कथावाचक देवकीनंदन के धांसू प्लान से सरकारी क़ब्ज़े से मुक्त होंगे हिंदू मंदिर
भारत को आज़ाद हुए 77 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन मठ-मंदिरों को राज्य सरकारों से अब तक आज़ादी नहीं मिल पाई है, देश की मस्जिदों से लेकर चर्च पर कही कोई बंदिशें नहीं है, लेकिन 120 करोड़ हिंदुओं की आस्था सरकारों के कंट्रोल में है और कंट्रोल भी ऐसा है कि महाप्रभु के प्रसाद में सुअर की चर्बी खिलाई जाने लगी। लेकिन अब सोया हुआ हिंदू जाग उठा है, तभी तो कथावाचक देवकी नंदन के रास्ते अब साढ़े चार लाख मंदिरों का प्रतिशोध लिया जाएगा। अब एक भी मंदिर पर सरकारी क़ब्ज़ा नहीं होगा। क्या है ये पूरा मामला, आईये आपको बताते हैं।
भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित तिरुपति बालाजी का धाम लाखों हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र मंदिर की नींव अबकी नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है। प्रभु जगन्नाथ की चौखट पर आने वाला प्रत्येक भक्त आज भी ख़ुद को धन्य समझता है लेकिन जब ये मालूम हुआ कि प्रभु के महाप्रसादम में सुअर की चर्बी मिलाई गई, भक्तों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। आस्था से इतना बड़ा खिलवाड़ और वो भी चंद पैसों की वजह से या फिर तीर्थों को अपवित्र करने की सोची समझी साज़िश कारण जो भी हो, परंतु सरकारी कंट्रोल होने के बावजूद इतनी बड़ा पाप, इसका प्रायश्चित्त कौन करेगा ? इतना कुछ होने का बाद भी देश का हिंदू कितना जागा है, ये तो मालूम नहीं लेकिन पेशे से कथावाचक और धर्म से सनातनी देवकी नंदन महाराज ने एक ऐसा तोड़ूँ उपाय बताया हैं जिसके करने मात्र से कोई भी अशुरी शक्ति, विश्व की कोई ताक़त। ना ही हिंदुओं की आस्था को कुचल पाएगी और ना ही हिंदू मंदिरों को कोई नुक़सान पहुँचा पाएगी, उपाय क्या है। सुनिये ख़ुद देवकी नंदन की ज़ुबान से
आज की डेट में देश के 15 राज्य ऐसे हैं, जहां के मठ मंदिरों पर राज्य सरकारों का कंट्रोल है। लगभग साढ़े चार लाख हिंदू मंदिरों का चढ़ावा राज्य सरकारों की जेब में जाता है। यहाँ तक की देश की सुप्रीम अदालत भी ये समझ नहीं पा रही है कि आख़िर मंदिरों पर सरकारी क़ब्ज़ा क्यों ? चर्च और मस्जिदों में जो भी धन राशि आती है, उस पर सरकार का कोई हक़ नहीं है।उस पैसे का कहां इस्तेमाल हो रहा है। इसका कही कोई सरकारी ब्यौरा नहीं लेकिन मंदिरों में भक्तों द्वारा दिया गया लाखों रुपये का चढ़ावा सीधे सरकार की जेब में जाता है, जिसका इस्तेमाल सरकार द्नारा मदरसा और चर्च निर्माण में हो रहा है। उदाहरण कर्नाटक सरकार का लीजिये। जिसने मंदिर से 79 करोड़ रुपये लिये, जिसमें से मंदिर पर 7 करोड़ रुपये, मस्जिद पर 59 करोड़ रुपये और चर्च पर 5 करोड़ रुपये खर्च किए। प्राचीन भारत में मंदिरों से गुरुकुल पद्दति का विस्तारण होता था। ना सिर्फ़ पूजा-पाठ बल्कि भारतीय संस्कृति का केंद्र बना रहता था लेकिन जब मंदिरों के ख़ज़ाने में लूट-खसोट होने लगा। आस्था तक ही मंदिरों को सीमित कर दिया गया। यही कारण है कि अब हिंदू बोर्ड की माँग उठ रही है और चढ़ावे के नाम पर एक अठन्नी तक नहीं देने की अपील की जा रही है लेकिन क्या देवकी नंदन के इस उपाय से मठ-मंदिरों को सरकारी क़ब्ज़े से मुक्ति मिल पाएगी।