एक मुख्यमंत्री की देश को जलाने की धमकी और केरोसिन वाली राजनीति
हाल ही में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांग्लादेश की संस्कृति और भाषा की सराहना की, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भारतीय राज्यों, विशेषकर दिल्ली में संभावित अशांति की धमकी दी। उनके इस बयान को राहुल गांधी और सलमान खुर्शीद जैसे अन्य नेताओं की विवादित टिप्पणियों की तरह देखा जा रहा है, जो सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। आलोचकों का कहना है कि ये धमकियां देश की स्थिरता को खतरे में डाल रही हैं और विपक्ष की नीयत पर सवाल उठाती हैं। यह स्थिति देश में राजनीतिक नेताओं की भूमिका और सामाजिक विभाजन को बढ़ाने की चिंता को उजागर करती है।
कोलकाता। ममता बनर्जी कह रही हैं कि उन्हें बांग्लादेश से प्यार है। वे गर्व से बताती हैं कि बांग्लादेश उन्हें "भालो" लगता है क्योंकि हमारी भाषा एक है, संस्कृति एक है।लेकिन बांग्लादेश से प्यार करने वाली ममता बनर्जी अगले ही क्षण देश के कई राज्यों में आग लगाने की धमकी देती हैं। वे धमकी दे रही हैं कि बंगाल में आग लगी तो उत्तर प्रदेश भी नहीं बचेगा, बिहार और झारखंड भी नहीं बचेगा, असम भी नहीं बचेगा और ओडिशा में भी आग लगेगी। ममता बनर्जी दिल्ली को भी आग लगाने की धमकी दे रही हैं। दरअसल, यह देश में गृह युद्ध की धमकी है।
ममता बनर्जी कोई गली-मोहल्ले छाप नेता नहीं हैं, वे एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने संविधान की शपथ ली है। क्या एक मुख्यमंत्री देश के कई राज्यों में, देश की राजधानी को आग लगाने की धमकी दे सकता है?
ममता बनर्जी देश में आग लगाने की धमकी देने वाली अकेली नहीं हैं। राहुल गांधी ने भी कहा था कि केरोसिन छिड़का जा चुका है, बस माचिस मारने की देर है। हाल ही में सलमान खुर्शीद, मणिशंकर अय्यर और ओवैसी जैसे नेता देश में बांग्लादेश जैसे हालात होने की बात कह चुके हैं। लेकिन देश के बड़े विपक्षी नेता अपने ही देश को जलाने या गृहयुद्ध जैसे हालात की धमकी क्यों दे रहे हैं?
पहला नैरेटिव है कि "संविधान खतरे में है"। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री रहते हुए खुद सड़कों पर प्रोटेस्ट के लिए उतर सकती हैं, लेकिन जब विरोधी उसी मुद्दे पर सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करें तो ममता धमकी देती हैं कि प्रदर्शन किया या हड़ताल में शामिल हुए तो नौकरी खा जाऊंगी। संविधान सचमुच खतरे में है।
दूसरा नैरेटिव है देश में जाति युद्ध। राहुल गांधी हर जगह जाति जनगणना की बात करते हैं, सिवाय अपनी पार्टी के अंदर और कांग्रेस शासित राज्यों को छोड़कर। कर्नाटक में जाति जनगणना कब की हो चुकी है, पर उसकी रिपोर्ट को कांग्रेस सरकार दबाकर बैठी है। क्यों? राहुल गांधी तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश में जातिगत जनगणना क्यों नहीं करवाते? कम से कम कांग्रेस संगठन के अंदर ही "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" दे देते?
विपक्ष का तीसरा नैरेटिव है "आरक्षण ख़त्म हो जाएगा"। इस मसले पर भारत बंद कर दिया गया। 80 हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ। पढ़े-लिखे लोग सुप्रीम कोर्ट के क्रीमी लेयर के फ़ैसले को समझते थे, लेकिन सड़कों पर बंद कराने निकले फुट सोल्जर्स को सिर्फ़ इतना पता था कि "मोदी संविधान ख़त्म कर देगा"। काश ये भोले लोग आरक्षण पर राजीव गांधी, जनार्दन द्विवेदी और मोतीलाल वोरा, अरुण नेहरू आदि के विचार जान लेते?
दरअसल, देश में कुछ खतरे में नहीं है, न कहीं केरोसिन छिड़का है, न कहीं आग लगी है। लगातार तीसरी बार चुनाव हार चुके लोगों को लगता है कि बैलेट से तो नहीं जीत पा रहे, बुलेट से ही सही? इसलिए तख्तापलट और बांग्लादेश की बातें हो रही हैं, जाति संघर्ष को हवा दी जा रही है।
ममता बनर्जी को शायद इल्म नहीं है। किसी भी राज्य में आग नहीं लगेगी, न दिल्ली में तख्तापलट होगा। सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत आगे बढ़ेगा और दुनिया की कोई ताकत भारत को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती। न जॉर्ज सोरोस, न डीप स्टेट्स और न ही गृहयुद्ध की तैयारी कर रहे देश के सपोले।