नियमों का उल्लंघन करने पर साधुओं को मिलती है कड़ी सजा, जानें क्या है अखाड़ों के नियम?
13 जनवरी 2025 से संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ मेले का शुभारंभ होने जा रहा है। हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह मेला न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं का भी अभूतपूर्व संगम है। इस महायोग के दौरान लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और अखाड़ों के सदस्य यहां इकट्ठा होते हैं।
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संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आगाज 13 जनवरी से होने जा रहा है। महाकुंभ का आकर्षण सिर्फ उसकी भव्यता में नहीं, बल्कि उसकी परंपराओं, अनुशासन और धार्मिक मर्यादाओं में भी छुपा है। खासकर अखाड़ों की व्यवस्था और उनके नियम-कानून इसे और खास बनाते हैं। महाकुंभ में जैसे ही आप किसी अखाड़े के शिविर में प्रवेश करते हैं, सबसे पहले आपका सामना होता है कोतवाल से। ये कोतवाल, जिन्हें छड़ीदार भी कहा जाता है, चांदी की मढ़ी लाठी (गोलालाठी) लेकर चलते हैं। उनकी जिम्मेदारी अखाड़े की सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखना होती है।
अखाड़ों की स्थापना का इतिहास
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