दुनिया पर क़ब्ज़ा करेगी ये तिकड़ी, NATO को भी होनी लगी टेंशन !
रूस में रहते हुए अगर पुरानी चीजें भूलकर भारत और चीन पास आते हैं तो इसमें रूस का बड़ा रोल माना जाएगा ।और इन तीनों की घनघोर यारी पर दुनिया की नज़रें होंगी।खलबली मचेगी पश्चिमी देशों के बीच जो ख़ुद के पास पावर सेंटर होने का दावा करता है। उसी पावर सेंटर का पश्चिमी देशों से शिफ्ट होकर एशिया में आना तय होगा।
प्रधानमंत्री मोदी रूस के शहर कज़ान पहुँच चुके है यहाँ वो BRICS समिट में हिस्सा लेंगे उससे पहले राष्ट्रपति पुतिन से मोदी ने मुलाक़ात की। इस दौरान दोनों के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई। इस दौरान पुतिन ने कहा, "हमारे संबंध इतने अच्छे हैं कि आप मेरी बात बिना ट्रांसलेटर के समझ जाते हैं। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन जंग पर भारत के स्टैंड को कायम रखा। उन्होंने कहा, "हर समस्या का समाधान शांतिपूर्ण ढंग से हो..भारत की चीन से भी यहाँ मुलाकात हो सकती है ये कहा जा रहा है अगर ऐसा होता है तो दो सालों के बाद ऐसी तस्वीर देखने को मिलेगी जिसमें पीएम मोदी और XI JINPING साथ होंगे और चीन के साथ चल रहे भारत के विवाद पर बात भी हो सकती है। हालाँकि पीएम के रूस जाने से पहले चीन से ये विवाद लगभग सुलझ ही गया है। दोनों देशों के बीच LAC पर 2020 वाली स्थिति में पेट्रोलिंग पर एक व्यवस्था को लेकर सहमति बनी है। इस बात की पुष्टि चीन ने भी अब कर दी है। अब इस मामले के सुलझने के बाद अगर कज़ान में पीएम मोदी की मुलाक़ात चीनी राष्ट्रपति XI JINPING से होती है तो दुनिया में इसकी चर्चा होगी। वहीं रूस चीन और भारत ने जिस तरीक़े से साथ आकर इस संगठन को बनाया अगर इसी शक्ति से वो चीजें फिर आगे बढ़ीं तो ऐसा गणित बनेगा, जिससे दुनिया का पूरा ‘भूगोल’ बदल सकता है। रूस में रहते हुए अगर पुरानी चीजें भूलकर भारत और चीन पास आते हैं तो इसमें रूस का बड़ा रोल माना जाएगा। और इन तीनों की घनघोर यारी पर दुनिया की नज़रें होंगी।
खलबली मचेगी पश्चिमी देशों के बीच जो ख़ुद के पास पावर सेंटर होने का दावा करता है। उसी पावर सेंटर का पश्चिमी देशों से शिफ्ट होकर एशिया में आना तय होगा। हालांकि यह सब इतना आसान नहीं है, जितना कि लिखना या बात करना लेकिन अगर संभावनाओं पर गौर किया जाए तो तीनों देशों के लिए विन-विन सिचुएशन बनेगी।
दुनिया की 36 फीसदी आबादी वाले इन तीनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मिला लिया जाए तो यह दुनिया की जीडीपी का कुल 26 फीसदी बनता है। 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन 19.37 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत 3.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी है।इसी तरह रूस की जीडीपी भी 1.88 ट्रिलियन डॉलर की है।
रूस की इकॉनमी बेशक तीनों में छोटी है, मगर तेल-गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों के भंडार के चलते वह काफी पावरफुल स्थिति में है। तीनों अगर एकसाथ आते हैं तो 2.8 बिलियन लोगों का एक बाजार होगा और उस बाजार की जरूरतें पूरा करने में ही बिजनेस के भी खूब पनपने की संभावनाएं होंगी। जब बाजार की बात आती है तो इसमें ऊर्जा, टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर, और करेंसी स्वैपिंग के क्षेत्रों में एक दूसरी की मदद हो सकेगी और बड़ी आबादी की बड़ी जरूरतों को बेहतर तरीके से पूरा किया जा सकेगा। बारी बारी से अगर तीनों देशों कि शक्तियों की बात की जाए तो समझ आएगा की ये संभावनाएँ जो बन ही है या इसपर बात हो रही है वो क्यों है।
चीन : जिसने टेक्नोलॉजी में भारी निवेश किया है..2023 तक 5G में ग्लोबल लीडर बनते हुए उसने 2.3 मिलियन से अधिक बेस स्टेशन स्थापित किए। चीन की कंपनियों पर पश्चिमी देशों ने बैन लगा दिया है। और उसे इस क्षेत्र में काफी सीमित कर दिया गया है ।लेकिन भारत चीन के लिए के लिए बड़ी मार्केट है।
रूस : यूरोप की 40 फीसदी गैस आपूर्ति करता है इतना बड़ा भंडार उसके पास है। लेकिन यूक्रेन से जंग के चलते..पश्चिमी देशों ने उसपर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रतिबंध के चलते भारत ने अपनी राह चलते हुए रूस से तेल ख़रीदना चालू रखा। 2022 में, रूस ने चीन को 80 मिलियन टन और भारत को 40 मिलियन टन तेल निर्यात किया। 2023 तक, भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक बन गया। हमने प्रति दिन 1.64 मिलियन बैरल तेल खरीदा, जो युद्ध से पहले की तुलना में 33 गुना अधिक है. यह भारत के कुल तेल आयात का 40% से भी ज़्यादा है।
भारत : अब भारत की बात करें तो । वो भी आईटी क्षेत्र में एक महाशक्ति बनकर उभरा है। सॉफ्टवेयर और सर्विसेज इंडस्ट्री वित्त वर्ष 23 में 227 बिलियन डॉलर की हो गई है।
नाटो के सामने एक बड़ा विकल्प होने के लिए। तीनों देश अगर साथ आते हैं तो काम कर सकते हैं ऐसा क्यों है तो ऐसा इसलिए क्योंकि। 2022 में, रूस ने अपने सैन्य खर्च पर 86.4 बिलियन डॉलर खर्च किए, जबकि चीन ने 293.4 बिलियन डॉलर आवंटित किए। चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश है। भारत 73 बिलियन डॉलर के बजट के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला है। तीनों देशों का संयुक्त सैन्य खर्च लगभग 453 बिलियन डॉलर है, जबकि NATO का कुल बजट 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है. बेशक NATO इन तीन देशों से अधिक खर्च करता है, फिर भी इन तीन देशों की संयुक्त ताकत वैश्विक सैन्य संतुलन पर असर डाल सकती है।
अब ये तो हैं कुछ बातें जिससे ये पता चलता है इन तीन देशों को क्यों साथ आना चाहिए या कहे कि क्या इन तीनों के साथ आने की संभावनाएँ हैं। वहीं BRICS की शुरूआत से पहले रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रूस-भारत-चीन (RIC) तिकड़ी को लेकर बयान दिया है। उनका ये बयान काफ़ी अहम माना जा रहा है। दरअसल, लावरोव ने कहा कि पिछले कुछ सालों से ये देश औपचारिक तौर पर नहीं मिले हैं, लेकिन आज भी ये एक मजबूत संबंध रखते हैं। अब अगर भारत चीन की बात करें तो भारत-चीन के बीच आए ताजा अपडेट से पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर कह चुके हैं कि ‘चीन के साथ भारत का संबंध न केवल एशिया के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि इस तरह से शायद दुनिया के भविष्य को भी प्रभावित करेगा। लेकिन ये सब जिस पर हमने बात की उसकी संभावनाओं के पीछे एक और पेंच चीन की तरफ़ से ही क्योंकि भले ही भारत से चीन के रिश्ते पूर्वी लद्धाख में सुलझने की बात हो गई हो। लेकिन चीन अरुणाचल में जिस तरीक़े से चालबाज़ी कर रहा है वो बर्दाश्त के बाहर है।इसलिए चीन भी अगर इन संभावनाओं की बात करता है या सोचता है तो उसे भारत के ख़िलाफ़ अपनी चालबाज़ी बंद करनी होगी। और अगर LAC पर विवाद रूस के धूल के बाद थमा है तो अरुणाचल में रूस इसे देखे और चीन को समझाए।