PM मोदी ने चीन से लिया शिवभक्तों का बदला अब देवभूमि के रास्ते कर सकेंगे कैलाश पर्वत के दर्शन
पड़ोसी मुल्क चीन उसकी चालाकियाँ, उसकी दादागिरी और उसकी विस्तारवादी नीतियां किसी से छिपी नहीं है। इतिहास आज भी यही गवाही देता है, ऐसा कोई नहीं जिसे चीन ने डँसा ना हो। चीन से सटी जितनी भी देश है, उन्हें क़ब्ज़ाने की फ़िराक़ में ड्रैगान दिन रात नापाक साज़िशें रचता है। ना सिर्फ ताइवान , 14 पड़ोसी देशों से चीन का सीमा विवाद चल रहा है। अक्साई चिन से लेकर तवांग को , चीन अपनी जागीर समझता है। देखा जाए, तो चीन ज़मीन से समुद्र तक चीन के अवैध क़ब्ज़े से पूरी दुनिया परेशान है और अगर भारत की बात करें , तो दोनों के रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघलने का नाम नहीं ले रही है। सालों पुराना सीमा विवाद अब तक जारी है। चीन का बस चले तो पूरे जम्मू-कश्मीर को हथिया ले, तभी तो 370 के हटने से खफा चीन ने गलवान घाटी में अपनी औक़ात दिखाई और अब कैलाश मानरसोवर यात्रा पर रोक लगाकर अपनी दादागिरी दिखा रहा है। पिछले 5 सालों से चीन ने भारत के लिए कैलाश पर्वत का फाटक बंद कर रखा है। समधौतों की धज्जियाँ उड़ाते हुए शिव भक्तों के लिए इतने कठिन नियम बना दिये, ताकी कोई भारतीय कैलाश पर्वत का दीदार ना कर पाये। सीधे तौर पर हिंदुओं की आस्था पर प्रहार किया, लेकिन अब उसके इसी प्रहार का जवाब पीएम मोदी ने दिया है। कैलाश के दर्शनों के लिए मोदी सरकार ने एक नया रास्ता ढूँढ निकाला, जिसके बाद से चीन की सारी अकड़ ढीली हो चुकी हैं…या फिर यूँ कहे कि कैलाश मानसरोवर में अड़ंगा ढाल रहे चीन की गर्दन अब जाकर पीएम मोदी के हाथों में आई है। अब ना ही चीन की ज़रूरत है और ना ही चीन के आगे गिड़गिड़ाना पड़ेगा क्योंकि अब देवभूमि की चोटी से बाबा कैलाश के पावन दर्शन होंगे ।
हिंदुओं के लिए कैलाश पर्वत तीर्थों से भी ऊपर है, ये वो स्थान है। जिसमें इस ब्रह्मांड के संहारक कहे जाने वाले त्रिपुरारी और जटाधारी महादेव बसते हैं। कैलाश की इसी पावनधरा पर भोलेनाथ का बसेरा है। धर्म ग्रंथों से लेकर पौराणिक कथाओं में , कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की दुनिया मिलती है। यही कारण है कि आज भी कैलाश पर्वत कई अनसुलझे रहस्यों से भरा पड़ा है। कैलाश इस पूरी धरती का केंद्र है..ये जगह आकाश और पृथ्वी के बीच का एक बिंदु है, जहां से दसों दिशाएँ मिलती हैं। 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है, यहीं से 4 अंशों से 4 नदियों का उद्गम हुआ। दुनिया की कोई ताक़त कैलाश की चोटी पर नहीं पहुँच पाई। इस पूरे पर्वत पर नास्तिकों को भी ईश्वरी शक्ति का एहसास होता है। इन्हीं अलौकिक शक्तियों के बीच येति मानव का रहस्य कोई सुलझा नहीं पाया कोई नहीं जानता, कैलाश पर डमरू और ओम की आवाज़ कहां से आती है, लेकिन पूरी दुनिया के कानों तक सुनाई देती है। आज भी कैलाश पर्वत पर 7 तरह की रोशनी नज़र आती है, भले वैज्ञानिक इसे चुम्बकीय बल बताया, लेकिन कैलाश की आसमानी दुनिया अलग से चमकती हुई दिखती है। इतना कुछ देखने के लिए शिव के इस दुनिया को एहसास करने के लिए अपने अंतर्मन से कैलाश से शिव के दर्शन के लिए जहां भारत से कोई शिव भक्त कैलाश पर्वत की ओर बढ़ता है, तो उसे रोकने का काम अब तक चीन करता आया है। जो कि कैलाश जाने का रास्ता भूटान और नेपाल से जाता है, जिस पर चीन अपना क़ब्ज़ा जमाया हुआ है।
सच तो यही है कि कैलाश पर्वत आज भी चीनके क़ब्ज़ा में है और धार्मिक यात्रा पर किसी भी तरह का कोई International क़ानून नहीं है, जिस देश में तीर्थ स्थल है, उसी देश के नियम भी लागू होंगे। यही कारण है कि कैलाश पर्वत के रास्ते चीन अपनी दादागिरी दिखाता आया है, लेकिन अब उसकी सारी अकड़ ढीली पड़ी चुकी है…क्योंकि मोदी सरकार देवभूमि उत्तराखंड के रास्ते कैलाश पर्वत का रास्ता ढूँढ निकाला है। दरअसल उत्तराखंड में मौजूद पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित ओल्ड लिपुलेख की चोटी से कैलाश पर्वत के साक्षात दर्शन हो सकते हैं। 15 सितंबर से ओल्ड लिपुपास को श्रद्धालुओं के लिए खोलने का फैसला लिया जा चुका है। शिव भक्तों को ओल्ड लिपुपास जाने के लिए लिपुलेख तक गाड़ी से और फिर कैलाश पर्वत को देखने के लिए लगभग 800 मीटर पैदल चलना पड़ेगा। इस जगह से कैलाश पर्वत करीब 50 किलोमीटर दूर है।…मतलब ये कि 50 किलोमीटर की दूरी से आप अपने आराध्या यानी बाबा कैलाश के दर्शन कर सकेंगे। अब ना ही चीन की ज़रूरत है और ना ही पैसों की ज़्यादा टेंशन लेनी पड़ेगी, शिव भक्ति में मग्न होकर कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकेंगे।