आचार्य प्रमोद कृष्णम ने खड़गे के बयान पर कसा तंज, 'सनातन' को 'गंदा' समझने वालों को कुंभ नहीं समझ आएगा
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में महाकुंभ के दौरान गंगा में डुबकी लगाने को लेकर एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने सवाल उठाया कि क्या गंगा में स्नान करने से गरीबी दूर हो जाएगी। उनका यह बयान विवाद का कारण बना, और भाजपा सहित अन्य नेताओं ने इसे धार्मिक आस्थाओं का अपमान बताया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाल ही में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के बाद राजनीति में एक नया मोड़ आया। महाकुंभ, जो हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होता है, इस बार भी चर्चा का केंद्र बन गया, लेकिन इस बार राजनीति ने भी इस धार्मिक आयोजन में दखल देना शुरू कर दिया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाकुंभ पर सवाल उठाते हुए एक बयान दिया था, जिसने राजनीतिक और धार्मिक वातावरण में हलचल मचा दी।
खड़गे ने कहा था, "क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी समाप्त हो जाएगी?" उनका यह बयान धार्मिक आस्थाओं और समाज की जटिलताओं को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ा कर गया। उनका कहना था कि गंगा में डुबकी लगाकर कोई गरीबी से मुक्त नहीं हो सकता। ऐसे समय में जब समाज में असमानताएँ बढ़ रही हैं, यह बयान कांग्रेस के भीतर भी चर्चा का विषय बन गया। खड़गे का कहना था कि गरीबों की मदद करने के लिए सरकारों को अधिक ठोस कदम उठाने चाहिए, न कि धार्मिक रस्मों पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
आचार्य प्रमोद कृष्णम का तीखा प्रहार
लेकिन इस बयान पर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तीखा प्रतिकार किया। आचार्य प्रमोद कृष्णम, जो कल्कि धाम के पीठाधीश्वर और पूर्व कांग्रेस नेता हैं, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खड़गे के बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने लिखा, "जो 'सनातन' को 'गंदा' समझते हैं, उन्हें 'कुंभ' क्या 'समझ' आएगा।" उनका यह तंज न केवल खड़गे पर, बल्कि कांग्रेस पार्टी पर भी था। उनका कहना था कि जो लोग हिंदू धर्म और उसकी आस्थाओं का मजाक उड़ाते हैं, उन्हें महाकुंभ जैसे महान धार्मिक आयोजन को समझना कठिन होगा। उन्होंने सीधे तौर पर कांग्रेस के नेताओं को निशाने पर लेते हुए यह सवाल उठाया कि जब उन्होंने सनातन धर्म को खारिज किया है, तो महाकुंभ जैसी धार्मिक घटना को लेकर उनकी सोच क्या होगी?
यह विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। भाजपा ने भी खड़गे के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस अध्यक्ष पर हमला बोलते हुए कहा, "कांग्रेस को हिंदू धर्म से इतनी नफरत क्यों है?" उन्होंने खड़गे के बयान को हिंदू धर्म और उसकी आस्थाओं का अपमान बताया। भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेता महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन को बुरा-भला कहकर देश के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं से खेल रहे हैं। मालवीय ने कांग्रेस को 'नई मुस्लिम लीग' तक करार दे डाला, यह आरोप लगाते हुए कि कांग्रेस अब देश के लिए खतरा बन चुकी है और इसका अस्तित्व समाप्त होना चाहिए।
मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान खासतौर पर उस वक्त आया जब वह मध्य प्रदेश के मऊ जिले में आयोजित 'जय बापू, जय भीम, जय संविधान' रैली को संबोधित कर रहे थे। खड़गे ने कहा था, "गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होगी। क्या गंगा में स्नान करने से भूख, बेरोज़गारी और गरीबों की समस्याएँ हल हो जाएंगी?" उन्होंने कहा कि जिन लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है, जो बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, और जिन मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल रही है, वे गंगा में डुबकी लगाने का खर्च क्यों उठाएं? खड़गे ने अपनी बात को सुलझाते हुए यह भी कहा कि वह किसी की आस्था को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते हैं और यदि उनके बयान से किसी को दुख पहुँचा हो तो वह माफी चाहते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब देश में ऐसे बहुत से गंभीर मुद्दे हैं, तो गंगा में डुबकी लगाने से क्या कोई ठोस बदलाव आएगा?
यह पूरा विवाद न केवल धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को उजागर करता है, बल्कि भारतीय समाज की धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक समस्याओं के बीच गहरे अंतर्विरोध को भी दर्शाता है। जहाँ एक ओर धार्मिक आस्थाओं का बहुत गहरा प्रभाव है, वहीं दूसरी ओर भारतीय समाज को गरीबी, बेरोज़गारी और असमानता जैसी गंभीर समस्याओं का भी सामना है। इस विवाद ने उन मुद्दों को और गहरा कर दिया है, जो लंबे समय से भारतीय राजनीति और समाज का हिस्सा रहे हैं। इस पूरे विवाद के बीच, सवाल यह उठता है कि क्या महाकुंभ जैसी धार्मिक घटनाओं को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाए, या फिर इनका समाज और राजनीति से गहरा संबंध है? क्या यह महाकुंभ केवल एक आस्थामूलक कार्यक्रम है, या इसका समाज में एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक भूमिका भी है?
आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इस सवाल का सीधा जवाब देते हुए कहा, "जो लोग सनातन को 'गंदा' समझते हैं, वे कभी कुंभ की महानता नहीं समझ सकते।" उनका यह बयान स्पष्ट रूप से उन लोगों पर तंज था जो हिंदू धर्म को नकारते हैं। यह वाक्य इस बात की ओर इशारा करता है कि एकता, धर्म और आस्था का भारत के समाज में गहरा संबंध है और इसे नकारना किसी भी समाज के लिए ठीक नहीं हो सकता।
यह विवाद और बयानबाजी निश्चित रूप से भारतीय राजनीति और समाज के उस दृष्टिकोण को उजागर करते हैं, जहां धर्म और राजनीति के बीच एक पतली सी रेखा खींची जाती है। यह समझने की आवश्यकता है कि क्या धर्म का स्थान केवल व्यक्तिगत आस्था में है, या फिर यह समाज और देश के विकास में एक भूमिका भी निभाता है? इस मामले पर अब देखना यह होगा कि आगे कांग्रेस और भाजपा के बीच यह विवाद किस मोड़ पर जाएगा और क्या इससे समाज में एक नई बहस शुरू होगी जो हमारे धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावित करेगी।