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बलूचिस्‍तान का संघर्ष पाकिस्तान की इन साज़िशों है नतीजा !

बलूचिस्‍तान जब से पाकिस्तान का हिस्सा बना तबसे लगातार होते शोषण और उसके ख़िलाफ़ उठे विद्रोह ने उसे कभी शांत नहीं रहने दिया…1947 में जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तब बलूचिस्‍तान को जबरन पाकिस्तान में मिलाने के आरोप लगे…जबकी इस क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा शुरू से ही आज़ादी की मांग करता रहा है
बलूचिस्‍तान का संघर्ष पाकिस्तान की इन साज़िशों है नतीजा !

आज़ादी के बाद भारत से अलग होकर बने पाकिस्तान को एक रखने की सबसे बड़ी चुनौती थी। जबरन अलग होने की ज़िद्द ने जिन्ना के सामने बहुत सी मुश्किलें खड़ी कर दीं। पाकिस्तान बन तो गया, लेकिन कई इलाकों को अपने में धोखे और ताक़त के दम पर मिलाने के आरोप लगे, इनमें से एक है बलूचिस्तान।

बलूचिस्तान जब से पाकिस्तान का हिस्सा बना, तबसे लगातार होते शोषण और उसके खिलाफ उठे विद्रोह ने उसे कभी शांत नहीं रहने दिया। 1947 में जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया, तब बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में मिलाने के आरोप लगे, जबकि इस क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा शुरू से ही आज़ादी की मांग करता रहा है। जबरन पाकिस्तान में मिलाने का दर्द उस वक्त बलूचियों के लिए नासूर बन गया, जब पाकिस्तानी सेना और हुकूमत ने उनका शोषण करते हुए सबसे बड़े और खनिज पदार्थों से संपन्न बलूचिस्तान को खोखला करना शुरू कर दिया। इसका विरोध करने पर बलूचियों के साथ बर्बरता की हद पार की गई। प्राकृतिक संपदा तो लूटी गई, लेकिन बदले में सबसे संपन्न बलूचिस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया गया। देखते ही देखते, बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुकी थी, लेकिन बलूचिस्तान कंगाली की गर्त में जा गिरा था। लोग भुखमरी से जूझ रहे थे। अब तक तीन दशकों का समय बीत चुका था।

1970 में बलूचिस्तान ने खुद की आज़ादी की लड़ाई तेज कर दी और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हथियार उठा लिए। पाकिस्तान में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की सरकार ने 1973 से 1977 के समय बलूच विद्रोह को कुचलने के लिए बड़ी सैन्य कार्रवाई की, लेकिन बलूचों का खून उबाल मार रहा था। लिहाजा पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान झेलना पड़ा। पाकिस्तान को जब लगा कि वह इस विद्रोह को अकेले नहीं दबा सकता है, तब उसने ईरान से मदद मांगी। उस समय ईरान के शाह ने पाकिस्तानी सेना को सैन्य हथियार और हेलीकॉप्टर दिए थे, लेकिन बलूचों को रोक पाना मुश्किल हो चुका था। इसके बाद 2000 में परवेज़ मुशर्रफ़ की सैन्य सरकार ने बलूचिस्तान में सैन्य अभियान तेज कर दिया। इस दौर में बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन खुलकर पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ खड़े हो गए। लेकिन पाकिस्तानी सेना की एक गलती ने इस विद्रोह को और हवा दी। बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की 2006 में पाकिस्तानी सेना की तरफ से की गई हत्या के बाद हालात और बिगड़ गए। जो अबतक सेना के क़ाबू से बाहर ही है। सेना ने ज़ोर ज़बरदस्ती के दम पर बलूचिस्तान में शोषण जारी रखा। सिर्फ पाकिस्तान ने अकेले नहीं, CPEC के नाम पर चीन से भी यही करवाया गया। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर से अपने संसाधनों की लूट और औपनिवेशिक कब्ज़े के रूप में बलूचों ने देखा। इससे तंग आकर बलूचों ने CPEC परियोजनाओं पर लगातार हमले शुरू कर दिए। 2018 में कराची स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए। 2019 में ग्वादर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला किया गया, जिसमें चीनी इंजीनियरों को निशाना बनाया गया। और आज तक ये हमले होते आ रहे हैं, जिससे तंग आकर चीन ने पाकिस्तान को खूब हड़काया और चीनी नागरिकों को सुरक्षा ना दे पाने के लिए पाकिस्तान की क्लास लगा दी।

ख़ुद को बचाने और अपने ऊपर से पाकिस्तान का जबरन क़ब्ज़ा हटवाने के लिए बलूचों ने जो अब ट्रेन हाईजैक की, वह इस विद्रोह का एक बहुत बड़ा रूप है। यह दिखाता है कि बलूचिस्तान को शोषण से बचाने के लिए यह विद्रोह समय के साथ कितना मज़बूत हुआ है। पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने भले ही ट्रेन हाईजैक खत्म होने का दावा किया और 33 बलूच लड़ाकों को मार गिराने की बात कही, लेकिन इस ऑपरेशन में बलूचों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई और दुनिया भर में उसकी किरकिरी करवा दी।

देश टूटने के ख़तरे से जूझ रही पाकिस्तानी हुकूमत ने 1 महीने पहले ही बलूचिस्तान में बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने की बात कही थी। इसके बाद सबक के तौर पर यह ट्रेन हाईजैक और BLA के दावे के मुताबिक़ 100 पाकिस्तानी सैनिकों की जान गंवाने के बाद पाकिस्तान को मिला है। अब क्या बलूच ये हमले कर दुनिया को कोई संदेश भी देना चाहता है? और क्या इसके बाद अमेरिका, रूस या इज़रायल बलूचिस्तान में कोई रुचि दिखा सकते हैं?

अब बलूचों का यह संघर्ष पाकिस्तान को तोड़ने के लिए ही है। और अगर यह मज़बूत होता चला गया, तो बलूचिस्तान ही नहीं, खैबर पख्तूनख्वा भी पाकिस्तान के हाथ से जाएगा। तालिबान ने जिस तरह TTP के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को सबक़ सिखाया हुआ है, उससे पाकिस्तान सक्ते में है और चौतरफा मार झेल रहे पाकिस्तान वैसे भी चीन के एहसान के बदौलत ही देश चला पा रहा है। देखना होगा कि कहीं अब इतिहास की किताबों में ही पाकिस्तान ना रह जाए।




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