Advertisement

महाकुंभ के इस “पॉवरफुल त्रिशूल” के आगे दुनिया की ताक़त हो जाएगी फ़ेल

151 फाट ऊंचा 31 टन जितना भारी भगवान शिव का ये डमरु और त्रिशूल दिव्य , भव्य और अलौकिक होने के साथ-साथ भक्तों के लिए भी बहुत मायने रखता है , इससे भक्तो मे महाकुंभ के प्रति और आस्था जागेगी । अगर आप भी इस बार महाकुंभ मे जाने का प्लेन कर रहे है तो डमरु और त्रिशूल के दर्शन करना न भूले इससे भगवान शिव की कृपा आप पर बनी रहेगी

Author
04 Jan 2025
( Updated: 11 Dec 2025
03:42 AM )
महाकुंभ के इस “पॉवरफुल त्रिशूल” के आगे दुनिया की ताक़त हो जाएगी फ़ेल

 दुनिया का सबसे विशालकाय त्रिशुल जिसका वजन कीलो या कुन्टल में नहीं,  बल्कि टन में है , जिसकी ऊँचाई को देखने के लिए आपको सर उठाना पड़ेगा, जिसके दर्शन कहीं और नहीं..बल्कि अबकी बार के महाकुंभ में होंगे। इन दिनों  संगम की रेती पर जहां एक तरफ़ विशालकाय डमरु तैयार किया जा रहा, दूसरी तरफ़ त्रिपुरारी का विशालकाय त्रिशूल पहले से ही स्थापित है।इनके दर्शनों करने से पहले , आज आप शिव के अस्तित्व से जुड़े त्रिशूल और डमरू का महत्व जान लीजिये।

क्यों प्रिय है भगवान शिव को डमरु ? 

भगवान शिव के स्वरुप के साथ जो कुछ भी जुड़ा है उसके आध्यात्मिक महत्व का बखान धर्म ग्रंथों में किया गया है, देवों के देव महादेव के लिए डमरू क्या मायने रखता है, इसका अंदाजा इसी से लगाइये..डमरू की धुन पर ही  शिव खुशी से तांडव करते है…इस धुन के कारण ही , इससे प्रकृति मे नई ऊर्जा का प्रवाह होता है , संसार से पीड़ा का नाश होता है , साथ ही आपको बता दें की ऊँ शब्द की उत्पत्ति भी भगवान शिव के डमरु से ही हुई है । इस प्रकार ऊँ शब्द का रोजाना उच्चारण करने से मन शांत होता है , जीवन मे सभी रुके काम बन जाते है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है , साथ ही डमरु की इस धुन को वीर रस की आवाज़ भी माना जाता है और इसलिए ये धुन भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है ।  



शिव का अभिन्न हिस्सा है त्रिशूल

धार्मिक मान्यताएं कहती हैं..भगवान शिव का सबसे प्रिय अस्त्र है त्रिशूल , भगवान शिव के इस त्रिशूल को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है , आपने भी देखा होगा की ये त्रिशूल शिव के हर मन्दिर मे स्थापित होता है या ऐसा कहे की बिना त्रिशूल के शिवालय अधूरा है या फिर भगवान शिव अधूरें है । मान्यता है की मनोकामनाओं की पूर्ति  के लिए शिव को त्रिशूल चढ़ाने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है । महाकाल का ये त्रिशूल तीनों कालों यानि भूतकाल , वर्तमान , और भविष्य काल को दर्शाता है ।मतलब  तीनों ही काल शिव के परतंत्र होते है । अंत भी शिव है तो अन्नत भी शिव है । 


प्रयागराज की धरा पर स्थापित त्रिशूल और बन रहा डमरू बाबा के भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है....151 फीट ऊंचे त्रिशूल की शक्ति ऐसी है कि किसी भी आपदा या भूकंप का इस पर कोई असर नही पड़ेगा।किसी तरह की आपदा से इसे कोई नुक़सान न पहुंचे , इसके लिए इस त्रिशूल के नीचे 80 फ़ीट की गहराई तक पाईलिंग की गई है । वैज्ञानिकों की भाषा में बोले तो, त्रिशूल अपने आप में आपदा रहित है, अर्थात् भारी आपदा आने पर भी इस त्रिशूल से किसी तरह का कोई नुक़सान नहीं होगा। विश्व का यही त्रिशूल छह साल पहले  सन्यासी बाबाओं के जूना अखाड़े के मौज गिरी आश्रम में कुंभ के दौरान  स्थापित किया गया था, उस वक्त  इस त्रिशूल का लोकार्पण सीएम योगी और तत्कालीन बीजेपी के अध्यक्ष अमित साह ने 13 फरवरी 2019 को किया था।  त्रिशूल को लेकर  जूना अखाड़े के अध्यक्ष महंत हरि गिरी और महंत नरायण गिरी का कहना है 

यह भी पढ़ें


त्रिशूल और डमरु इस बार प्रयागराज के महाकुंभ का प्रतीक चिह्न होने वाला है। ऐसे मे ये डमरु और त्रिशूल महाकुंभ की शोभा बढ़ाऐंगे और महाकुंभ के आकर्षण का केंद्र बनेगें अगर आप भी महाकुंभ जाने का प्लेन कर रहे है तो भगवान शिव के इस डमरु और त्रिशूल के दर्शन अवश्य करें। अब जो कि संगम नगरी दिन पर दिन साधु-सन्यासियों की बढ़ती तादाद से गुलजार होती जा रही है। बाबा के भक्तों का जमावड़ा लग रहा है..जिस कारण भोले की भक्ति में रमे श्रद्धालु 151 फ़ीट इस विराट त्रिशूल की पूजा अर्चना करने प्रयागराज पहुँच रहे हैं। 

टिप्पणियाँ 0

LIVE
Advertisement
Podcast video
Gautam Khattar ने मुसलमानों की साजिश का पर्दाफ़ाश किया, Modi-Yogi के जाने का इंतजार है बस!
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स
वेब स्टोरीज़
होम वीडियो खोजें