करती है।
इस प्रकार, पिंडदान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक माध्यम भी है। इसके द्वारा पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।