किन्नरों की रहस्यमयी दुनिया पर किन्नर महामंडलेश्वर हिमांगी सखी का सबसे बड़ा खुलासा
हम और आप जिस समाज से आते हैं, उसी समाज से ठुकराये कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें जिंदगीभर इज़्ज़त नहीं मिलती है | ज़िंदगी के हर पड़ाव पर इन लोगों को अपमानित होना पड़ता है, हर जगह इनका मज़ाक़ उड़ाया जाता है, और हर समय ये लोग भेदभाव का शिकार हुए हैं | देश का किन्नर समाज , जिनकी दुनिया आज भी आम इंसानों के लिए एक मिस्ट्री है | लेकिन आज इसी मिस्ट्री को जानने की कोशिश करेंगे, किन्नर महामंडलेश्वर हिमांगी सखी माँ से |
किन्नरों की रहस्यमयी दुनिया को समझने के लिए इनकी हिस्ट्री जाननी ज़रूरी है | धर्म ग्रंथों के अनुसार, किन्नरों की उत्पत्ति ब्रह्माजी की छाया से हुई | कुछ लोग ये मानते हैं कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नर प्रकट हुए | हालाँकि वैदिक ज्योतिष कहती है कि कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों के कारण व्यक्ति किन्नर रूप में जन्म लेता है | पुराणों में किन्नरों को दैवीय गायक कहा गया है | महाभारत काल में अज्ञात वास पर गये अर्जुन को किन्नर बनकर रहना पड़ा | भीष्म की मृत्यु का कारण बनी शिखंडी, ख़ुद एक किन्नर थी | महादेव का अर्धनारीश्वर का रूप किन्नर कहलाया गया है | जो कि सनातन संस्कृति के अनुरूप धर्म-ग्रंथों में किन्नर ईश्वर का स्वरूप माने गये, जिस कारण खुशी के मौक़े पर विशेषकर किन्नरों को बुलाया जाता है | ख़ुद के सुखी जीवन के लिए किन्नरों की दुआएँ ली जाती हैं और बदलने में दयनीय जीवन देने वाला भी हम हैं।
आज भले ही सामाजिक संगठनों और न्यायालय की पहल पर किन्नरों को थर्ड जेंडर का दर्जा मिल चुका है, लेकिन रोज़ी रोटी के लिए आज भी किन्नर समाज सड़कों पर नज़र आता है | समाज का अहम हिस्सा होते हुए भी किन्नरों को धुतकारा जाता है | देश में कितनी ही सरकारें आईं और गईं, लेकिन उनकी बुनियादी ज़रूरतों को कोई भी सरकार पूरा नहीं कर पाई | जन्म से लेकर मृत्यु तक, किन्नर का जीवन संघर्षपूर्ण रहता है, जो कि ज़िंदगी के हर पड़ाव पर इन्हे अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है | इस कारण इनकी ज़िंदगी बाहरी लोगों के लिए आज भी एक राज़ है |
इन लोगों का रहन-सहन भी आम इंसानों से बिलकुल अलग होता है | हिंदू रिती-रिवाजों के चलते व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, ब्रह्मण भोज रखा जाता है | लेकिन जब एक किन्नर की मृत्यु होती है, तो उसका शव तक कर्बिस्तान तक ले जाते वक़्त दिखाई नहीं देता है | कहते हैं बड़े ही गुपचुप तरीक़े से इनका रात्रि में अंतिम संस्कार किया जाता है ताकी कोई देख ना सके | आख़िर क्यों रात के अंधेरे में किन्नरों को दफ़नाया जाता है?
अब आप इसे कुदरत का न्याय कहें या फिर इंसानों की इस दुनिया की कड़वी सच्चाई किन्नर का जन्म लेना अशुभ मानते हैं, लेकिन इनकी मौजूदगी के बग़ैर प्रत्येक शुभ कार्य अधूरे माने गये हैं और यही वजह है कि शुभ कार्यों में विवाह, मुंडन या फिर संतान प्राप्ति के वक़्त किन्नरों को बक़ायदा बुलाया जाता है और इनके नाम से पैसा भी निकाला जाता है | इसके पीछे की वजह है प्रभु राम से मिला दैवीय आशीर्वाद जो आज भी प्रत्येक किन्नर के ऊपर है |रामायण अनुसार, जब प्रभु राम 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए अयोध्या छोड़ने लगे, तब उनकी प्रजा और किन्नर समुदाय भी उनके पीछे-पीछे चलने लगे थे। तब श्रीराम ने उन्हें वापस अयोध्या लौटने को कहा। लंका विजय के पश्चात जब श्रीराम 14 साल वापस अयोध्या लौटे तो उन्होंने देखा बाकी लोग तो चले गए थे, लेकिन किन्नर वहीं पर उनका इंतजार कर रहे थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने किन्नरों को वरदान दिया कि उनका आशीर्वाद हमेशा फलित होगा, तब से लेकर आजकर, किन्नरों का आशीर्वाद कभी ख़ाली नहीं जाता है।
ईश्वर द्वारा दी गई किन्नर संतान पर माता-पिता शोक विलाप करते है | बाद में किन्नर संतान का बहिष्कार किया जाता है | दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता है | मानवता का पाठ पढ़ाने वाला यही समाज किन्नरों के साथ कैसी बदसलूकी करता है, ये बात किसी से छिपी नहीं है | हमें समझना चाहिए कि सनातनी संस्कृति प्रत्येक जीव से प्रेम करना सीखाता है, ना ही उसे तिरस्कृत करना क्योंकि प्रेम के पथ पर ही चलकर ईश्वर को पाया जा सकता है | प्रेम से आत्म शांति जुड़ी है और आत्मशांति से मोक्ष की प्राप्ति | इसलिए सम्मान की दृष्टि से देखिये और अपने नेक प्रयासों से किन्नर समाज को हुनरमंद और आत्मनिर्भर बनाइये।