दिवाली की रात क्यों दी जाती है उल्लू की बलि, क्या है इसके पीछे का रहस्य
उल्लू को देवी लक्ष्मी की बहन, अलक्ष्मी, का प्रतीक भी माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, अलक्ष्मी का जन्म विष से हुआ था, और वह दुर्भाग्य की देवी हैं। यह भी मान्यता है कि लक्ष्मी और अलक्ष्मी का जन्म एक साथ हुआ था, जहाँ लक्ष्मी अमृत का और अलक्ष्मी विष का प्रतीक हैं। इस कारण,
दिवाली का पर्व आते ही उल्लुओं की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पर सवाल उठने लगते हैं। देश भर में कई लोग दिवाली के अवसर पर उल्लुओं को बलि के लिए पकड़ने और बेचने का अवैध कार्य करते हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के बावजूद, उल्लू को खरीदने और बलि देने का चलन अब भी जारी है। आज हम इस प्रथा के पीछे के रहस्यमयी और अंधविश्वास से जुड़े तथ्यों को समझने का प्रयास करेंगे।
दिवाली की रात अमावस्या की होती है, जिसे तंत्र-साधना और पूजा-पाठ के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी, धन की देवी, इस रात अपने भक्तों के घरों का दौरा करती हैं। भारत के कई हिस्सों में विश्वास किया जाता है कि लक्ष्मी देवी के वाहन उल्लू हैं, जो उनकी प्रिय सवारी है।
उल्लू की तंत्र साधना में उपयोगिता
उल्लू को तंत्र-साधना का महत्वपूर्ण पक्षी माना जाता है। तांत्रिक मानते हैं कि उल्लू की शक्ति और अद्भुत दृष्टि उसे अद्वितीय बनाती है। तंत्र ग्रंथों में उल्लुओं पर साधना का विशेष स्थान है। माना जाता है कि उनकी बड़ी-बड़ी आँखें, जो रात में भी स्पष्ट रूप से देख सकती हैं, तांत्रिक क्रियाओं में मददगार होती हैं। उनका उपयोग वशीकरण, मारण और सम्मोहन जैसे अनुष्ठानों में भी किया जाता है। तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार, उल्लू की बलि देने से व्यक्ति अपने शत्रुओं को मात दे सकता है और सौभाग्य प्राप्त कर सकता है। हालाँकि, शास्त्रों में ऐसा कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि देवी लक्ष्मी उल्लू की बलि से प्रसन्न होती हैं, फिर भी यह अंधविश्वास कई स्थानों पर व्यापक है।
दिवाली के महीने में उल्लू का अवैध बाज़ार तेजी से बढ़ता है। वाइल्डलाइफ एसओएस के अनुसार, विशेष प्रकार के उल्लू जैसे रॉक आउल और ईगल आउल की सबसे ज्यादा माँग होती है। उल्लू की कीमत उसके आकार, वजन, रंग, और तांत्रिक मान्यता के आधार पर तय होती है। कई मामलों में, एक उल्लू की कीमत 10 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक भी हो सकती है। बड़े-बड़े तांत्रिक इसे अपने अनुष्ठानों के लिए खरीदते हैं, जबकि अन्य लोग इसे अपने घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए बलि देते हैं।
उल्लू का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
उल्लू को देवी लक्ष्मी की बहन, अलक्ष्मी, का प्रतीक भी माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, अलक्ष्मी का जन्म विष से हुआ था, और वह दुर्भाग्य की देवी हैं। यह भी मान्यता है कि लक्ष्मी और अलक्ष्मी का जन्म एक साथ हुआ था, जहाँ लक्ष्मी अमृत का और अलक्ष्मी विष का प्रतीक हैं। इस कारण, उल्लू को दोनों ही रूपों में देखा जाता है — एक ओर वह लक्ष्मी का वाहन है, दूसरी ओर अलक्ष्मी का प्रतीक है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह सौभाग्य और दुर्भाग्य दोनों का प्रतिनिधित्व करता है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में उल्लू को खास बनाता है।
उल्लू के अंगों का तांत्रिक उपयोग
तंत्र साधना में उल्लू के शरीर के विभिन्न अंगों का उपयोग विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है। तांत्रिक मानते हैं कि उल्लू की आँखों में सम्मोहन शक्ति होती है, जिससे व्यापारिक संस्थानों में इसका उपयोग किया जाता है ताकि वहां निरंतर धन का प्रवाह बना रहे। उल्लू की चोंच और पैरों का उपयोग वशीकरण और शत्रु नाश के अनुष्ठानों में किया जाता है। कुछ स्थानों पर माना जाता है कि उल्लू के पैरों को तिजोरी में रखने से वहाँ धन का आगमन बना रहता है। इसी प्रकार, उनकी चोंच का उपयोग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
वैसे आपको बता दें कि भारत ही नहीं, दुनिया के कई हिस्सों में उल्लू को बुद्धिमानी और रात्रि की गहराई का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन यूनानी संस्कृति में उल्लू को देवी एथेना का वाहन माना गया है, जो बुद्धि की देवी हैं। यूनानी मानते थे कि उल्लू की दृष्टि उसे विशेष बनाती है, जिससे वह भविष्य की घटनाओं को पहले से देख सकता है। इस दृष्टिकोण के कारण, यूनानी इसे ज्ञान और विवेक का प्रतीक मानते थे। कई स्थानों पर इसे जीसस क्राइस्ट से भी जोड़ा जाता है, जो अंधकार में प्रकाश का मार्ग दिखाने वाले माने जाते हैं।
उल्लू की सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत उल्लू को संरक्षित प्रजातियों में शामिल किया गया है। इसे पकड़ने, बेचने और बलि देने पर सख्त प्रतिबंध है, और ऐसा करने पर तीन साल की जेल या उससे अधिक की सजा हो सकती है। हालाँकि, दिवाली के समय अवैध व्यापार के चलते यह नियम अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (WPSI) जैसे संगठन इस व्यापार को रोकने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन कई बार इनकी पहुँच उन गुप्त बाज़ारों तक नहीं हो पाती जहाँ उल्लू का व्यापार किया जाता है।
उल्लुओं का बलि प्रथा और तांत्रिक गतिविधियों में उपयोग हमारी प्राचीन मान्यताओं से अधिक अंधविश्वास का हिस्सा बन चुका है। आज आवश्यकता है कि समाज को इसके प्रति जागरूक किया जाए ताकि लोग उल्लू जैसे निर्दोष पक्षी की रक्षा कर सकें। दिवाली का असली उद्देश्य केवल तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से सुख-समृद्धि प्राप्त करना नहीं है बल्कि सभी जीवों की सुरक्षा और धार्मिकता की वास्तविक भावना को बनाए रखना है।