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Bangladesh में संकट के बीच चरमराया कपड़ा उधोग, 900 कारखाने बंद, हुआ बुरा हाल

बांग्लादेश के कारखानों से निर्यात किए गए आधुनिक फ़ैशन के h एंड M, जीएपी और ज़ारा जैसे ब्रैंड के कपड़े दुनिया के कई देशों में लोगों की अलमारियों में मिल जाते हैं। बीते तीन दशकों में इस बिज़नेस ने बांग्लादेश को दुनिया के सबसे ग़रीब देशों की क़तार से निकालकर एक निम्न-मध्यम आय वाला देश बना दिया है।
Bangladesh में संकट के बीच चरमराया कपड़ा उधोग, 900 कारखाने बंद, हुआ बुरा हाल
5 अगस्त 2024 की वो तारीख जिसे Bangladesh के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। ये वो तारीख है जब बांग्लादेश पर 15 सालों तक राज करने वाली शेख हसीना की ताकत लाखों प्रदर्शनकारियों के आगे झुक गई। यही वो तारीख जब शेख हसीना अपना सब कुछ बांग्लादेश में ही छोड़कर भारत के लिए निकल गईं। और उसके बाद वहां प्रदर्शनकारियों ने अपनी जीत का जश्न मनाया। लेकिन इस सब के बीच बांग्लादेश में बहुत कुछ तहस नहस हो गया। बांग्लादेश जिस कपड़ा उघोग से जाना जाता है वहां की हालत भी खराब हो गई। 1 महीने में अब वहां क्या बदला है तब क्या क्या हुआ। और अब कैसे हैं कपड़ा उघोग के हालात जानेंगे आज के इस वीडियो में तो चलिए शुरू करते हैं।


बांग्लादेश के कपड़ा उधोग की बात आज हम खासतौर पर इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि इसकी ख्याति दुनिया भर में रही है। चीन के बाद बांग्लादेश कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। बांग्लादेश के कारखानों से निर्यात किए गए आधुनिक फ़ैशन के h एंड M, जीएपी और ज़ारा जैसे ब्रैंड के कपड़े दुनिया के कई देशों में लोगों की अलमारियों में मिल जाते हैं। बीते तीन दशकों में इस बिज़नेस ने बांग्लादेश को दुनिया के सबसे ग़रीब देशों की क़तार से निकालकर एक निम्न-मध्यम आय वाला देश बना दिया है। देश में हफ़्तों चले विरोध-प्रदर्शनों के बाद अगस्त महीने में हुए प्रदर्शनों के दौरान कम से कम चार कपड़ा फ़ैक्ट्री में आग लगा दी गई थी। देश में दो माह तक प्रदर्शन, कर्फ्यू और हिंसा देखी गई। इस अशांति ने न केवल कारखानों के संचालन को बाधित किया है, बल्कि इससे गंभीर आर्थिक नुकसान भी हुआ।

बांग्लादेश गार्मेंट मैनुफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (बीजीएमईए) ने हाल ही में वित्तीय घाटे की रिपोर्ट जारी की जिसमें बंद और संचार व्यवस्था बाधित होने के कारण 6,400 करोड़ टका (लगभग 4,500 करोड़ रुपए) के नुकसान का अनुमान जताया गया।

"बांग्लादेश गार्मेंट मैनुफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के मुताबिक बांग्लादेश में कपड़े के लगभग तीन हजार छोटे-बड़े कारखानों में से लगभग 800-900 पिछले साल से बंद हो चुके हैं। बड़े कारखाने तो बच गए हैं लेकिन छोटे और मध्यम स्तर के कारखानों को खामियाजा भुगतना पड़ा"।

हिंसा और शेख हसीने के देश छोड़कर भागने के बाद देश में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार का गठन हो गया। अब लगा की बांग्लादेश के हालातों में सुधार शुरू होगा। खासकर कपड़ा उघोग में फिर से तेजी आएगी नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार का गठन हो गया। बांग्लादेश में हालांकि प्रोडक्शन इकाइयों ने फिर से काम करना शुरू कर दिया है और बकाया ऑर्डर को पूरा करने के लिए कर्मचारी अतिरिक्त काम भी कर रहे हैं। लेकिन वेस्टर्न कपड़े बनाने वाली और फुटवियर कंपनियों ने बांग्लादेश को नए ऑर्डर देना बंद कर दिया है। बांग्लादेश को ऑर्डर ना मिलने का असर भारत के कपड़ा उद्योग पर भी पड़ा है। भारत का कपड़ा उद्योग बांग्लादेश को कच्चे माल और दूसरी ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति करता है। कपड़ा उद्योग के जानकारों का कहना है कि भारत से बांग्लादेश को होने वाले कॉटन के निर्यात में गिरावट आनी शुरू हो गई है। यानि बांग्लादेश में कपड़ा कारोबारियों के सामने समस्या अब भी बनी हुई है।

बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक हंगामे की वजह से इस साल निर्यात में 10 से 20 फ़ीसदी की गिरावट आ सकती है

यह कोई छोटी गिरावट नहीं है जबकि बांग्लादेश को निर्यात से होने वाली कमाई का 80 फ़ीसदी हिस्सा फ़ास्ट फ़ैशन एक्सपोर्ट से आता है

यहां तक कि बांग्लादेश में हुई हालिया घटना से कई महीने पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था और इसके कपड़ा उद्योग की स्थिति अच्छी नहीं थी

इसमें बाल मज़दूरी के कथित मामलों, जानलेवा हादसे और कोविड-19 के कारण पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों ने अहम भूमिका निभाई थी

अब ये भी जानिए कि बांग्लादेश में टेक्सटाइल और गारमेंट उद्योग वहां की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और "यह इस देश की निर्यात से होने वाली आय का 80% से ज्यादा हिस्सा देता है। देश की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 11% है । बांग्लादेश में कपड़ा उद्योग 45 अरब डॉलर का है और इससे 40 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है "

अब ये इस सब के बीच आपका ये जानना भी बेहद जरूरी हो जाता है कि। बांग्लादेश के कपड़ा उधोग में इतना बड़ा उछाल कैसे आया। और बांग्लादेश इतना दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक कैसे बना। तो साल1978 में पहली बार बांग्लादेश के रेडिमेड उद्योग के जनक कहे जाने वाले नुरुल कादर खान ने 130 युवा ट्रेनीज को दक्षिण कोरिया ट्रेनिंग के लिए भेजा, तो ये घटना आने वाले समय में इस देश को बदलकर रख देने वाली थी। जब वहां ये ट्रेनी लौटे तो बांग्लादेश की पहली गारमेंट फैक्ट्री खोली गई। बाहर से काम लेने की कोशिश शुरू हुई। इसके बाद देखते ही देखते बांग्लादेश में कई और फैक्ट्रियों की नींव पड़ी। फिर इस उद्योग ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1985 में बांग्लादेश का ये रेडिमेड गारमेंट उद्योग 380 मिलियन डॉलर का था और अब 22.49 बिलियन डॉलर का। बांग्लादेश की करीब 80 फीसदी निर्यात की आमदनी इस उद्योग से होती है। दुनिया के बड़े बड़े ब्रांड्स को भी लगता है कि जब बड़े पैमाने पर बहुत कम पैसों में वो बांग्लादेश में उत्कृष्ट क्वालिटी और डिजाइन वाले कपड़े बनवा सकते हैं तो उसके लिए यूरोपीय फैक्ट्रियों को महंगा श्रम का पैसा क्यों दें। बांग्लादेश में उम्दा कॉटन के साथ बनी एक टी-शर्ट की कीमत सारी लागत, मजदूरी, ट्रांसपोटेशन, शो-रूम का खर्च निकाल कर यदि अमूमन 1.60 डॉलर से 6.00 डॉलर तक आता है तो इसे अलग अलग ब्रांड्स यूरोप और अमेरिका में कमोवेश कई गुना ज्यादा कीमत में बेचते हैं।

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