अगर आप भी फ्रिज में रखते हैं कच्चा दूध, तो जान ले इसकी खतरनाक सच्चाई
एक अध्ययन ने कच्चे दूध में छिपे खतरों को उजागर कर दिया है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के अनुसार, कच्चे दूध का सेवन 200 से अधिक बीमारियों से जुड़ा हुआ है। इसमें ई. कोली, साल्मोनेला, और लिस्टेरिया जैसे खतरनाक बैक्टीरिया शामिल हैं, जो कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।
हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन ने हमारी दैनिक जीवनशैली से जुड़े एक खतरनाक पहलू को उजागर किया है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कच्चे दूध (रॉ मिल्क) में फ्लू वायरस पांच दिनों तक जिंदा रह सकता है। यह खुलासा तब हुआ है जब पूरी दुनिया बर्ड फ्लू और अन्य वायरस से जुड़ी चिंताओं से पहले ही जूझ रही है।
यह अध्ययन, जो स्टैनफोर्ड डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी और स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, कच्चे दूध के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों पर गहरी रोशनी डालता है। अध्ययन ने पाश्चराइजेशन की प्रक्रिया को स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण बताया है।
कच्चा दूध सेहत के लिए फायदेमंद या खतरनाक?
कच्चे दूध के समर्थकों का मानना है कि यह पोषण से भरपूर होता है और पाश्चराइजेशन के दौरान पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। कच्चे दूध में प्राकृतिक एंजाइम और प्रोबायोटिक्स मौजूद होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
लेकिन इस अध्ययन ने कच्चे दूध में छिपे खतरों को उजागर कर दिया है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के अनुसार, कच्चे दूध का सेवन 200 से अधिक बीमारियों से जुड़ा हुआ है। इसमें ई. कोली, साल्मोनेला, और लिस्टेरिया जैसे खतरनाक बैक्टीरिया शामिल हैं, जो कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।
फ्लू वायरस की ताकत
स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने पाया कि मानव इन्फ्लूएंजा वायरस (H1N1 PR8) कच्चे गाय के दूध में सामान्य रेफ्रिजरेशन तापमान पर पांच दिनों तक सक्रिय और संक्रामक बना रहता है। यह खोज डराने वाली है क्योंकि यह वायरस न केवल दूध के माध्यम से बल्कि डेयरी सुविधाओं की सतहों और पर्यावरणीय सामग्रियों को भी दूषित कर सकता है। अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक मेंगयांग झांग ने कहा, "कच्चे दूध में संक्रामक फ्लू वायरस का लंबे समय तक बने रहना एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है। यह वायरस जानवरों और मनुष्यों के बीच संक्रमण के नए रास्ते खोल सकता है।"
अध्ययन में यह भी पाया गया कि पाश्चराइजेशन की प्रक्रिया ने कच्चे दूध में मौजूद वायरस को लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया। यह प्रक्रिया न केवल वायरस को खत्म करती है बल्कि वायरल आरएनए की मात्रा को भी 90 प्रतिशत तक कम कर देती है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस के आरएनए अणु (जो संक्रमण का कारण नहीं बनते) पाश्चराइजेशन के बाद भी 57 दिनों तक दूध में मौजूद रहे।
बर्ड फ्लू और डेयरी उद्योग की बढ़ती चुनौती
डेयरी मवेशियों में बर्ड फ्लू का प्रसार पहले ही गंभीर चिंताएं पैदा कर चुका है। अगर यह वायरस कच्चे दूध के माध्यम से इंसानों तक पहुंचता है, तो यह एक नई महामारी की शुरुआत कर सकता है। अध्ययन के प्रमुख लेखकों ने इस पर जोर दिया कि डेयरी उत्पादों की निगरानी प्रणाली में सुधार की सख्त आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जब तक पाश्चराइजेशन को व्यापक रूप से अपनाया नहीं जाता, तब तक कच्चे दूध का सेवन एक जोखिम भरा कदम हो सकता है।
इस अध्ययन ने यह साफ कर दिया है कि कच्चे दूध को लेकर जो भ्रम और मिथक हैं, वे हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकते हैं। डेयरी उत्पादों के माध्यम से वायरस के फैलने का खतरा न केवल किसानों और उपभोक्ताओं को सतर्क करता है, बल्कि यह हमारी खाद्य सुरक्षा प्रणाली की खामियों को भी उजागर करता है। क्या हम अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए कच्चे दूध का सेवन बंद करेंगे? या फिर पाश्चराइजेशन के महत्व को समझते हुए सावधानी बरतेंगे? यह फैसला हमारे हाथ में है।
Source- IANS
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