Manish Kashyap को Ignore करना BJP की गले की फांस कैसे बन गई?
मनीष कश्यप ने बिहार में बीजेपी के लिए राहों में रोड़े बिछा दिए हैं। ना तो बिहार बीजेपी के पास मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ कोई काट है, ना ही कोई रणनीति। ऐसे में पश्चिमी चंपारण में इस बार सियासी खेल पलट सकता है।
जिसकी एक आवाज़ पर हज़ारों की भीड़ यूँ ही इकठ्ठा हो जाती है। जिसे देखने के लिए हज़ारों लोग इंतज़ार करते हैं। जिसकी एक आवाज़ पर विरोधियों के पसीने छूट जा रहे हैं। जिसके एक इशारे पर नए सियासी पत्ते बिछ जाते हैं। जिसकी एक चाल पर बड़े बड़े नेताओं के हाल बिगड़ जाते हैं। उसी मनीष कश्यप को भाँपने में बीजेपी ने बड़ी गलती कर दी है।
कहते हैं कि राजनीति में ना तो कुछ ग़लत होता है, ना कुछ सही होता है। बस वक़्त के इशारे को जो समझ जाए, सिक्का उसी का चलता है। वरना जिस सीट पर कभी कांग्रेस की पकड़ थी, आजकल है तो ये छोटी सी बात लेकिन बीजेपी इसे समझ नहीं पाई। और इस गलती का अंदाज़ा भी बीजेपी को अभी अच्छे से है नहीं।
मनीष कश्यप की लोकप्रियता, मनीष कश्यप के पीछे खड़े लोग, मनीष कश्यप के समर्थक और उनकी सामाजिक ताक़त किसी से छिपी नहीं है। एक छोटी सी पुकार पर हज़ारों हाथ जिस ठसक के साथ मनीष के लिए उठते हैं, वो बीजेपी के लिए बड़ी बेचैनी है।
बग़ैर किसी संसाधन, बग़ैर किसी पार्टी के टिकट और बग़ैर किसी बड़ी पृष्ठभूमि के ही मनीष कश्यप ने पश्चिमी चंपारण को नए सियासी रंग में रंग दिया है। पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में दो ज़िलों के तीन-तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। ये सच है कि बीजेपी को पिछले तीन लोकसभा चुनाव में जीत मिली है। लेकिन एक सच ये भी है इस बार का गणित बिलकुल उल्टा पड़ गया है। और कारण है सिर्फ़ और सिर्फ़ मनीष कश्यप। अगर आपके मन में सवाल ये भी है कि कारण मनीष कश्यप क्यों है तो विस्तार से जान लीजिए।
बीजेपी का खेल बिगाड़ेंगे मनीष?
1. बीजेपी उम्मीदवार संजय जयसवाल से लोग नाखुश
2. क्षेत्र में एक भी उद्योग नहीं लगाया गया
3. अभी तक ट्रेन की सही व्यवस्था नहीं है
4. क्षेत्र में बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी
5. इलाक़े के कई काम सालों से अटके पड़े हैं
किसी एक सांसद के लिए किसी लोकसभा सीट से 15 साल का वक़्त कम नहीं होता है। ये सच है कि संजय जयसवाल को खूब मौक़ा मिला है। लेकिन जनता भाँप चुकी है कि अब वक़्त है पासा को पलटने का। और इस बात से बीजेपी की बेचैनी पहले से ज़्यादा बढ़ी हुई है। दूसरी बात ये कि इस बार पश्चिमी चंपारण से बीजेपी के अलावा बड़ी पार्टियों में सिर्फ़ कांग्रेस ही चुनावी मैदान में है। वही कांग्रेस जिसका अस्तित्व पहले से ही बिहार में ना के बराबर है। ऐसे में बीजेपी की घबराहट इसलिए बढ़ी हुई है कि इस बार पश्चिमी चंपारण में सीधी लड़ाई मनीष कश्यप Vs बीजेपी ना हो जाए।
पश्चिमी चंपारण से जो तस्वीरें सामने आ रही है, वो बता रही है कि मनीष कश्यप की लोकप्रियता से बीजेपी को इतनी परेशानी क्यों है। महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग से लेकर नौजवान तक मनीष कश्यप को खूब पसंद करते हैं। ये सच है कि समर्थकों में एक बड़ा वर्ग वो भी है जो मनीष कश्यप को यूट्यूब या सोशल मीडिया से जानता है। हालाँकि अब एक बड़ा वर्ग वो भी तैयार है जो उन्हें अन्य कई कारणों से जानता है। बात इतनी भर नहीं है, बिहार से सटे झारखंड में भी मनीष कश्यप को लोग खूब चाहते हैं। इन बातों के पीछे अलग अलग कारण हो सकते हैं। लेकिन उनके समर्थक अब वोट में भी तब्दील हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है।
बिहार के अलग अलग ज़िलों के स्थानीय मुद्दों को मनीष कश्यप ने ज़बरदस्त तरीक़े से उठाया है। लोगों को भरोसा दिलाया है कि इन समस्याओं का समाधान बहुत ज़रूरी है। और उन मुद्दों के साथ लोगों को बांधने की कला ने मनीष कश्यप को हर दिन एक नई पहचान दी है। अब इसी पहचान के साथ मनीष कश्यप बिहार के पश्चिमी चंपारण से बीजेपी के ख़िलाफ़ ताल ठोंक रहे हैं। संजय जयसवाल को सीधी चुनौती दे रहे हैं। और इसी बात से बीजेपी इतनी परेशान है कि ना तो इसे सही से काउंटर कर रही है और ना ही सही से कुछ कह पा रही है।
मनीष कश्यप को लेकर लोगों के मन में सहानुभूति भी है। ये सहानुभूति तब और ज़्यादा बढ़ी जब मनीष को जेल जाना पड़ा। नौ महीने के बाद जब जेल से मनीष कश्यप बाहर आए तो उनके पक्ष में उठने वाले हाथों की संख्या पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। लोगों के बीच अभी भी चर्चा इस बात को लेकर है कि मनीष कश्यप से बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार को जलन हो रही थी, क्योंकि उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही थी।
अब वक़्त है लोकसभा चुनाव का। पहले से ही अच्छे वक्ताओं की कमी से जूझ रही बिहार बीजेपी के पास मनीष कश्यप का कोई काट नहीं है। ना ही उनकी लोकप्रियता को ख़त्म करने का मंत्र। जिसका परिणाम हो सकता है चार जून को सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला हो सकता है।