99 से बड़ा है 240, हरियाणा की जनता ने कांग्रेस को बड़ा सबक दे दिया, जानिए कैसे
99 सीटें लाने के बाद भी कांग्रेस ये बताना चाह रही थी जैसे कि उसी ने सरकार बनाई हो। कोई कांग्रेस से ये नहीं पूछ रहा कि 240, 99 से कम कैसे हो गया। चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ चुनाव में गई बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला और पूरे इंडिया गठबंधन को मिलाने के बाद भी बीजेपी की सीटें ज्यादा है। हां, बीजेपी 272 का आंकड़ा नहीं टच कर पाई लेकिन उसने तीसरी बार भी बेहतरीन प्रदर्शन किया।
4 जून को आए लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद जिस चीज का हर किसी को इंतज़ार था वो है हरियाणा और जम्मू और कश्मीर के चुनाव नतीजे, जो बीते दिन सामने आ गए। अनुच्छेद 370 के ख़ात्मे के बाद पहली बार हुए चुनाव का भी हर किसी को इंतजार था। वहीं हरियाणा में मुद्दों की बहुतायत और सत्ता विरोधी लहर के बीच हर कोई 8 अक्टूबर का इंतज़ार कर रहा था। खैर, दिन भर की गहमागहमी और उतार चढ़ाव के बीच दोनों राज्यों में नतीजों का ऐलान हो गया और परिणाम अप्रत्याशित आए।
जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस-NC गठबंधन की जीत!
आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद पहली बार हुए चुनाव में आशा के अनुरूप ही कांग्रेस-NC गठबंधन को बहुमत मिल गया है। वहीं बीजेपी को जम्मू रीजन में 29 सीटें मिली हैं। यह पहला चुनाव है जहां हर नागरिक को वोट का अधिकार मिला है। इस हिसाब से ये चुनाव अपने आप में ऐतिहासिक है। शांति पूर्ण तरीके से हुए चुनाव में बीजेपी दावों से इतर सरकार नहीं बना पाई है।
हरियाणा में बीजेपी को मिला जनादेश!
हरियाणा में बीजेपी की जीत ने कांग्रेस, चुनावी विश्लेषकों के साथ-साथ खुद बीजेपी को भी चौंका दिया है। बीते दिन आए नतीजों ने एक बार फिर कांग्रेस की कमोजरी को चर्चा का विषय बना दिया है।
हरियाणा का चुनाव देश में आने वाले चुनावों की दिशा तय करेंगे। राज्य के अब तक के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी पार्टी की एक बार नहीं लगातार तीसरी बार सरकार बनी हो। बीजेपी ने ये कारनामा कर दिखाया है।
हरियाणा में बीजेपी कैसे जीती और कांग्रेस कैसे हार गई, इसको लेकर तमाम विश्लेषण सामने आ रहे हैं। चुनाव विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस की हार के कई कारण हैं जो हमेशा से जगजाहिर हैं।
क्यों हारी कांग्रेस?
कांग्रेस की हार के कई कारण हैं। यह चुनाव कांग्रेस एक तरह से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में लड़ी। ये भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने राज्य में पार्टी की फ्रेंचाइजी हुड्डा परिवार को सौंप दी।
राहुल गांधी और उनके सलाहकार सहित पूरी पार्टी अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गई। सबको यही लगा कि 10 साल की सत्ता विरोधी लहर, जवान, किसान और पहलवान के सहारे बीजेपी की हार तय है। Exit Polls, चुनावी पंडित और स्थानीय रिपोर्टर्स ने भी हरियाणा में कांग्रेस की सरकार की भविष्यवाणी की थी।
जाट बनाम गैर जाट की लामबंदी!
राज्य के चुनाव में कांग्रेस ने अपने कोर वोट ‘जाटों’ पर फोकस किया और दूसरे वोटर्स को गंवा बैठी। कहा जा रहा है कि इन चुनावों में जाट वोटर्स प्रमुखता से खुलकर कांग्रेस के पक्ष में रहे, जिससे गैर जाट वोटर्स में डर का माहौल पैदा हुआ। बीजेपी जनता को ये बताने में कामयाब रही कि हुड्डा की जीत मतलब जाटों का वर्चस्व, जाटों का वर्चस्व मतलब सरकार का प्रभुत्व सोनीपत, पानीपत और रोहतक तक सीमित रहेगा।
बीजेपी का नैनो मैकेनिज्म!
बीजेपी प्रतिद्वंदी कांग्रेस की तुलना में चुप रही और शांति से चुनाव लड़ी। मसलन बीजेपी ने कांग्रेस के सीएम फेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ़ माहौल बनाया और वो लोगों को हुड्डा राज के घोटालों, पर्ची सिस्टम, भ्रष्टाचार की याद दिलाई और इसकी फिर से वापसी को लेकर आगाह किया।
बीजेपी ने गैर जाटों पर ज्यादा फोकस किया। उसने यादव, दलित और ओबीसी वोटर्स पर ध्यान दिया और उन्हें अपनी तरफ़ खींचने में कामयाब रही।
हरियाणा में बघेल फैक्टर!
हरियाणा और छत्तीसगढ़ के चुनाव में बहुत हद तक समानता थी। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ये हवा बनाने में कामयाब रहे कि राज्य में फिर से कांग्रेस की सरकार बन रही है। विश्लेषकों की मानें तो बघेल मीडिया मैनेजमेंट के जरिए ये बताने में कामयाब रहे थे कि वो बहुत ताकतवर हैं और राज्य में बीजेपी की वापसी मुश्किल है। पर जब नतीजे आए तो सब हैरान रह गए और बीजेपी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब रही।
छत्तीसगढ़ की तरह ही हरियाणा में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी कांग्रेस आलाकमान ने फ्री हैंड दिया। बाप-बेटे की जोड़ी ने बड़े अच्छे तरीके से मीडिया को मैनेज किया और ये बताने में कामयाब रहे कि वो कांग्रेस की वापसी कराने में कामयाब रहेंगे। हुड्डा ने इस दौरान आलाकमान पर दबाव बनाया कि वो सैलजा की न सुने। राज्य विधानसभा की 90 सीटों में से 72 टिकट हुड्डा खेमे के लोगों को मिलीं और 9 सैलजा के। हुड्डा ने न सिर्फ अपने लोगों को टिकट दिलाए बल्कि करीब सभी सीटिंग विधायकों को फिर से वफादारी का इनाम दिया, जिसका ख़ामियाज़ा कांग्रेस को उठाना पड़ा।
99 से बड़ा है 240, जनता ने बता दिया?
हरियाणा की जनता ने इस बार कई चीज़ें स्पष्ट की हैं। 4 जून के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर चला गया था। उसने ऐसी हवा बनाई कि जैसे उसी की जीत हुई है। 99 सीटें लाने के बाद भी कांग्रेस ये बताना चाह रही थी जैसे कि उसी ने सरकार बनाई हो। कोई कांग्रेस से ये नहीं पूछ रहा कि 240, 99 से कम कैसे हो गया। चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ चुनाव में गई बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला और पूरे इंडिया गठबंधन को मिलाने के बाद भी बीजेपी की सीटें ज्यादा है। हां, बीजेपी 272 का आंकड़ा नहीं टच कर पाई लेकिन उसने तीसरी बार भी बेहतरीन प्रदर्शन किया।
वहीं कांग्रेस और राहुल गांधी लगातार तीसरी बार 100 का आंकड़ा नहीं पार कर पाए कुल मिलाकर जनता ने बता दिया कि 99 सीटें लाने वाली कांग्रेस की असल हैसियत क्या है। अब शायद ही कांग्रेसी लोकसभा चुनाव का हवाला देकर बीजेपी और मोदी को हराने का दंभ भरेंगे।
नहीं चला पहलवान, जवान और किसान का मुद्दा?
कांग्रेस के पास इस चुनाव में मुद्दों की भरमार थी। उसके पास पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न, अग्निवीर का मुद्दा और किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दे थे। इन तीनों के अलावा बेरोजगारी और महंगाई का भी मुद्दा भी बहुत बड़ा था। इन सबके बावजूद कांग्रेस ये चुनाव हार गई। बीजेपी को अयोध्या और बद्रीनाथ हराने के बाद कांग्रेस ने हिंदुत्व आंदोलन और राम मंदिर के मुद्दे को हराने का दावा किया। अब जब बीजेपी ने कांग्रेस को हरियाणा में पटखनी दे दी है तो सवाल तो उठेंगे ही कि क्या पहलवान, जवान और किसान का मुद्दे को बीजेपी ने हरा दिया है?