पारसनाथ तीर्थ पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जैन आस्थाओं के अनुरूप संरक्षित करने के निर्देश!
जैन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र माना जाने वाले पारसनाथ पहाड़ पर कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। झारखंड हाई कोर्ट ने इसे जैन समाज की आस्था के अनुरूप संरक्षित करने के निर्देश दिए है। कोर्ट ने इस पूरे विवाद और लंबे समय से चली आ रही मांग पर भी अपना फैसला सुनाया है।

झारखंड का पारसनाथ पहाड़ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। यह स्थान अनेक तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि रहा है और देश-दुनिया के लाखों जैन श्रद्धालु इसमें अपनी आस्था रखते हैं। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में धार्मिक मर्यादाओं के विपरीत गतिविधियों के बढ़ने की बात सामने आई है।
शराब, मांस बिक्री और अतिक्रमण पर जताई गई चिंता -
झारखंड हाई कोर्ट में जैन संस्था ‘ज्योति’ दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि पर्वत क्षेत्र में मांस और शराब की बिक्री हो रही है, जो जैन धर्म की भावनाओं के खिलाफ़ है। इसके अलावा, अतिक्रमण और अनधिकृत निर्माण कार्यों की भी शिकायत की गई। यहां तक कि आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को खाने में अंडे दिए जाने की भी बात कही गई, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं।
पर्यटन स्थल के विकास से बढ़ सकती हैं समस्याएं -
याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य सरकार पारसनाथ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है, जिससे ऐसी गतिविधियां और बढ़ सकती हैं, जो जैन धर्म की परंपराओं को प्रभावित करेंगी। उन्होंने यह मांग की कि पहाड़ पर होने वाली सभी गतिविधियों को धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप नियंत्रित किया जाए।
हाई कोर्ट का सख्त रुख, सरकार को निर्देश -
इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान निर्देश दिया कि राज्य सरकार, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और याचिकाकर्ता मिलकर स्थल का अवलोकन करें और स्थिति की रिपोर्ट अदालत को सौंपें। इसके बाद अदालत आगे की कार्यवाही करेगी और आदेश पारित करेगी।
राज्य सरकार ने कोर्ट में क्या कहा -
राज्य की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि सरकार पहले से ही ऐसे तत्वों पर कार्रवाई कर रही है जो धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार धार्मिक भावनाओं का ध्यान रख रही है। रंजन ने आगे कहा कि मांस बिक्री और अतिक्रमण जैसे मामलों पर लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं, और आगे भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
याचिका में केंद्रीय अधिसूचना का दिया गया हवाला -
याचिका में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की 5 जनवरी 2023 की अधिसूचना का उल्लेख किया गया, जिसमें कहा गया है कि पारसनाथ क्षेत्र में कोई भी कार्य जैन धर्म की भावना के अनुरूप ही होना चाहिए। लेकिन याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इसका पालन नहीं हो रहा।
वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने रखी याचिकाकर्ता की बात -
प्रार्थी संस्था की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डैरियस खंबाटा, इंद्रजीत सिन्हा, खुशबू कटारुका और शुभम कटारुका ने अदालत के समक्ष विस्तृत दलीलें पेश कीं।
कोर्ट के फैसले का क्या होगा असर -
झारखंड हाई कोर्ट का यह निर्णय धार्मिक स्थलों की पवित्रता और पारंपरिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक अहम कदम है। आने वाले दिनों में पारसनाथ की स्थिति को लेकर अदालत की अगली कार्रवाई पर पूरे देश की निगाहें टिकी रहेंगी।