UP CM की नाक के नीचे बवाल! मोदी-योगी के हाथ से फिसला यूपी?
लोकसभा के पहले चरण के मतदान से पहले यूपी के राजपूतो ने एक मोटी लकीर इस बात को लेकर खींच दी है कि वो उसे ही वोट करेंगे जो बीजेपी को हराएगा।
यूपी में अगर कहा जाए की राजपूत उस उम्मीदवार को वोट करेगा जो बीजेपी को हराएगा तो शायद कोई यकीन नहीं करेगा और इस बात को मजाक बताकर खारिज कर देगा। लेकिन लोकसभा के पहले चरण के मतदान से पहले यूपी के राजपूतो ने एक मोटी लकीर इस बात को लेकर खींच दी है कि वो उसे ही वोट करेंगे जो बीजेपी को हराएगा। राजपूतो ने जो मोर्चा पश्चिमी यूपी मे बीजेपी के खिलाफ खोला है उसे देखते हुए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के हाथ पांव फूले हुए है। नौबत यहा तक आ गई जब मेरठ में प्रधानमंत्री मोदी भाषण दे रहे थे तो योगी अदित्यनाथ पश्चिमी यूपी के दो बड़े नेताओं को समझाने में लगे है।
एक राजपूत नेता थे तो दुसरे जाट नेता थे। कौन थे वो नेता वो भी आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले आप ये भीड़ देख लिजिए जो यूपी के सहारनपुर जिले के ननौता गांव में इक्ट्ठा हुई थी और इन लोगों के जुटने का मकसद था यूपी में बीजेपी को सबक सिखाना। और खासतौर पर कैराना, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में, यहां आरएसएस से जुड़े लोग भी पहुंचे थे। तो ऐसे में सवाल उठता है कि जिस समाज को बीजेपी का कट्टर समर्थक बताया जाता है वो उसके खिलाफ लाखों की भीड़ में एकजूट होकर उसका विरोध कर क्यों रहे हैं?
राजपूतों के बारे में यूपी में कहा जाता है कि अगर कोई ठाकुर नेता किसी और पार्टी में भी है तो उसका शरीर तो गैर बीजेपी पार्टी में जरुर हो सकता है लेकिन आत्मा बीजेपी में ही मिलेगी। यूपी के गलियारों से खबरें तो ऐसी भी निकल कर आती है कि पूर्वी यूपी में तो योगी अदित्यनाथ दुसरे मुलायम सिंह है। मतलब जैसे यादवों से लिए मुलायम सिंह का कर्याकाल था, यादव एक सरकारी जाती बन गई थी उसी तरह यूपी में राजपुत हो गए है। इतना ही नहीं योगी अदित्यनाथ पर भी आरोप लगते आए है कि उनका झुकाव राजपुतो की तरफ ज्यादा रहता है।
हालांकि ये बात गलत कही जाती है क्योंकि योगी अदित्यनाथ का कहना है कि वो पच्चीस करोड़ जनता के सीएम है और इस बात को गलत साबित करता है मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ का परिवार क्योंकि योगी अदित्यनाथ का परिवार आज भी वहीं जीवन यापन कर रहा है जो उनके सांसद या सीएम बनने से पहले करता था तो योगी किसी इस जाति के प्रति समर्पित है या झुकाव रखते है, वो महज एक मिथ्या है खैर वापस मुद्दे पर आते है उस सवाल पर आते है जिस सवाल ने योगी से लेकर मोदी तक की नींद हराम कर दी है सवाल है ठाकुर नाराज क्यों है तो जो ठाकुर नाराज है उनका कहना है कि उनकी नाराजगी के दो कारण है। पहला है लोकसभा चुनाव राजपूत उम्मीदवारों के टिकट काट देना और दुसरा है सम्राट मिहिरभोज को गुर्जर बताया जाना। तो पहले कारण में तो दम नजर नहीं आता हां लेकिन दुसरे कारण को राजपूत लंबे वक्त से उठाते आए है। और ये मामला है इतिहास चोरी का और यूपी में ये विवाद शुरु होता है कैराना लोकसभा के मौजूदा बीजेपी सांसद के एक बयान से।
ठाकुर नेताओं का मानना है कि पिछले वर्ष प्रदीप चौधरी और मेरठ से सपा विधायक अतुल प्रधान के उकसाने पर ही सहारनपुर से मिहिर भोज प्रतिहार गौरव यात्रा निकाल थी। और इसी के बाद ठाकुर समाज पहले प्रदीप चौधरी के खिलाफ सड़कों पर उतारा और उसके बाद जब फिर से बीजेपी ने उनहे 2024 में टिकट दिया तो ठाकुरों का गुस्सा मोदी सरकार पर फूट पड़ा। और ये गुस्सा कब लाखों की भीड़ में तबदील हो गया सरकार भांप नहीं पाई। और ये गुस्सा इस कदर भड़का कि प्रधानमंत्री मोदी जब 31 मार्च को मेरठ में रैली करने जाने वाले थे, उससे दो दिन पहले ही मुजफ्फनगर से बीजेपी के वर्तमान सांसद और उम्मीदवार संजीव बालियान के काफिले पर ठाकुरो के गांव में हमला कर दिया जाता है और संजीव बालियान तैश में आकर सरधना से बीजेपी के पूर्व विधायक संगीत सोम पर इस हमले का ठीकरा फोड़ देते है। संजीव बालियान के लिए ये आसान इसलिए हो जाता है क्योंकि संगीत सोम भी राजपूत समाज से आते है और प्रभावी नेता है। मामला इतना बढ़ जाता है कि मेरठ में जिस वक्त प्रधानमंत्री मोदी भाषण दे रहे थे योगी अदित्यनाथ संगीत सोम और संजीव बालियान के साथ बैठक कर रहे थे, मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। अब मामला सुलझा है या नहीं वो चार जून को पता चलेगा लेकिन मुजफ्कनगर की अगर बात करें तो यहां का ठाकुर समाज संजीव बालियान पर ये भी आरोप लगाता है कि सेना की भर्ती के वक्त संजीव बालियान जाटों पर ज्यादा फोकस करते है।
अगर सीधे तौर पर कहा जाए तो उनपर जातिवाद के आरोप लगते है और पिछले दस सालों में मुजफ्फनगर में जितनी भर्तियों के फिजिकल हुए है हर भर्ती के बाद संजीव बालियान को इन आरोपों का सामना करना पड़ा है। वहीं कैराना की अगर बात करें तो कैराना में हाल और भी ज्यादा खराब है क्योंकि जिस गुर्जर समाज के प्रदीप चौधरी के उपर बीजेपी ने फिर से दांव खेला है…उनके समाज के लोग ही सपा नेता नाहिद हसन की बहन और कैराना से सपा की उम्मीदवार इकरा हसन का समर्थन करने की बात कर रहे है…और प्रदीप चौधरी राजपूत बाहुल्य गावों में जाने से भी कतरा रहे है…मतलब 19 अप्रैल को चुनाव होना है बीजेपी उम्मीदवार अब तक वोट मांगने नहीं पहुचें…तो इस बात का सीधा सा मतलब है कि पश्चिमी यूपी में जो ठाकुर चौबीसी बीजेपी की जीत की कहानी लिखती थी, उसी ठाकुर चौबीसी ने बीजेपी के बहिष्कार का बिगुल फूंक दिया है…और इन विरोध की लपटों में बीजेपी के कैराना, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर के उम्मीदवार अगर झुलस जाते है तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए…क्योंकि बीजेपी की तरफ से इस विरोध की उठती ज्वाला को झीण करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है…क्योंकि कैराना लोकसभा क्षेत्र के आने वाले बीजेपी के फायरब्रांड नेता सुरेश राणा, संगीत सोम को बीजेपी के हाशिए पर धकेल दिया है।
सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ में पकड़ रखने वाले सुरेश राणा को पार्टी ने बरेली मंडल की जिम्मेदारी सौंपी है…संगीत सोम को कोई जिम्मेदारी दी ही नहीं गई…हालांकि अगर इन नेतांओं को इनके लोकसभा क्षेत्रों में रखा जाता तो हो सकता था ये नेता अपने समाज को समझाने में कामयाबी हासिल करते…लेकिन पार्टी की राय कुछ अलग दिशा में जा रही है…क्योंकि राजपूतों का विरोध यूपी तक ही सीमीत नहीं है प्रधानमंत्री के गृहराज्या गुजरात में भी ठाकुरों को अपमान का घुंट पीना पड़ा और उससे भी दिल्ली के पसीने छुट रहे है…लेकिन चार सौ पार से लिए दौड़ लगा रही बीजेपी को उस भीड़ पर, उस समाज पर भी नजर दौड़ाने की जरुरत है…जो 7 अप्रैल को दिल्ली सहारनपुर हाइवे पर नजर आई थी…और ये भीड़ जमा हुई थी अपने इतिहास को बचाने के लिए…और इतिहास को बचाने के लिए ना जाने कितने शुरवीरों से देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी…महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे असंख्य शुरवीरों ने अपने लहूं से अपने इतिहास को सींचा है, कोई चोरी करेगा तो ज्वाला तो भड़केगी ।