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कैसे बना भारत का पहला मेड इन इंडिया युद्धपोत? जानें पूरा सफर

भारत ने 2 सितंबर 2022 को अपने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत, INS विक्रांत को नौसेना में शामिल किया। यह पोत न केवल भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाता है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' अभियान का सबसे बड़ा उदाहरण है। INS विक्रांत का निर्माण केरल के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में किया गया। इसका डिज़ाइन भारतीय नौसेना की वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है।
कैसे बना भारत का पहला मेड इन इंडिया युद्धपोत? जानें पूरा सफर
15 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के नौसेना डॉकयार्ड में तीन नए युद्धपोत और एक पनडुब्बी देश को समर्पित किए। यह दिन भारत की सैन्य ताकत और स्वदेशी रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता का एक और मील का पत्थर साबित हुआ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का पहला ‘मेड इन इंडिया’ युद्धपोत कौन सा है? इस लेख में, हम न केवल इस सवाल का जवाब देंगे, बल्कि आपको भारत की स्वदेशी युद्धपोत निर्माण यात्रा की कहानी भी बताएंगे, जो हर भारतीय को गर्व से भर देती है।

भारत का पहला स्वदेशी युद्धपोत

भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत है, जिसका निर्माण केरल के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में किया गया। यह पोत भारत की सैन्य ताकत के साथ-साथ ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का एक शानदार उदाहरण है। आईएनएस विक्रांत को 2 सितंबर 2022 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। इसका निर्माण 2009 में शुरू हुआ था और इसमें लगभग 14 साल लगे। आईएनएस विक्रांत का डिज़ाइन भारतीय नौसेना की वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया। यह भारत में ही तैयार किया गया पहला विमानवाहक पोत है, जो तकनीकी रूप से अत्याधुनिक और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

आईएनएस विक्रांत के प्रमुख तथ्य

लंबाई और वजन: यह युद्धपोत 262 मीटर लंबा और लगभग 45,000 टन वजन का है। इसकी विशालता इसे समुद्र में एक चलता-फिरता किला बनाती है।
हथियार प्रणाली: विक्रांत पर अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम और गन सिस्टम लगाए गए हैं। इसमें दुश्मनों से निपटने के लिए बियोन्ड विजुअल रेंज मिसाइलें, एंटी-एयरक्राफ्ट गन, और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम शामिल हैं।
विमान संचालन क्षमता: विक्रांत 30 से अधिक लड़ाकू और हेलीकॉप्टर विमानों को संचालित कर सकता है। इसमें मिग-29के लड़ाकू विमान, कामोव हेलीकॉप्टर, और एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर शामिल हैं।
स्वदेशीकरण: इस युद्धपोत के निर्माण में इस्तेमाल किए गए 76% से अधिक उपकरण और सामग्री भारत में ही विकसित किए गए हैं।

स्वदेशी युद्धपोत निर्माण की शुरुआत

भारत की स्वदेशी युद्धपोत निर्माण की यात्रा 1947 के बाद शुरू हुई। शुरुआती दौर में, भारत ने विदेशी देशों से युद्धपोत खरीदे। लेकिन 1960 के दशक में भारत ने आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाते हुए अपने युद्धपोत निर्माण की योजना बनाई। 1970 में, भारत ने आईएनएस खुकरी का निर्माण किया, जो भारत का पहला स्वदेशी मिसाइल कार्वेट था। इसके बाद 1997 में आईएनएस दिल्ली और फिर 2000 में आईएनएस कोलकाता जैसे स्वदेशी युद्धपोतों ने भारतीय नौसेना की ताकत को और मजबूत किया।
15 जनवरी 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन नए युद्धपोत और एक पनडुब्बी को देश को समर्पित किया। इनमें आईएनएस सूरत, आईएनएस नीलगिरि, और आईएनएस वाघशीर शामिल हैं। 
आईएनएस सूरत यह P15B गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर प्रोजेक्ट का हिस्सा है और भारत में 75% सामग्री से बना है।
आईएनएस नीलगिरि की बात करें तो यह P17A स्टील्थ फ्रिगेट प्रोजेक्ट का पहला युद्धपोत है, जो स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस है और दुश्मनों की नजर से बचने में सक्षम है।
आईएनएस वाघशीर, जो P75 स्कॉर्पीन प्रोजेक्ट की छठी और आखिरी पनडुब्बी है, जो समुद्र के भीतर अदृश्य रहकर दुश्मनों का सामना कर सकती है।

आईएनएस विक्रांत का महत्व

आईएनएस विक्रांत न केवल भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाता है, बल्कि यह भारत की तकनीकी प्रगति का प्रतीक भी है। यह पोत भारत को विमानवाहक पोत निर्माण वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करता है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, और चीन जैसे बड़े देशों के साथ अब भारत भी इस क्लब का हिस्सा है। आईएनएस विक्रांत और अन्य स्वदेशी युद्धपोतों के निर्माण से यह स्पष्ट है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इससे न केवल हमारी सेना मजबूत होगी, बल्कि भारतीय उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।

आज का भारत, जो कभी अपने सैन्य उपकरणों के लिए विदेशी देशों पर निर्भर था, अब अपनी जरूरतें खुद पूरी कर रहा है। यह हमारे वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, और श्रमिकों की मेहनत और प्रतिभा का परिणाम है। आईएनएस विक्रांत और अन्य स्वदेशी युद्धपोत भारत की बढ़ती ताकत और तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रमाण हैं। यह सिर्फ एक युद्धपोत नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा और गौरव का प्रतीक है। ऐसे प्रयास हर भारतीय को गर्व का अनुभव कराते हैं और देश को आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
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