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CM बनकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे अब्दुल्ला, सरकार की असली 'चाबी' उपराज्यपाल के पास होगी

मर अब्दुल्ला के लिए जम्मू कश्मीर राज्य को चलाना पहले की तरह आसान नहीं होगा। आसान शब्दों में यही कह सकते हैं कि राज्य में भले ही उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री होंगे लेकिन सरकार की असली ' चाबी' राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास होगी।
CM बनकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे अब्दुल्ला, सरकार की असली 'चाबी' उपराज्यपाल के पास होगी
जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं और एक बार फिर से राज्य में जनता द्वारा चुनी गई सरकार बनने जा रही है। विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने बहुमत के जादुई आंकड़े को पार करते हुए 48 सीट जीती है जबकि जम्मू कश्मीर के बदले हालात का हवाला देते हुए प्रदेश में सरकार बनाने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी 29 सीट पर ही सिमट गई। चुनावी नतीजे सामने आने के बाद ही नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान कर दिया था कि राज्य के मुख्यमंत्री उनके बेटे उमर अब्दुल्ला बनेंगे। हालांकि उमर अब्दुल्ला के लिए जम्मू कश्मीर राज्य को चलाना पहले की तरह आसान नहीं होगा। आसान शब्दों में यही कह सकते हैं कि राज्य में भले ही उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री होंगे लेकिन सरकार की असली ' चाबी' राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास होगी। 


दरअसल, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव इस बार का काफी दिलचस्प था एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद शांति के माहौल का हवाला देते हुए चुनावी मैदान में उतरी थी तो वहीं जम्मू कश्मीर के स्थानीय मुद्दों को उठाते हुए नेशनल कांफ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करते हुए चुनावी मैदान में ताल ठोक था। लेकिन जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो यह साफ हो गया कि जम्मू कश्मीर की जनता ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को अपना आशीर्वाद दिया है। फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान कर दिया की उमर अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे। आपको बता दें उमर अब्दुल्ला पहले भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उस दरम्यान भी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी, हालांकि पहले जम्मू कश्मीर की स्थिति कुछ और थी और वर्तमान में जम्मू कश्मीर की स्थिति कुछ और है। जनवरी 2009 मैं जब उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने थे तो जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त था। राज्य का अपना संविधान भी था। उस वक्त जम्मू कश्मीर राज्य के फैसले में केंद्र सरकार की कम और राज्य सरकार की ज्यादा चलती थी। मगर अब जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है ऐसे में जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बनेंगे तो उनके लिए राज्य के लिए कई फैसले लेना आसान नहीं होगा। चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री के ज्यादातर फ़ैसलों में केंद्र का दखल होगा। सरकार बिना उपराज्यपाल की मंजूरी और अनुमति के बगैर बहुत कुछ नहीं कर पाएगी। हालांकि जम्मू कश्मीर की जनता बीते 6 वर्ष से राज्य में अपनी सरकार का इंतजार कर रही थी। 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में अब जम्मू कश्मीर के जनता को नई सरकार मिल गई है लेकिन इन सब के बीच एक तरह से यही कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री भले ही उमर अब्दुल्ला होंगे लेकिन राज्य की 'चाबी' उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के हाथों में होगी।


जम्मू कश्मीर कब बना केंद्र शासित प्रदेश ? 

आपको बताते चलें कि साल 2019 में संसद में जम्मू कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट पास हुआ। इस एक्ट के जरिए राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया एक जम्मू कश्मीर दूसरा लद्दाख और दोनों हिस्सों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। आपको बता दें जम्मू कश्मीर में विधानसभा है जबकि लद्दाख में विधानसभा नहीं है। आईए अब आपको समझाते हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य की चाबी कैसे एलजी के पास होगी। अगर संविधान के अनुच्छेद 339 को देख तो हर केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति के पास होता है। इसके लिए राष्ट्रपति हर केंद्र शासित प्रदेश में एक प्रशंसक की नियुक्ति करते है। अंडमान निकोबार, दिल्ली, पांडिचेरी , जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल होते है जबकि दमन दीव और दादर नगर हवेली, लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और लद्दाख में प्रशासक होते हैं। साल 2019 जम्मू कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट के मुताबिक पुडुचेरी में लागू संविधान का अनुच्छेद 239A ही जम्मू कश्मीर में भी लागू होगा। अब आपको बता दे कि दिल्ली विधानसभा वाला एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश है जहां 239 ए लागू है। यहां पर पुलिस जमीन और कानून व्यवस्था को छोड़कर सभी चीजों का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है। 


जम्मू कश्मीर विधानसभा को क्या कुछ होगा अधिकार ?

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के पहले तक जम्मू कश्मीर विधानसभा के पास कई शक्तियां थीं जबकि वहां के मामलों के लिए संसद की शक्तियां सीमित थी। लेकिन धारा 370 के निरस्त होने के साथ ही जम्मू कश्मीर के संवैधानिक संरचना पूरी तरीके से बदल चुकी है। वर्तमान में यहां चुनी हुई सरकार से ज्यादा शक्तियां उपराज्यपाल के पास होंगे। साल 2019 का कानून कहता है पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर जम्मू विधानसभा बाकी सभी मामलों पर कानून बना सकती है लेकिन राज्य सरकार राज्य सूची में शामिल किसी भी विषय पर कानून बनाती है तो उन्हें इस बात का विशेष कर ध्यान रखना होगा कि इससे केंद्र के कानून पर कोई असर न पड़े। इन सब के बीच एक प्रावधान यह भी है कि कोई भी बिल या संशोधन विधानसभा में तब तक पेश नहीं किया जाएगा जब तक उपराज्यपाल उसे मंजूरी न दें। 


कैसे उपराज्यपाल सीएम से ज्यादा होने पावरफुल?

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर उपराज्यपाल की चर्चा है और यह चर्चा इसलिए है कि जम्मू कश्मीर में भले ही चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बनने जा रहे हैं लेकिन राज्य में उपराज्यपाल की भूमिका सबसे निर्णायक तौर पर होगी। उमर अब्दुल्ला के पास भले ही पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे मामले में कानून बनाने या संशोधन करने का अधिकार होगा लेकिन उसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी लेना आवश्यक होगा। इसके अलावा उपराज्यपाल नौकरशाही और एंटी करप्शन ब्यूरो पर भी नियंत्रण रखेंगे। इन सबको अगर आसान शब्दों में समझे तो राज्य में अफसरो की ट्रांसफर और पोस्टिंग भी उपराज्यपाल के मंजूरी से ही होगी। इसके साथ ही उपराज्यपाल के किसी भी काम की वैधता पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि उन्हें ऐसा करते वक्त अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था या उन्होंने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है उनके किसी भी फैसले पर इस आधार पर राज्य सरकार चुनौती नहीं दे सकती कि उन्हें फैसला लेते वक्त मंत्री परिषद की सलाह ली थी या नहीं। बताते चलें कि राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले उपराज्यपाल को एडवोकेट जनरल और लो अफसर की नियुक्ति करने का भी अधिकार मिल गया है। 

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव पर सभी की निगाहें थे कि आखिर राज्य की जनता इस बार किस चुनती है लेकिन चुनावी नतीजे सामने आ चुके हैं और एक बार फिर से उमर अब्दुल्ला राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने वाले हैं इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में पहले 6 साल का कार्यकाल होता था लेकिन अब यहां सरकार का 5 साल का कार्यकाल होगा।
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