PM Modi को बदनाम करने चले Akhilesh पत्नी Dimple Yadav की वजह से बुरे फंस गए
Lok Sabha Election के नतीजे 4 जून को आने हैं लेकिन उससे पहले ही बीजेपी के लिए जीत की बोहनी हो गई। इस खबर से जहां बीजेपी फूले नहीं समा रही है। तो वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या तक करार दे रहा है। बात यहीं खत्म नहीं होती। जिनकी खुद की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध जीत हासिल कर पहली बार सांसद बनी थीं। वो अखिलेश यादव भी मोदी को कोसते हुए कहने लगे हैं कि सूरत में जनता का अपमान हुआ है। हम तो पहले से कह रहे हैं कि भाजपा वोट देने का अधिकार ही छीन लेगी..!
लोकसभा चुनाव का सियासी समर अभी जारी ही था कि इसी बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से बीजेपी के लिए अच्छी खबर आ गई। जहां सूरत लोकसभा सीट पर बीजेपी को चुनाव नतीजे आने से पहले ही जीत मिल गई। यानि चुनावी नतीजे तो चार जून को आने थे। लेकिन उससे पहले ही बीजेपी के लिए जीत की बोहनी हो गई। इस खबर से जहां बीजेपी फूले नहीं समा रही है। तो वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या तक करार दे रहा है। बात यहीं खत्म नहीं होती। जिनकी खुद की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध जीत हासिल कर पहली बार सांसद बनी थीं। वो अखिलेश यादव भी मोदी को कोसते हुए कहने लगे हैं कि सूरत में जनता का अपमान हुआ है। हम तो पहले से कह रहे हैं कि भाजपा वोट देने का अधिकार ही छीन लेगी।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हिंदुस्तान में लोकसभा चुनाव चल रहा है। और इस चुनाव की सबसे खास बात ये है कि कभी दशकों तक देश में सरकार चला चुकी कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है कि कोई उसके टिकट पर चुनाव ही नहीं लड़ना चाहता है। जिसे कांग्रेस टिकट भी देती है तो वो अगले ही दिन बीजेपी में चला जाता है। फिर वो मशहूर मुक्केबाज विजेंद्र सिंह हों। या फिर कभी कांग्रेसी सोशल मीडिया को हैंडल करने वाले रोहन गुप्ता हों। दोनों ही कांग्रेस नेताओं ने टिकट मिलने के बावजूद बीजेपी का दामन थाम लिया। तो वहीं गुजरात के सूरत में तो इससे भी गजब हो गया। जहां बेचारी कांग्रेस ने बड़ी उम्मीदों के साथ सूरत सीट जीतने के लिए निलेश कुम्भानी को उम्मीदवार बनाया था। जिन्होंने नामांकन भी दाखिल कर दिया था।
लेकिन उनके प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में गड़बड़ियों का हवाला देकर चुनाव आयोग ने नामांकन ही रद्द कर दिया। जिसके बाद बाकी बचे 8 उम्मीदवारों ने भी अपनी उम्मीदवारी वापिस ले ली। ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध चुन लिए गए। और चुनाव आयोग की ओर से उन्हें जीत का सर्टिफिकेट भी दे दिया गया। और अब सूत्रों के हवाले से ये खबर आ रही है कि कांग्रेस उम्मीदवार निलेश कुंभानी जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। ये भनक लगते ही कांग्रेस कार्यकर्ता उन्हें जनता का गद्दार और लोकशाही का हत्यारा कह कर विरोध प्रदर्शन करने लगे। तो वहीं दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में शामिल सपाई मुखिया अखिलेश यादव भी इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने में जुट गये। और एक लंबे चौड़े ट्वीट में उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि।
अखिलेश यादव, अध्यक्ष, सपा: सूरत में जनता का अपमान हुआ है, वहां वोट ही नहीं डालने दिया गया, हम तो पहले से कह रहे हैं, भाजपा वोट डालने का अधिकार ही छीन लेगी, देखिए वही हुआ है, ये भी संविधान की हत्या है क्योंकि इस तरह धांधली से जीते हुए लोग, जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं, भाजपा चुनाव आयोग को ठेंगा दिखा रही है, चुनाव आयोग को कम से कम अपनी मान-हानि के लिए तो कार्रवाई करनी चाहिए, चंडीगढ़ मेयर चुनाव की तरह हमारी एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से अपील है कि ‘सूरत’ की घटना का स्वत: संज्ञान ले और चुनाव रद्द करके सभी षड्यंत्रकारियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए, सूरत में नये सिरे से चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए।
कांग्रेस के लिए हमदर्दी दिखाने के चक्कर में सपाई मुखिया अखिलेश यादव लगे हाथ मोदी सरकार को कोसने लगे। लेकिन ये बात शायद भूल गये कि साल 2012 में जब यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था तो उस वक्त उनकी खुद की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध जीत कर ही सांसद बनी थीं। यही वजह है कि जैसे ही सूरत का मामला उठा कर अखिलेश यादव मोदी को कोसने लगे। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें डिंपल यादव की याद दिलाने लगे।
एक एक्स यूजर ने अखिलेश को जवाब देते हुए लिखा। आप तो यह न बोलो, डिम्पल भाभी नाराज हो जायेंगी, 2012 में डिम्पल भाभी कितने वोट से जीती थीं यह बताने वाले को 100 टोंटी ईनाम में दी जाएगी।
मोदी समर्थक जितेंद्र प्रताप सिंह ने लिखा: जब कन्नौज में आपकी धर्मपत्नी डिंपल यादव जी निर्विरोध जीती थी और जब कन्नौज के लोगों को वोट नहीं डालने दिया गया तब तो अपने नहीं कहा कि यह कन्नौज की जनता का अपमान है, भैया आप इतने दोगले क्यों हैं ? कभी टोटी चुराते हैं कभी कब्रिस्तान की दीवार बनवाते हैं कभी पुलिस वालों की ड्यूटी मंदिरों में लगाते हैं कि कोई हिंदू घंटी ना बजाने पाए, भैया इसीलिए आप सत्ता से लात मार कर बाहर कर दिए गए हैं
यूपी बीजेपी आईटी सेल का सोशल मीडिया चलाने वाले अभिषेक तिवारी ने लिखा। तुम्हारी पत्नी डिंपल यादव कैसे निर्विरोध बन गयी थी ? बंदूक की नोक पर ? पैसों के बल पर ? बाहुबल के बल पर ? बाकियों का नामांकन रद्द करवा कर ? क्यों अखिलेश यादव ? जवाब दो।
पत्रकार सुधीर मिश्रा ने लिखा। जहां भाजपा निर्विरोध जीते वहां जनता का अपमान और कन्नौज से डिम्पल यादव निर्विरोध जीत जाएं तो सम्मान? यह दोगलापन नहीं तो क्या है? वैसे हार का अभी से सामना शुरू कर दिया।
सूरत मामले पर मोदी सरकार को घेरने चले अखिलेश यादव की सोशल मीडिया पर कुछ इसी तरह से फजीहत हो रही है। कोई उनसे सवाल कर रहा है कि जब डिंपल यादव निर्विरोध जीती थीं तब जनता का अपमान नहीं हुआ था। तो कोई पूछ रहा है कि डिंपल यादव कैसे निर्विरोध जीती थीं। बंदूक की नोक पर या पैसों के बल पर। अखिलेश पर ये सवाल इसलिये उठ रहे हैं कि साल 2012 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जब समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटी थी तो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और कन्नौज से तत्कालीन सांसद अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया था। जिसकी वजह से उन्हें सांसदी छोड़नी पड़ गई थी।
डिंपल कैसे बनीं निर्विरोध सांसद ?
साल 2012 में कन्नौज में उप चुनाव हुआ तो मुलायम सिंह ने अपनी बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को टिकट देकर मैदान में उतार दिया, इस उप चुनाव में कांग्रेस और बसपा ने डिंपल यादव के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं किये, जबकि अंतिम क्षण में चुनाव लड़ने का फैसला करने वाली भाजपा का उम्मीदवार समय पर नामांकन करने से चूक गया, चुनाव मैदान में उतरे संयुक्त समाजवादी दल के प्रत्याशी दशरथ शंखवार और निर्दलीय उम्मीदवार संजू कटियार ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद 9 जून 2012 को डिंपल यादव को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया।
इस तरह से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव एक भी वोट पड़े बिना ही निर्विरोध सांसद बन गईं। तब शायद लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई थी। तब शायद जनता से उनके वोट का अधिकार छीनने की कोशिश नहीं हुई थी। तब शायद ना तो चुनावों में धांधली हुई थी और ना ही जनता का अपमान हुआ था। क्योंकि उस वक्त देश की सत्ता कांग्रेस के हाथ में थी। और यूपी की सत्ता सपाइयों के हाथ में थी। लेकिन जैसे ही सूरत में बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल ने निर्विरोध जीत हासिल की। मानो विपक्ष के सीने में आग लग गई। उन्हें ये बर्दाश्त ही नहीं हो रहा है कि चुनावी नतीजों के आने से पहले ही बीजेपी उम्मीदवार कैसे जीत गया। यानि डिंपल यादव निर्विरोध जीतें तो ठीक हैं। लेकिन बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध जीत जाये तो विपक्ष लोकतंत्र की हत्या का रोना रोने लगता है। मोदी विरोधियों के इस विधवा विलाप पर आपका क्या कहना है अपनी राय हमें कमेंट कर जरूर बताएं।