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जानिए किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने की पूरी प्रक्रिया, कैसे मिलती है ये उपाधि?

बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा ममता कुलकर्णी, जिन्होंने 90 के दशक में अपनी अदाकारी से लाखों दिलों पर राज किया, अब आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो चुकी हैं। हाल ही में महाकुंभ 2025 के दौरान उन्हें किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर उपाधि से सम्मानित किया गया। अब वह "यमाई ममता नंद गिरि" के नाम से जानी जाएंगी।
जानिए किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने की पूरी प्रक्रिया, कैसे मिलती है ये उपाधि?
90 के दशक की मशहूर अभिनेत्री ममता कुलकर्णी, जो कभी बॉलीवुड की चमक-दमक भरी दुनिया का हिस्सा थीं, अब आध्यात्मिकता की राह पर निकल चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने प्रयागराज के महाकुंभ में किन्नर अखाड़े से महामंडलेश्वर की उपाधि ग्रहण की। इस ऐतिहासिक कदम ने न केवल उनके जीवन को नया मोड़ दिया है, बल्कि आध्यात्मिक दुनिया में किन्नर अखाड़े की विशिष्ट पहचान को भी नई ऊंचाई दी है।

महामंडलेश्वर उपाधि और किन्नर अखाड़ा

किन्नर अखाड़ा एक अनूठा आध्यात्मिक और धार्मिक संगठन है, जो ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और धार्मिक सम्मान दिलाने की दिशा में कार्यरत है। इसकी स्थापना 2015 में ऋषि अजयदास ने की थी। प्रारंभ में इसे अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिली थी, लेकिन 2016 में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को पहला महामंडलेश्वर बनाए जाने के बाद इसकी पहचान और प्रभाव बढ़ा। यह अखाड़ा उन लोगों के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करता है, जिन्हें समाज में लंबे समय से हाशिए पर रखा गया था। महामंडलेश्वर की उपाधि हिंदू धर्म में अत्यधिक सम्मानित मानी जाती है। यह पद किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान को दर्शाता है। इस उपाधि के तहत व्यक्ति को अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर मानवता की सेवा और आध्यात्मिकता के प्रचार में अपना जीवन समर्पित करना होता है।

ममता कुलकर्णी, जिन्होंने "करण अर्जुन," "क्रांतिवीर," "सबसे बड़ा खिलाड़ी" जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीता, ने अचानक बॉलीवुड को अलविदा कह दिया। उनका नाम ड्रग माफिया विक्की गोस्वामी के साथ जुड़ने और विवादों में घिरने के बाद उन्होंने खुद को दुनिया से अलग कर लिया। बीते कुछ वर्षों में ममता का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर गया। दो वर्षों तक जूना अखाड़े से जुड़ी रहने के बाद उन्होंने किन्नर अखाड़े का हिस्सा बनने का निर्णय लिया। महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में उन्होंने अपने सांसारिक जीवन का त्याग कर किन्नर अखाड़े की परंपराओं और नियमों का पालन किया।

महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया

महामंडलेश्वर बनने के लिए सबसे पहले किसी मान्यता प्राप्त अखाड़े से जुड़ना आवश्यक है। इसके बाद संन्यास दीक्षा ली जाती है, जो व्यक्ति के सांसारिक जीवन का अंत और आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। यह प्रक्रिया पिंडदान से शुरू होती है, जो व्यक्ति की पिछली पहचान और दायित्वों को त्यागने का प्रतीक है। इसके बाद पट्टाभिषेक समारोह आयोजित किया जाता है, जहां महामंडलेश्वर बनने वाले व्यक्ति का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इस समारोह में 13 अखाड़ों के संत और साधु शामिल होते हैं। पट्टू (प्रतीकात्मक वस्त्र) प्रदान कर नए महामंडलेश्वर को आधिकारिक रूप से मान्यता दी जाती है।

किन्नर अखाड़े का उद्देश्य और महत्व

किन्नर अखाड़ा ट्रांसजेंडर समुदाय को धार्मिक और सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए समर्पित है। इसकी स्थापना ऐसे समय में हुई थी, जब समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को हाशिए पर रखा गया था। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जैसी व्यक्तित्व ने इस अखाड़े को नेतृत्व देकर इसे एक पहचान दी। किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर बनने का मतलब है न केवल व्यक्तिगत विकास बल्कि समाज के लिए एक उदाहरण पेश करना। ममता कुलकर्णी का इसमें शामिल होना दिखाता है कि आध्यात्मिकता किसी विशेष वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं है।

महाकुंभ में महामंडलेश्वर बनने के बाद ममता को अब "यमाई ममता नंद गिरि" के नाम से जाना जाएगा। यह बदलाव न केवल उनके जीवन का नया अध्याय है, बल्कि किन्नर अखाड़े और उनके आध्यात्मिक सफर के लिए भी एक मील का पत्थर है। ममता कुलकर्णी का किन्नर अखाड़े से जुड़ना यह संदेश देता है कि जीवन का हर चरण एक नई शुरुआत हो सकता है। यह दिखाता है कि समाज में धर्म, आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता के जरिए कैसे सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं।

ममता कुलकर्णी का महामंडलेश्वर बनना न केवल उनके लिए बल्कि समाज और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भी एक प्रेरणा है। यह घटना दिखाती है कि परिवर्तन और स्वीकृति से ही समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है। किन्नर अखाड़ा इस बदलाव का नेतृत्व कर रहा है, और ममता कुलकर्णी की यह यात्रा एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बन गई है।
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