Kadar Khan के मुँह से अपने लिए ’Sir ji’ सुनना चाहते थे Amitabh! फिर हो गई दुश्मनी?
कादर खान की ज़िंदगी से जुड़ी ऐसी कई रोचक कहानियां हैं जिसे आप नहीं जानते होंगे। उन्हीं रोचक कहानियों में एक हम आपको इस वीडियो में बताएँगे। जैसा कि हमने आपको शुरू में ही बताया कि अग्निपथ के एक डायलॉग ने अमिताभ बच्चन को बॉलिवुड का एंग्री यंग मैन बना दिया था। कादर खान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई सुपरहिट फ़िल्मों में काम भी किया। उनकी दोस्ती भी बहुत गहरी थी। लेकिन एक समय ऐसा आया कि एक छोटी सी अनबन ने दोनों की दोस्ती में फूट डाल दिया।
अपनी दमदार आवाज़, संवाद लेखन और बेमिसाल किरदार से हिंदी सिनेमा में अपनी धाक ज़माने वाले इकलौते कादर खान जैसे लेजेंड कलाकार सदी में एक बार ही पैदा होते हैं । इनकी शख़्सियत ऐसी थी कि जब इन्होंने कलम उठाया तो संवाद लेखनी से अमिताभ बच्चन और गोविंदा जैसे कलाकारों को सुपरस्टार बना दिया। जब इन्होंने पर्दे पर अभिनय किया तो सिनेमा जगत के कॉमेडी किंग बन गए, और जब इन्होंने कोई डायलॉग बोला तो अपनी दमदार आवाज़ से उसमें जान फूंक दी। साल 1990, फ़िल्म अग्निपथ और इसका एक डायलॉग- “विजय दीनानाथ चौहान, पूरा नाम। बाप का नाम दीनानाथ चौहान, मां का नाम सुहासिनी चौहान। गांव मांडवा। उम्र 36 साल, 9 महीना, 8 दिन और ये सोलवा घंटा चालू है” अमिताभ बच्चन के इस एक डायलॉग ने उन्हें बॉलीवुड का एंग्री यंग मैन बना दिया था। और इसे लिखने वाला कोई और नहीं बल्कि लेजेंड कादर खान साहब हैं। रोटी, हिम्मतवाला, खून भरी माँग, अग्निपथ, कर्मा, सरफ़रोश, धर्मवीर, अमर अकबर एंथोनी, कुली नंबर 1, शोले, ऐसे ही लगभग 250 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में कादर खान ने डायलॉग लिखे। और इन डायलॉग्स को बोलकर जिन कलाकारों ने सिल्वर स्क्रीन पर अपनी एक अलग पहचान बनाई, उसमें अमिताभ बच्चन, गोविंदा, दिलीप कुमार, राज कुमार, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, जीतेंद्र, फ़िरोज़ खान, मिथुन चक्रवर्ती, अनिल कपूर जैसे कलाकार शामिल हैं। ऐसे दिग्गजों के लिए कादर खान ने फ़िल्मों में डायलॉग लिखे. लेकिन क्या आपको पता हैं कि हिंदी सिनेमा को ऐसा लेजेंड हिरा कैसे मिला? इस स्टोरी में हम आपको कादर खान के बारे में ही बताने वाले हैं।
आपको बता दें कि कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर 1935 में काबुल अफ़ग़ानिस्तान में हुआ था। उनके माता-पिता उनके जन्म के बाद ही भारत आ गए थें। कादर खान से पहले उनके परिवार में तीन बेटे हुए थे, लेकिन सभी का आठ साल की उम्र तक ही निधन हो गया था। कादर खान जैसे ही पैदा हुए तो उनकी मां डर गईं थी कि कहीं उनके साथ भी ऐसा ही न हो। इसलिए उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से भारत आने का फ़ैसला किया और मुंबई के धारावी में आकर बस गईं । बस यहीं से उनका असली संघर्ष शुरू हुआ। कादर खान जब एक साल के थे तब उनके माता-पिता का तलाक़ हो गया। घर की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई । घर में फाके पड़ने लगे, ग़रीबी का ये आलम था कि एक मस्जिद पर जाकर वो भीख माँगने लगे । उनकी मां दूसरों के घरों में बर्तन माँजने लगी। कादर खान ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि हफ़्ते में तीन दिन वे और उनकी मां ख़ाली पेट ही सोते थे । उनकी मां को पता था कि उनकी ग़रीबी और भूख को अगर कोई दूर कर सकता है तो वो है शिक्षा ।कादर खान को भी पढ़ाई-लिखाई का बहुत शौक़ था । ग़रीबी में ख़ाली पेट रहते हुए ही सही कादर खान ने पढ़ना-लिखना भी जारी रखा । इसके अलावा कादर खान को बचपन से ही दूसरों की नक़ल करने का शौक़ था। जब वो नमाज़ पढ़ने जाते तो क़ब्रिस्तान में बैठकर फ़िल्मी डायलॉग्स बोला करते थे। एक दिन की बात है, ऐसे ही वे क़ब्रिस्तान जाकर डायलॉग बोलने की प्रैक्टिस कर रहे थे, तभी अशरफ़ खान नाम के एक शख़्स की नज़र उनपर पड़ी जिसने उन्हें नाटक करने की सलाह दी । और वे अभिनय सीखने और नाटक करने लगे। चुंकि, कादर खान को पढ़ने-लिखने का बचपन से ही शौक़ था। तो उन्होंने म्यनिसिपल स्कूल से अपनी पढ़ाई की शुरूआत की थी ।फिर इस्माइल कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की। इसके अलावा उन्होंने इंजिनियरिंग में डिप्लोमा भी किया था । उर्दू और फ़ारसी ज़ुबान पर उनकी पकड़ काफ़ी मज़बूत थी। फ़िल्मी दुनिया में आने से पहले वे कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी करते थे। एक बार की बात है कादर खान कॉलेज के सलाना फ़ंक्शन में परफ़ॉर्म कर रहे थे। और इत्तिफ़ाक़ से दिलीप कुमार साहब चीफ़ गेस्ट के तौर पर वहाँ पहुँचे थे। तभी दिलीप साहब की नज़र कादर खान पर पड़ी। और कहते हैं न असल हीरे परख सिर्फ़ जौहरी को होती है। कादर खान की एक्टिंग देखकर दिलीप साहब काफ़ी प्रभावित हुए और कादर खान को अपनी आने वाली फ़िल्म सगीना के लिए साइन कर लिया। बस इसी के साथ कादर खान ने हिंदी सिनेमा जगत में अपना पहला कदम रखा । और फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. कादर खान चुंकि काफ़ी पढ़े-लिखे थे। इसलिए हिंदी सिनेमा के वे ऑलराउंडर बन गए। पटकथा लेखन, संवाद लेखन के साथ-साथ अपने अभिनय के अंदाज से सभी के दिलों पर राज करने लगे। 300 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया, 250 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में संवाद लिखे। और फ़िल्म निर्माता मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा के साथ बहुत सी फ़िल्मों में स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर उनका सहयोग भी किया। और आज के दौर के महानायक अमिताभ बच्चन की 22 फ़िल्मों के लिए कादर खान ने संवाद लिखे। एक लेखक और अभिनेता के तौर पर कादर खान की शख़्सियत को एक छोटे से वीडियो में बता पाना नामुमकिन है। कादर खान की ज़िंदगी से जुड़ी ऐसी कई रोचक कहानियां हैं जिसे आप नहीं जानते होंगे। उन्हीं रोचक कहानियों में एक हम आपको इस वीडियो में बताएँगे। जैसा कि हमने आपको शुरू में ही बताया कि अग्निपथ के एक डायलॉग ने अमिताभ बच्चन को बॉलिवुड का एंग्री यंग मैन बना दिया था। कादर खान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई सुपरहिट फ़िल्मों में काम भी किया। उनकी दोस्ती भी बहुत गहरी थी। लेकिन एक समय ऐसा आया कि एक छोटी सी अनबन ने दोनों की दोस्ती में फूट डाल दिया। जी हाँ, कहा जाता है कि कादर खान ने अमिताभ बच्चन को ‘सरजी’ नहीं कहा था, जिसके बाद दोनों कि दोस्ती टूट गई. दरअसल, एक इंटरव्यू में कादर खान ने कहा था- “अमिताभ बच्चन के साथ मेरा जुड़ाव खून पसीना और मनमोहन देसाई की परवरिश से शुरू हुआ। हम अब भी कभी-कभार फ़ोन पर बात करते हैं। लेकिन बीच में हमारे रिश्तों में खटास आ गई थी। मैं इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहता किए ऐसा क्यों हुआ।” अमिताभ बच्चन का ज़िक्र करते हुए उन्होंन आगे कहा था- “मैं हमेशा उसे अमित कहकर बुलाता था, लेकिन एक दिन जब मैंने उसे अमित कहा तो उसे अच्छा नहीं लगा। दक्षिण भारत के एक निर्माता ने मुझसे पूछा, “ आप सरजी को मिला?” मैंने पूछा “कौन सर जी?” वह चौंक गया और बोला, “सर जी तुमको नहीं मालूम? अमिताभ बच्चन।” मैंने उससे कहा, “मैं उसे अमित कहता हूं, वह एक दोस्त है.” इस पर उसने कहा कि नहीं, अब से हमेशा सर जी बोलना, अमित नहीं बोलना, वह एक बड़ा आदमी है। इसी बीच अमिताभ हमारी तरफ़ आ रहे थे, और उन्होंने सोचा कि बाक़ी सभी की तरह ही मैं भी उन्हें सरजी कहुंगा, जो मैंने नहीं कहा। बस उस दिन के बाद से हमारी कभी बात नहीं हुई। खैर, कादर खान ने बतौर अभिनेता, कॉमेडियन और राइटर बालीवुड को अपनी ज़िंदगी के 45 साल दिए। आख़िरी में बढ़ती उम्र के साथ उनकी सेहत ने उनका साथ छोड़ दिया और उनकी तबीयत ख़राब रहने लगी। अपने आख़िरी दिनों में कई महीनों तक वे बीमार रहे। अस्तपताल में उनका इलाज चलता रहा. और आख़िरकार 31 दिसंबर 2018 को 81 साल की उम्र में कनाडा के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। वहीं पर उनका अंतिम संस्कार भी किया गया। और इस तरह से हिंदी सिनेमा ने एक लेजेंड कलाकार को खो दिया। तो ये थी कादर खान की ज़िंदगी से जुड़ी एक रोचक कहानी। वैसे कैसी लगी आपको ये स्टोरी, आप कमेंट करके ज़रूर बताएँ।